वेलिंग्टन : न्यूजीलैंड के करीब 65 फीसदी लोग देशवासियों को इच्छामृत्यु का अधिकार देने के पक्ष में हैं। हाल ही में देश में हुए आम चुनाव के साथ इच्छामृत्यु पर भी जनमत संग्रह कराया गया था। इसके नतीजों को इस अधिकार के पक्षधर लोग गरिमा के साथ जीवन की जीत बता रहे हैं। बता दें कि आम चुनाव में पीएम जेसिंडा आर्डर्न को फिर भारी जीत मिली है।
शुक्रवार को वोटों की गिनती से पता कि 65.2 फीसदी लोग यूथेनेसिया यानी इच्छामृत्यु के पक्ष में हैं। जनमत संग्रह के नतीजों से साफ है कि न्यूजीलैंड जल्द ही उन चंद देशों में शामिल हो जाएगा, जहां डॉक्टर की मदद से इच्छामृत्यु का अधिकार मिलेगा।
नीदरलैंड्स ने दिया सबसे पहले अधिकार…
इच्छामृत्यु का अधिकार सबसे पहले नीदरलैंड्स में वर्ष 2002 में दिया गया था। उसी साल बेल्जियम में और 2008 में लग्जमबर्ग, 2015 में कोलंबिया और 2016 में कनाडा ने भी इसे कानूनी मान्यता दी गई। अमेरिका के भी कई राज्यों व ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत में भी यह वैध है।
कुछ देशों में आत्महत्या की इजाजत…
यह चौंकाने वाली सचाई है कि कुछ देशों में आत्महत्या की भी अनुमति है। इसमें मरीज खुद ही घातक दवा का सेवन करता है, बजाय किसी मेडिकल कर्मचारी या फिर किसी तीसरे पक्ष। न्यूजीलैंड में पिछले साल ही किसी की मदद से मौत यानी इच्छामृत्यु की इजाजत संसद से मिल गई थी लेकिन सांसदों की राय से इसे लागू करने में जानबूझकर देरी की ताकि देशवासियों की राय ली जा सके।
जबरदस्त जीत : सेमूर
इच्छामृत्यु के अधिकार के लिए न्यूजीलैंड के कानून में बदलाव का अभियान चला रहे डेविड सेमूर ने इन नतीजों को जबरदस्त जीत बताया है। उनका कहना है ‘हजारों देशवासियों के पास अब इच्छा, गरिमा, नियंत्रण और अपने शरीर के बारे में फैसला करने की आजादी होगी और न्यूजीलैंड का शासन इसकी रक्षा करेगा।’
वर्ष 2015 में शुरू हुई थी बहस…
न्यूजीलैंड में इच्छामृत्यु पर बहस वर्ष 2015 में लेक्रेटिया सील्स ने शुरू की थी। इस महिला की ब्रेन ट्यूमर के कारण उसी दिन मौत हुई जब कोर्ट ने उनकी इच्छामृत्यु की मांग को खारिज कर दिया था। अब जनमत संग्रह के नतीजे का स्वागत करते हुए सील्स के पति मैट विकर्स ने रेडियो न्यूजीलैंड से चर्चा में कहा, ‘आज मुझे बहुत राहत और कृतज्ञता का अनुभव हो रहा है।’
सॉल्वेशन आर्मी ने कहा-जोखिम कम नहीं…
उधर, न्यूजीलैंड के चर्चों के संगठन सॉल्वेशन आर्मी का कहना, ‘इच्छामृत्यु का अधिकार मिलने पर लोगों को अपनी जीवनलीला खत्म करवाने के लिए बाध्य किया जा सकता है। कमजोर लोग जैसे कि बुजुर्ग और ऐसे लोग जो मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं, वो इस कानून के कारण खासतौर से जोखिम में रहेंगे।’ न्यूजीलैंड एसोसिएशन ने भी इस सुधार का विरोध किया है और मतदान से पहले ही इसे अनैतिक करार दिया।