{किश्त77}
बस्तर के अबूझमाड़ को अभी तक बूझा नहीं गया है।गूगलमेप,जीपीएस के इस दौर में भी अबूझमाड़ में कुल कितने गांवों में किसके पास कितनी जमीन है,चारा गाह है या सड़कें हैं या नहीं जीवन की दूसरी चीजों की उपलब्धता कैसी है।इसका कोई रिकार्ड नहीं है। गांव कहां है,उनकी सरहद कहां है,इसका केवल अनुमान लगाया जाता है।अबूझमाड़ और घोटुल समूचे विश्व में चर्चा का विषय बना है।इति हास के पन्नों को पलटने से जो छन-छन कर जानकारी आती है उससे आदिवासी अंचल तथा माओवादियों का गढ़ अबूझमाड़ 4000 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला है।सम्राट अकबर के जमाने में राजस्व दस्तावेज एकत्र करने की कोशिश की गई थी लेकिन घने जंगलों वाले इस इलाके में सर्वे का काम उस समय अधूरा रह गया।ब्रिटिश ने 1909 में लगान वसूली के लिए सर्वे क्षण शुरू किया लेकिन वह अधूरा ही रह गया,पिछले 116 सालों से इस क्षेत्र में 237 गांव बसे हैं। लेकिन यहां रहनेवाले आदिवासी के पास जमीन,मकान का कागज नहीं हैँ,आजादी के बाद भी यह क्षेत्र अबूझ ही रह गया।माड़ में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ जैसा हाल है।कोई,किसी की जमीन पर कब्जा कर लेता है,दस्तावेज नहीं होने के चलते मामला अदालत तक नहीं पहुंचता है।1980 के आसपास माओवादियों ने दस्तक दी और साम्राज्य स्थापित कर लिया,आज की तारीख में इसे माओ वादी का गढ़ भी कहाजाता है।जाहिर है कि सर्वेक्षण नहीं होने के चलते विकास के तमाम आंकड़े और दावे अबूझमाड़ की सरहद से बाहर आकर ही खत्म भी हो जाते हैं। नारायणपुर दंतेवाड़ा, बीजापुर जिले का जंगली क्षेत्र ही अबूझमाड़ कहलाता है। यहां से गुजरने वाली इंद्रावती नदी अबूझ माड़ को बस्तर के दूसरे क्षेत्रों से अलग करती है। वहां के घने जंगल पहाड़ों और छोटे-छोटे नदी-नालों के बीच ही गांव बसे हैं।80 के दशक में अबूझमाड़ में बिना अनुमति बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।सालों तक कलेक्टर की अनुमति से प्रवेश संभव होता था, पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2009 में सरकार ने प्रतिबंध हटा दिया,अबूझ माड़ के सर्वे के लिये पहल पहले भी शुरू हुई थीअबूझ माड़ के विषय में कहा जाता है कि यहां के निवासी दुनिया के सबसे खूबसूरत आदमजाद है। पहाडिय़ों और जंगल के दामन में प्रकृति ने इनमें एक अनूठा काला सौंदर्य भर दिया है।आदमी,औरत उन्मुक्त विचरण करते हैं।प्रकृति की गोद में रहनेवाले वनवासी भीआस पास के शहरी क्षेत्रों के कलाबाजों की बाढ़ में डूबने लगे हैं।इन भोले- भाले आदि वासियों का शिकार करने वाले तरह तरह केछद्म वेश में मौजूद है।शिकार करने वालों के पास शोषण के इतने हैरत अंगेज तौर तरीके हैं कि शायद दुनिया की किसी सरकार के पास इसका काट होगा।अबूझमाड़ सहित बस्तर में महाजनी सभ्यता राजसत्ता और खोटे व्यापार का सुनियोजित हमला हुआ है।जंगल में मंगल की हालत खरामा- खरामा खत्म होती गई और उनकी जगहआया भयंकर उत्पीडऩ,शोषण..! बस्तर के लिए वैैरियर एलविन से लेकर कलेक्टर रहे लोगों ने बहुत कुछकिया यानिअनेक गोरे-काले ने आदिवासियों के लिएकाफी कुछ किया पर विकास की किरण तो अंतिम व्यक्ति तक पहुंची ही नहीं…?वैसे अबूझमाड़ का प्राचीन इति हास भी रोचक है।छठवीं शताब्दी में 540 ईस्वी के पूर्व एक बड़े भूभाग में वकाटक साम्राज्य था उसमें बस्तर भी शामिल था।सन 1114 ईस्वी के आसपास कन्नड़ प्रदेश में आये मड़ कुलीन और उन्नत संस्कृति संपन्न लोग ऐति हासिक त्रासदी के कारण माड के निवासी बने।कोई नहीं बता सकता कि कितने लोग आये थे शरण लेने….!वनाच्छादित क्षेत्र में एक हादसे के बाद शरणार्थियों में 50- 60 स्त्री पुरुष ही बाद में बचे,इन्हीं से अबूझ माड़ का संसार बना। यही 50-60 आदि पूर्वज ही अबूझमाड़ के देवी देवता है।सारा संगीत इन्हीं के नामों से परिपूर्ण है।कुछ आये शरण लेने,शेष पूरा साम्राज्य कहां गया….?अबूझमाड़ ने महान चक्कर साम्राज्य को धूल में मिलते देखा,उपजाऊ भूमि कोवनों में परिवर्तित होते देखा।16/17 वीं शताब्दी में गढ़ा मंडला,देवगढ़ और खेरसा के गोड़ साम्राज्यों के पतन के बादआदिवासीकरण भी होतेअबूझमाड़ ने देखा है।शाल वन खिसकते रहे, नदी-नाले आंसू समेटते रहे,अब तो कई वर्षों से सदाबहार वनों में गंधक की महक भारी है, धरती लहू से रंग रही है,वहाँ नक्सल वादी उस पर शासन कर रहे हैं फिर भी उसे अभी तक बूझने का प्रयास नहीं हुआ है। कहां चले गये इतिहासज्ञ। कहां चले गये सारे शोधकर्ता। क्या उन्हें शहरों से ही फुरसत नहीं है….?