दुमका : झारखंड के दुमका में दो आदिवासी महिलाएं बंगलूरू से 25 किलोमीटर दूर कुंबलगोडु पुलिस थाने के बाहर अन्य मजदूरों के समूह के साथ खड़ी थीं, ताकि उन्हें घर वापस भेजा जाए। हालांकि उनके पास कोई पहचान पत्र या फोन नहीं था। वे केवल संथाली भाषा बोल रही थीं। सौभाग्यवश पुलिस स्टेशन के बाहर उन्हें झारखंड का एक साथी कर्मचारी मिला जिसके बाद उनके साथ हुई बर्बरता का खुलासा हो पाया।
दोनों ने बताया कि कैसे जिस कंपनी में वे काम करती थीं, वहां उन्हें बंधक बनाकर रखा गया और हिंसा की गई। इसके बाद वे लगभग अपनी पांच और आठ साल की बेटियों के साथ एक महीने तक लॉकडाउन के दौरान जंगल में छुपी रहीं। एक महिला ने बताया कि कंगेरी में फैक्ट्री के दो आदमियों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया।
23 मई को दो फैक्ट्री कर्मचारियों के खिलाफ धारा 376डी और भारतीय दंड संहिता की धारा और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। डीएसपी ओम प्रकाश ने कहा कि दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है। फैक्ट्री का कर्मचारी चेन्नई में है और कोरोना वायरस की स्थिति के कारण हम वहां नहीं जा सकते। लेकिन बंधुआ मजदूरी के आरोपों की जांच चल रही है।
तीन जून को दोनों महिलाओं ने बच्चों के साथ श्रमिक स्पेशल ट्रेन ली और पांच जून को झारखंड पहुंचीं। महिला वकील राजलक्ष्मी के अनुसार, ‘शुरुआत में पुलिस ने बंधुआ मजदूरी या तस्करी की शिकायत दर्ज नहीं की थी, लेकिन अब उन्होंने कहा कि जांच करेंगे। श्रम विभाग ने पीड़ितों को मुआवजे के रूप में एक लाख रुपये दिए हैं।’
पुलिस के पास दर्ज शिकायत के अनुसार महिलाओं ने अक्तूबर में फैक्ट्री में काम करना शुरू किया था। उनसे दिन में 15 घंटे काम कराया जाता था और हफ्ते में 200 रुपये दिए जाते थे जबकि महीने के नौ हजार रुपये देने का वादा किया गया था। जनवरी में जब वे पहली बार फैक्ट्री से भागीं तो उन्हें कथित तौर पर फैक्ट्री का सुपरवाइजर जबरदस्ती कार में वापस लेकर आया। उन्हें कैद करके पीटा गया और दुष्कर्म की धमकी दी गई। उनके आधार कार्ड और फोन छीन लिए गए। इसके कुछ दिन बाद एक महिला के साथ दो आदमियों ने सामूहिक दुष्कर्म किया।