शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
छत्तीसगढ़ में 15 सालों तक मुख्यमंत्री रहे, पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तथा म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के खिलाफ छग और म.प्र. के थानों में जुर्म कायम हो गया है, इसके पहले छग के पहले मुख्यमंत्री रहे स्व. अजीत जोगी के खिलाफ डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में डोंगरगढ़ में डकैती का जुर्म कायम किया गया था जबकि वे उस समय व्हील चेयर्स के हमसफर थे। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू तथा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी करते रहे हैं…. नेहरू पर कभी भारत विभाजन तो कभी कश्मीर नीति को लेकर निशाना बनाने में परहेज नहीं करते हैं तो अर्थशास्त्री रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर, पूर्व प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की नीति, उनके चुप रहने की आदत, कम बोलने के नाम पर सवाल उठा चुके हैं…। आखिर यह हो क्या रहा है, राजनीति में गिरावट और कितनी आएगी…..?यह ठीक है कि डॉ. रमन सिंह के खिलाफ संबित पात्रा के एक ट्वीट को रि ट्वीट करने के नाम पर एक कांग्रेसी कार्यकर्ता की शिकायत पर जुर्म कायम किया गया है जो गैर जमानती धाराओं के तहत हैं तो म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ कोरोना महामारी के मामले में ‘इंडियन वैरिंएंट’ का उल्लेख करने के नाम पर जमानती धाराओं के तहत जुर्म कायम किया गया है जबकि इसी मामले में न्यायालय में सरकार ने हलफनामा में इंडियन वैरिएंट का उल्लेख किया है.? वैसे दोनों मामलों में छग तथा म.प्र. की राजनीति गर्म है। छग में भाजपा को डॉ. रमन सिंह, संबित पात्रा के खिलाफ पुलिसिया कार्यवाही कांग्रेस सरकार की दबाव की राजनीति लग रही है…. तो पड़ोसी राज्य म.प्र. में कांग्रेस को कमलनाथ के खिलाफ की गई पुलिसिया कार्यवाही भाजपा की ओछी राजनीति लग रही है…। सवाल तो यही है कि दोनों राज्यों में क्रमश: कांग्रेस-भाजपा की सरकार काबिज है और पूर्व मुख्यमंत्री निशाना बने हुए हैं….?
कहां गये वे लोग?
पहले वर्तमान तथा पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच पहले काफी मधुर संबंध हुआ करते थे। राजनीतिक विरोध तो ठीक था पर व्यक्तिगत संबंध भी अच्छे होते थे वही उनको महत्व भी मिलता था। सत्ताधारी तथा प्रतिपक्षी दल के नेताओं के बीच भी अच्छी समझ होती थी। ज़ब सीपी एण्ड बरार (म.प्र., महाराष्ट्र, छग आदि हिस्सा थे) के मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल थे तो नेता प्रतिपक्ष ठाकुर प्यारेलाल सिंह थे। दोनों छग के थे। एक ही ट्रेन, एक ही रेल बोगी में दोनों साथ-साथ नागपुर (तब की राजधानी) जाते थे, विधानसभा में एक दूसरे का नीतिगत मामलों में विरोध करते थे फिर एक ही रेल बोगी में वापस छत्तीसगढ़ लौटते भी थे।
अविभाजित म.प्र. के मुख्य सचिव तथा बस्तर में डीसी (कलेक्टर के समतुल्य )रह चुके आर.सी.बी नरोन्हा का एक संस्मरण का उल्लेख जरूरी है वह राजनेताओं- नौकरशाहों के बीच के उस समय के रिश्तों का चित्रण करने काफी है। नरोन्हा सीपी एण्ड बरार में 1938 बैच के आईसीएस थे। वे लंबे समय तक बस्तर में उपायुक्त (डीसी कलेक्टर) भी रहे। बाद में 1967-68 तथा उसके बाद 1973-74 में अविभाजित म.प्र. के मुख्य सचिव भी रहे। वहीं 1960 में पंजाब के राज्यपाल के सलाहकार भी रहे। उन्होंने म.प्र. में मुख्यमंत्री कैलनाशनाथ काटजू, डीपी मिश्र तथा गोविंद नारायण सिंह का कार्यकाल भी देखा। उन्होंने एक संस्मरण में तब के मुख्यमंत्रियों के विषय में अनुभव भी साझा किये हैें जो आजकल के राजनेताओं के लिए प्रेरणास्पद हो सकता है….। उन्होंने लिखा है कि जब म.प्र. के मुख्यमंत्री बदले तो मैंने (नरोन्हा) नये मुख्यमंत्री से मुलाकात कर कहा… साहब यह मेरी पुरानी कलम पहले जैसे चलेगी या नहीं…? नये मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कलम पहले जैसे ही चलेगी…इससे संकेत मिल गया कि मुख्य सचिव नहीं बदल रहे हैं..?
उस समय प्रोटोकाल के तहत सरकारी वाहन उपलब्ध कराना राजधानी में मुख्य सचिव के जिम्मे होता था। नरोन्हा ने संस्मरण में उल्लेख किया है कि जब वे निवृत्तमान मुख्यमंत्री के आवास पर गये थे तो वहां उन्हें अकेले पाया….। उनके आवास पर कोई चौपहिया वाहन (कार-जीप) भी नहीं थी उस समय वैसे भी निजी कार-जीप की कमी ही रहती थी। कल तक चकाचौंध तथा भीड़भाड़ से घिरे रहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री की हालत उनसे देखी नहीं गई और उन्होंने वैकल्पिक व्यवस्था तक एक चौपहिया वाहन उपलब्ध कराने का आश्वासन भी पूर्व मुख्यमंत्री को दे दिया।
जब यह जानकारी नरोन्हा ने नये मुख्यमंत्री को दी तो उन्होंने इस कदम का स्वागत ही नहीं किया बल्कि यह भी आदेश दिया कि-
निवृत्तमान मुख्यमंत्री सुबह-सुबह रोज मंदिर जाते हैं उन्हें मंदिर जाने के पहले वाहन उपलब्ध हो यह व्यवस्था आप स्वयं देख लें। ये थे उस समय के राजनेताओं के बीच के आपसी रिश्ते…।
नरोन्हा साहब ने अपने प्रशासनिक अनुभवों को लेकर एक दिलचस्प किताब लिखी थी ‘ए टेल टोल्ड बाय एन ईडियट’। उन्होंने उसमें एक वाकये का जिक्र किया है। तब के मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह तथा मुख्य सचिव नरोन्हा एक खुली जीप में सतपुड़ा के जंगल की सैर कर रहे थे। दोनों एक दूसरे को बाघों के शिकार के किस्से सुना रहे थे। तभी नरोन्हा साहब ने कहा कि सीएम साहब अभी कोई शेर सामने आएगा तो आप क्या करेंगे? गोविंद नारायण सिंह ने कहा कि उसके पुट्ठे पर दो लात जमा देंगे…., इत्तफाक से कुछ देर बाद एक बाघ सड़क पर बैठा मिला… सिंह साहब ने जीप रुकवाई, उस शेर के पुट्ठे पर एक धौल जमाई और वापस जीप में आकर बैठ गये… उस घटना से सन्न नरोन्हा ने बाद में सीएम साहब से पूछा कि शेर से डर नहीं लगा….? डॉ. गोविंद नारायण सिंह ने कहा कि शेर का डर मेरे डर से बड़ा था….., हमला मैंने किया था…. अपने बचाव के बाद जब तक शेर हमले की सोचता तब तक मैं अपनी जीप में सुरक्षित पहुंच गया था… खैर यह संस्मरण उस समय के प्रशासनिक अफसर और मुख्यमंत्री के बीच के रिश्तों का गवाह तो है।
एक आईएएस अटैच।
अविभाजित म.प्र. के समय रायपुर के संभागायुक्त ए डी मोहिले को तब के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इसलिए हटा दिया था क्योंकि उन्हें ‘मिट्टी तेल’की प्रति लीटर दर का पता नहीं था, उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रम में घोषणा की थी कि ऐसे आयुक्त को रहने की जरूरत नहीं…इधर छग के एक कलेक्टर ने हाल ही में प्रधानमंत्री को अपने जिले में होने वाले कुल गांवों की संख्या नहीं बताना भी चर्चा में है वहीं सुरजपुर के कलेक्टर रणवीर सिंह को लॉकडाउन के दौरान एक युवक को थप्पड़ मारना, उसका मोबाईल तोडऩा भारी पड़ा… भूपेश बघेल ने उन्हें तत्काल मंत्रालय में अटैच कर दिया वैसे आईएएस रणवीर सिंह का छग में अभी तक का कार्यकाल चर्चित ही रहा है। 2012 बैच के आईएएस शर्मा जब पेण्ड्रारोड -मरवाही में बतौर एसडीएम थे तब एक जंगली भालू को गोली मारने का आदेश देकर चर्चा में रहे, भालू को पुलिस वालों ने गोलीमार दी थी जबकि वाईल्ड एनिमल प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत टाइगर, पैंथर तथा भालू की जान लेने पर सात साल की सजा का प्रावधान है। वहीं जुलाई 2015 में कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर में बतौर प्रशिक्षु आईएएस (एसडीएम) पदस्थ थे तब एक पटवारी से रिश्वत लेने के मामले उन्हीं का चपरासी 10 हजार लेते पकड़ा गया था, जैसे ही पैसे शर्मा के चेम्बर में पहुंचे, एण्टी करप्शन ब्यूरो ने पकड़ लिया था खैर इस मामले में चपरासी जेल गया और शर्मा को एसडीएम के पद से हटाकर मंत्रालय में पदस्थ कर दिया गया। खैर बाद में इन्हें सुरजपुर में कलेक्टर बना दिया गया अब वे फिर वापस हो गये हैं । भाजपा इस मामले में पूर्व कलेक्टर सुरजपुर पर जुर्म कायम करने की मांग कर रही है। ज्ञात रहे कि पूर्व में एक आईएस ने ट्वीट कर दिया था कि पं. दीनदयाल उपाध्याय का भारत की राजनीति या विकास में क्या योगदान है… बस रमन सरकार ने उसे मंत्रालय अटैच कर दिया था हालांकि भूपेश सरकार में फिलहाल वे एक जिले के कलेक्टर का काम सम्हाल रहे हैं।
बी.व्हीआर बनेंगे केंद्र में सचिव…
छग कॉडर के 1987 बैच के आईएएस बी.व्ही.आर सुब्रमणियम को केंद्र सरकार ने सेक्रेटरी कामर्स पद पर पदस्थ किया है वे छत्तीसगढ़ कॉडर के पहले अफसर हैं जो केंद्र में सचिव बने हैं। वे अंतर्राज्यीय प्रतिनियुक्ति पर छग से बतौर अतिरिक्त मुख्य सचिव, जम्मू एवं कश्मीर के मुख्य सचिव बनाये गये थे। किसी काडर के आईएएस का दूसरे राज्य में मुख्य सचिव बनना भी उपलब्धि रहा.,बतौर एसीएस (होम) छग उन्होंने देश के चर्चित आईपीएस विजय कुमार के साथ छग के नक्सली क्षेत्रों में भी बड़ा काम किया था। हालांकि वे 30 जून को अनूप वाधवान के सेवानिवृत्ति के पश्चात कामर्स सेक्रेटरी का पदभार सम्हालेंगे। ज्ञात रहे कि बी.व्ही.आर की पत्नी आईएफएस उमा देवी भी केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं वे भी छग कॉडर की है। यहां यह बताना जरूरी है कि 2022 दिसंबर में बी.व्ही. आर सेवानिवृत्त होंगे वहीं उनके ही बैंचमेट चितरंजन खेतान जून 21 में यानि अगले माह सेवानिवृत्त होने वाले हैं। वैसे बी व्ही आर सुब्रमणियम 87 बैंच के हैं।उन्हीं की बैच के आर.पी. मंडल छग के मुख्य सचिव बन चुके हैं तो उनसे जूनियर 89 बैच के आईएएस अमिताभ जैन अभी छग के मुख्य सचिव हैं। यदि बी व्ही आर छग कैडर में वापस लौटते हैं उन्हें मुख्य सचिव के समतुल्य जिम्मेदारी दी जाती पर वे फिलहाल छग लौटने के मूड में नहीं है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि सुब्रमणियम से जूनियर तथा अमिताभ जैन से वरिष्ठ आईएएस (88 बैच) बाबूलाल अग्रवाल को बर्खास्त किया जा चुका है। वहीं अमिताभ जैन से जूनियर, रेणु पिल्ले 1991 बैच तथा सुब्रत साहू 1992 बैच अभी छग में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर कार्यरत हैं।
और अब बस….
0 जीरम घाटी नक्सली वारदात का 8 साल बाद भी खुलासा नहीं हो सका है…..हालांकि शहीदों के परिजनों में एक मंत्री, 2 विधायक बन चुके हैं।
0 भाजपा का आरोप है कि कोरोना काल में मुख्यमंत्री-स्वास्थ्य मंत्री की 3 माह से चर्चा ही नहीं हो सकी है … पर कोरोना महामारी तो उतार पर दिख रही है।
0 पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के खिलाफ एक कांग्रेसी की शिकायत पर पीएमओ ने छग के मुख्य सचिव को जांच करने कहा है… यह बात कुछ हजम नहीं हो रही है।
0 छत्तीसगढ़ के चर्चित पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता कहां है, क्या आफिस आ रहे हैं… यह पता ही नहीं चल रहा है।