कुछ कहने को बेताब है…. खामोशी खुद एक किताब है….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )      

 

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री समर्थकों को पूरा यकीन है कि अगला विस चुनाव भूपेश बघेल के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा तो टी. एस.सिंहदेव को यकीन है कि कांग्रेस आलाकमान सही समय पर सही निर्णय लेगा ….? वैसे भूपेश की ताकत के आगे कांग्रेस नेतृत्व ने घुटने टेक दिए हैं…?उनकी नजर में भूपेश बघेल पहले ऐसे कांग्रेसी मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने दिल्ली को झुका दिया है।अगर भूपेश को बदला जाता तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार ही नही बचती.. !लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी भूपेश के पास ही रहती….!
यह तो सभी जानते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने
छत्तीसगढ़ में शानदार जीत हासिल की थी।भूपेश बघेल तब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे।इसलिए उस जीत का श्रेय भी राहुल गांधी की बजाय उन्हें ही मिला।कांग्रेस ने 90 में से 70 सीटें जीत कर 18 साल के छत्तीसगढ़ में एक नया रिकॉर्ड बना दिया था। तब राहुल गांधी ,ताम्रध्वज साहू को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे।लेकिन कुर्सी मिली भूपेश बघेल को।मुख्यमंत्री पद के तीन अन्य दावेदार टी. एस. सिंहदेव,चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू को पार्टी नेतृत्व की बात माननी पड़ी।महंत विधानसभा अध्यक्ष बन गए।साहू भूपेश सरकार में गृहमंत्री बन गए। संभवत: सिंहदेव को यह आश्वासन दिया गया कि ढाई साल बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा…..? इस आश्वासन के साथ वह सरकार में दूसरे नम्बर पर माने गए….।
विवाद सरकार के ढाई साल पूरे होने पर शुरू हुआ।टी .एस .सिंहदेव ने नेतृत्व को अपना वादा याद दिलाया।इसके साथ ही सरकार के भीतर “गृहयुद्ध” छिड़ गया।टी एस सिंहदेव अपनों के ही निशाने पर आ गए।एक कांग्रेस विधायक ने ही उन पर गम्भीर आरोप लगा दिए।तब से उठापटक जारी थी….
भूपेश बघेल जब हाल ही में पहली बार दिल्ली गए थे।तब उनकी राहुल गांधी से मुलाकात हुई थी।उस मुलाकात के बाद छत्तीसगढ़ के प्रभारी महासचिव पी एल पुनिया ने मीडिया से कहा था कि ढाई साल का कोई फार्मूला नही था….।बघेल मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
लेकिन यह मामला यहीं पर खत्म नही हुआ।बघेल को यह पता था कि आगे कुछ भी हो सकता है।इसके लिए उनके समर्थको ने ताबड़तोड़ तैयारी की थी! और जब भूपेश को फिर दिल्ली आने को कहा गया तो उन्होंने अपनी ताकत दिखाने का फैसला कर लिया।
सूत्रों के मुताविक बघेल ने खुद दिल्ली पहुंचने से पहले 50 से ज्यादा कांग्रेस विधायक दिल्ली पहुंच गए..!12 में से 6 मंत्री भी वहां गए। हालांकि टी एस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू भी दिल्ली में ही थे।लेकिन साहू अस्पताल में थे और सिंहदेव दस जनपथ के फैसले का इंतजार कर रहे थे। बचे चार मंत्री छत्तीसगढ़ में ही थे।वैसे छत्तीसगढ़ के 17 जिला कांग्रेस अध्यक्ष और 7 शहरों के महापौर भी भूपेश का साथ देने के लिए दिल्ली पहुंचे थे…..?
हालांकि राहुल या कोई अन्य गांधी इन लोगों से नही मिला।लेकिन भूपेश अपना संदेश देने में सफल रहे।यही बजह है कि राहुल और प्रियंका के साथ
मैराथन बैठक के बाद जब वे बाहर निकले तो उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उन्होंने नेतृत्व को आइना दिखा दिया है।ढाई साल के फार्मूले पर उन्होने इतना ही कहा कि प्रभारी महासचिव पुनिया तो पहले ही कह चुके हैं कि ढाई साल का कोई फार्मूला नही था। मैं तो राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ दौरे के लिए आमंत्रित करने आया था।
इस बैठक के बाद कई कहानियां दस जनपथ के हवाले से निकलीं
…..?कहा गया कि भूपेश एक ताकतवर पिछड़े नेता हैं।अब चूंकि भाजपा पिछड़े वर्गों को जोड़ने के लिये विशेष अभियान चला रही है।ऐसे में उन्हें हटाकर एक पूर्व राजपरिवार के सदस्य को मुख्यमंत्री बनाने से गलत संदेश जाएगा।यह बात राहुल और प्रियंका मान गए….!
यह भी कहा गया कि एक बार फिर प्रियंका राहुल पर भारी पड़ी हैं।उन्होंने ही हस्तक्षेप करके भूपेश की कुर्सी बचाई है?क्योंकि एक ओर भाजपा आक्रामक ढंग से पिछड़े वर्गों को लुभाने का काम कर रही है वहीं दूसरी ओर पिछड़े नेता से मुख्यमंत्री की कुर्सी लेना कांग्रेस को बहुत भारी पड़ जायेगा….?
कांग्रेस के चरित्र के मुताबिक कहानियां बहुत हैं।लेकिन भूपेश खेमा यह मान रहा है उन्होंने पार्टी हाईकमान को झुका दिया है।छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कांग्रेस नेता के मुताविक भूपेश ने अपनी ताकत दिल्ली को दिखा दी, चर्चा तो यह भी है कि यदि दिल्ली में हाई कमान भूपेश को बदलने की बात करती तो एक आदिवासी विधायक आत्मदाह का नाटक भी करने की तैयारी में था…..? जाहिर था कि ऐसा होने पर नेशनल मीडिया में बड़ा प्रचार कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ होता भी…?अच्छी बात है कि नेतृत्व को समझ में आ गयाऔर फैसला फिलहाल टाल दिया गया….?
एक धारणा यह भी है कि इस समय कांग्रेस नेतृत्व बेहद कमजोर है। मध्यप्रदेश में विधायकों के पाला बदलने, राजस्थान और पंजाब में चल रही खींचतान के बीच अब वह छत्तीसगढ़ में कुछ भी करने की स्थिति में नही है।कई नेताओं के पार्टी छोड़ने से भी हालात खराब हुए हैं।
एक पुराने कांग्रेसी नेता के मुताविक-अब हालात बदल गए हैं।वो दिन और थे जब राजीव गांधी ने मुख्यमंत्री की शपथ लेने के अगले ही दिन एमपी के अर्जुन सिंह को पंजाब का राज्यपाल बना दिया था।उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को दिल्ली बुलाकर उनकी कुर्सी नारायण दत्त तिवारी को दे दी थी या जिस तरह सोनियां गांधी ने अजीत जोगी को गिनेचुने विधायकों के समर्थन के बावजूद नए राज्य छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बना दिया था। पर अब वे दिन नही हैं…?
जहाँ तक टी. एस . सिंहदेव का सवाल है,वह एक सौम्य और शालीन राजनेता हैं।उनके पिता मध्यप्रदेश के मुख्यसचिव रहे थे।उनकी माँ कांग्रेस में अहम पदों पर रही थीं।उनकी बहन भी कांग्रेसमें मंत्री सहित कई अहम पद पर रही हैं।
सरगुजा रियासत के प्रमुख टी एस सिंहदेव नौकरशाहों और एलीट क्लास में बहुत लोकप्रिय हैं।कॉरपोरेट क्षेत्र में भी उनकी अच्छी पकड़ है।वह अपने इलाके में लोकप्रिय हैं।यह एक संयोग ही है कि इस समय राज्य में वे सबसे अनुभवी व सुलझे हुये कांग्रेसी नेता हैं।
हाईकमान के इस फैसले से उन्हें झटका तो लगा है।हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि उत्तरप्रदेश चुनाव के बाद कांग्रेस नेतृत्व 2023 की तैयारी के लिए बघेल को दिल्ली बुलाकर सिंहदेव का राजतिलक कर सकती है…?. पर यह कयास अधिक है….लेकिन सरगुजा सूत्र यह भी कह रहे हैं कि अगर ऐसा नही हुआ तो सिंहदेव खुद घर बैठ जाएंगे।यह कांग्रेस के लिए बहुत घातक होगा।
यह भी महज संयोग ही है कि जिस भाजपा की बजह से कांग्रेस फैसला नही कर पा रही है उसी भाजपा ने आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में एक राजपूत नेता रमन सिंह को 15 साल मुख्यमंत्री बना कर रखा था…. बहरहाल कांग्रेस सीएम/सीएम के खेल में व्यस्त है और भाजपा चिंतन शिविर के बहाने अगले विस चुनाव में अपनी खोई जमीन तलाशने भी लगी है।

मुख्य सचिव अभिताभ और…?     

छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव तथा मूल छत्तीसगढ़िया अभिताभ जैन प्रचार प्रसार से दूर काम करने वाले अफसर माने जाते हैं, समय समय पर अफसरों को मीटिंग लेकर टाइट भी करते रहते हैं, राज्य सरकार की योजनाओं की सतत निगरानी भी करते रहते हैं, काम से काम रखने की उनकी नीति के चलते कभी विवादों में नही रहे… राज्य सरकार ने इस अफसर की ऊर्जा एवम आर्थिक समझ की कायल है तभी तो सरकार और नौकरशाही में अच्छा तालमेल दिख रहा है, वैसे अभी मुख्य सचिव के पास काम करने लंबा समय है, इनसे सीनियर आईएएस 87 बैच के ही बी.बी.आर. सुब्रमणियम (वर्तमान में मुख्य सचिव जम्मू-कश्मीर) का नंबर आता है। मूल कैडर में उनकी वापसी संभव नही दिख रही है। वे 6 सितंबर 22 को सेवानिवृत्त होंगे। वहीं उसके बाद वरिष्ठता सूची में 89 बैच के अभिताभ जैन है जिन्हें 21 जून 25 तक अभी नौकरी करना है उसके बाद 91 बैच की रेणु जी पिल्ले का नंबर है इन्हें 16 फरवरी 28 तक अभी काम करना है। इन्हें कभी सीएस बनाया जाता है तो छग की पहली महिला मुख्य सचिव का रिकार्ड बनेगा वहीं इनके बाद 92 बैच के सुब्रत साहू वरिष्ठता सूची में है। इन्हें 5 अगस्त 28 तक अभी नौकरी करना है। वैसे सुब्रत साहू अभी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ संबद्ध होने के साथ ही सरकार के काफी करीब है।

केंद्र की छोटी सोच और नेहरू….    

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) द्वारा जारी किए गए आजादी के अमृत महोत्सव(आजादी के 75 साल) के पोस्टर में पंडित जवाहर लाल नेहरू की तस्वीर ना लगाना ना सिर्फ निंदनीय है बल्कि केन्द्र सरकार की छोटी सोच का प्रदर्शन भी है। पंडित नेहरू आजादी की लड़ाई के दौरान 9 बार जेल गए। उन्होंने अपने जीवन के 3259 दिन (करीब 9 साल) जेल में गुजारे। अंग्रेजों का विरोध करते हुए कई बार उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किए गए बल प्रयोग का सीना तान कर सामना किया।
जहां विनायक दामोदर सावरकर ने जेल जाने के एक साल बाद में ही अंग्रेजों से माफी मांगना शुरू कर दिया था और कुल छह बार माफी मांगी एवं जेल से रिहा होने के बाद ब्रिटिश एजेंट बनकर काम किया वहीं पंडित नेहरू फौलाद की तरह अंग्रेजों के सामने खड़े रहे और भारत को आजादी दिलाकर अपना संकल्प पूरा किया।
नेहरू जी ने भारत ही नहीं विश्व पटल पर भी भारत की आजादी की बात मजबूती से रखी। भारत के सबसे अमीर परिवारों में से एक नेहरू परिवार के सदस्य श्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने देश की खातिर सारी सुख-सुविधाओं का त्याग कर अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। नेहरू परिवार के सभी सदस्यों श्री मोतीलाल नेहरू, श्रीमती स्वरूप रानी नेहरू, श्री जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती कमला नेहरू, श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित, श्रीमती कृष्णा नेहरू एवं श्रीमती इन्दिरा प्रियदर्शनी नेहरू का भारत की आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान रहा है। उनके पिता श्री मोतीलाल नेहरू ने अपना घर आनंद भवन भी क्रांतिकारियों के लिए दे दिया था। श्री मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी बनाकर आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाया। आजादी की खातिर अपना घर तक छोड़ देने वाले पंडित नेहरू के योगदान को कमतर दिखाने की कोशिश करना मोदी सरकार की छोटी सोच मात्र है।
जब सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज (आईएनए) के तीन प्रमुख कमांडरों सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज पर अंग्रेजों ने मुकदमा चलाया तो नेहरू जी ने पूरे देश में इनके समर्थन के लिए कैंपेन चलाया और आईएनए डिफेंस कमेटी बनाई। नेहरू जी ने अन्य वकीलों के साथ मिलकर लाल किले में वकालत करते हुए इनका मुकदमा लड़ा और आजाद हिन्द फौज के सैनिकों के मृत्युदंड को माफ करवाया।

पुरेंदेश्वरी का चर्चित बयान…..

बस्तर में भाजपा के चिंतन शिविर के समापन में छग प्रभारी डी पुरेंदेश्वरी का बयान कि भाजपा कार्यकर्ता थूकेंगे तो भूपेश बघेल तथा उनका मंत्रिमंडल बह जाएगा…. चर्चा में है… भाजपा की वरिष्ठ महिला नेत्री के बयान पर सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि आसमान की तरफ थूकेंगे तो खुद के चेहरे पर ही गिरेगा… बहरहाल चिंतन शिविर में क्या तय हुआ होगा यह तो सामने नही आया है पर महिला नेत्री का यह बयान जरूर लम्बे समय तक जीवित रहेगा….?

और अब बस….
0 कुछ न्यूज चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज… पेट्रोल डीजल 15पैसे सस्ता….,? पर रसोई गैस 25 रु महंगा होना बड़ी ख़बर नहीं बनी.. ?

0 छत्तीसगढ़ में कोरोना के संक्रमित मरीजों की लगातार संख्या कम हो रही है ।
0 निकट भविष्य में मंत्रिमंडल में विस्तार की चर्चा है….
0 राज्य के राजनीतिक घटनाक्रम से आईएएस/आईपीएस लाबी की गहरी निगाह है।

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