डीपी मिश्र और अर्जुनसिंह भी जीत चुके हैं छ्ग से….

{किश्त 12}

देश की राजनीति में कांग्रेस के चाणक्य का दर्जा केवल 2 नेताओं को ही हासिल था एक थे डी पी मिश्र और दूसरे थे उनके चेले अर्जुन सिंह…!किसी भी विपरीत स्थिति में ये कांग्रेस पार्टी तथा सरकार के लिये ये संकटमोचक ही साबित हुए। यह बात और है कि जीवन के अंतिम क्षणों में दोनों वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा ही हुई… ?
लौहपुरुष के नाम से चर्चित डी.पी.मिश्र ने 1963 का विधानसभा उपचुनाव कसडोल विधानसभा से लड़ा और जीतकर म.प्र. के मुख्यमंत्री भी बने रहे। उन्होंने प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार, अधिवक्ता कमलनारायण शर्मा को पराजित किया था।यह बात और है कि बाद में कमलनारायण शर्मा की चुनावी याचिका में तय सीमा से अधिक खर्च करने के नाम पर डीपी मिश्र को न्यायालय ने चुनाव लडऩे के लिए अपात्र घोषित कर दिया था।यही से डीपी मिश्र की राजनीतिक यात्रा पर भी एक तरह से विराम लग गया था।

अर्जुन सिंह विजयी रहे

अर्जुनसिंह जब अविभाजित म.प्र. के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने 1988 का विधानसभा उपचुनाव खरसिया(रायगढ़)से लड़ा। तत्कालीन विधायक लक्ष्मी पटेल ने उनके लिए विधायक पद से इस्तीफा देकर सीट खाली कर दिया था। कॉंग्रेस के अर्जुनसिंह के मुकाबले खरसिया से भाजपा ने कद्दावर नेता दिलीपसिंह जूदेव को प्रत्याशी बनाया था।इस उपचुनाव में अर्जुनसिंह मात्र 7463 मतों से विजयी रहे।जबकि वे बतौर सीएम चुनाव लड़ रहे थे। मेरे ख्याल से अर्जुन सिंह इस उपचुनाव में अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजरे थे।वे चुनाव जीतकर खरसिया से चले गये और पराजित प्रत्याशी दिलीप सिंह का जुलूस भी निकला था।कार्यकुशलता,नाप -तोलकर बोलना,गंभीरता ही अन्य लोंगों से उन्हें अलग करती थी। उनके संयमित आचरण का एक उदाहरण दिया जा सकता है…..अर्जुन सिंह के पिता को एक मामले में सजा हो गई थी,बाद में उनका निधन भी हो गया।जब अर्जुन सिंह पहली बार विधायक चुने गए तो पिता के उसी पुराने सजा वाले मामले को लेकर उन्हे भी निशाना बनाया गया था तब अर्जुनसिंह ने एक ही जवाब दिया था..” मेरी जानकारी में हमारे समाज में पिता चुनने की छूट किसी बेटे को नही रहती है….!” बस इस बयान के बाद ही वह मामला समाप्त हो गया..!वैसे छग में शुक्ल बन्धुओं की राजनीतिक पकड़ को कमजोर करने तथा अपने समर्थकों की छ्ग में फौज तैयार करने में वे सफल भी रहे। दिग्विजय सिंह,अजीत जोगी से लेकर भूपेश बघेल तक सभी उनके समर्थक कहे जा सकते हैं। यह बात और है कि ज़ब वे तिवारी कांग्रेस में चले गये थे तो उनके साथ छ्ग से कोई बड़ा नेता नहीं गया था…!

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