वाशिंगटन : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार सुबह (भारतीय समय के अनुसार) मीडिया के सामने आकर एक बार फिर से ये साफ कर दिया कि चुनाव नतीजे को मंजूर करने और उसके मुताबिक आचरण करने का उनका कोई इरादा नहीं है। ट्रंप की तरफ से उन सभी राज्यों में मतगणना या डाक से आए वोटों को चुनौती देने की कानूनी कार्रवाई शुरू की जा चुकी है, जहां मुकाबला कांटे का रहा। कोर्ट में डाली जा रही याचिकाओं के निपटारे में वक्त लगेगा। इस बीच देश अनिश्चय में फंसा रहेगा।



इस बीच जानी-मानी वेबसाइट पोलिटो.कॉम ने ये खबर छापी है कि ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल को शुरू करने की तैयारी कर ली है। वे विजयी रहे हैं, इसका संदेश देने के लिए वे जल्द ही कुछ अहम कदम उठाएंगे। मसलन, वे अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करेंगे और संभव है कि फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) के निदेशक क्रिस्टोफर व्रे को बर्खास्त कर दें, जिनसे वे नाराज रहे हैं। वे कुछ प्रशासनिक आदेश भी जारी कर सकते हैं और अपनी भावी यात्राओं का कार्यक्रम घोषित कर सकते हैं।
अमेरिकी सिस्टम के मुताबिक राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान हर चौथे साल नवंबर के पहले मंगलवार (अगर मंगलवार 1 नवंबर ना हो तो) को होता है, लेकिन निर्वाचित राष्ट्रपति 20 जनवरी को सत्ता संभालता है। अगर कोई राष्ट्रपति पुनर्निर्वाचित ना हो, तो चुनाव परिणाम आने के बाद से 20 जनवरी तक उसकी स्थिति लेमडक राष्ट्रपति यानी ऐसे राष्ट्रपति की होती है, जिससे अपेक्षा की जाती है कि वह कोई बड़े नीतिगत फैसले नहीं लेगा। मगर ट्रंप ऐसे फैसले लेकर ये संदेश देंगे कि वे जीत गए हैं। इसीलिए वे बार-बार यह इल्जाम लगा रहे हैं कि उन्हें फर्जी वोटों के जरिए कई राज्यों में हराया जा रहा है।
जानकारों के मुताबिक अपने इस व्यवहार से ट्रंप अमेरिका को सामाजिक हिंसा के रास्ते पर ले जा रहे हैं। मतदान के दिन से ही अमेरिका के विभिन्न शहरों में दोनों तरफ से प्रदर्शन किए जा रहे हैं। कई जगहों पर ट्रंप समर्थक आधुनिक बंदूकों से लैस हो कर प्रदर्शनों में आए हैं। अपने बयानों और ट्वीट्स से उन्होंने अपने समर्थकों के मन में ये बात बैठा दी है कि असल में चुनाव उन्होंने जीता, लेकिन फर्जीवाड़ा करके उन्हें हराया जा रहा है। दूसरी तरफ चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता घटाने की उनकी कोशिशों को लेकर देश में आक्रोश फैल रहा है।
पिछली गर्मियों से अमेरिका के अनेक शहरों में हिंसा और टकराव का नजारा देखने को मिला है। चुनाव से ठीक पहले आए एक सर्वे में बताया गया कि दोनों ही प्रमुख पार्टियों के समर्थकों के एक बड़े हिस्से में हिंसा की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है। इसके मुताबिक एक तिहाई डेमोक्रेट और इतने ही रिपब्लिकन यह मानते हैं कि अपने राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हिंसा का सहारा वैध तरीका है। तीन साल पहले की तुलना में ऐसा मानने वालों की संख्या में ये भारी बढ़ोतरी है।
जानकार इसे अमेरिका में हुए तीखे सियासी ध्रुवीकरण का ही परिणाम मान रहे हैं कि इस बार रिकॉर्ड संख्या में मतदान हुआ। लगभग 16 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले, जबकि 2016 में 13 करोड़ 80 लाख लोगों ने मतदान किया था। इस बार लगभग दस लाख लोगों ने तो डाक से वोट भेजे, जिसको लेकर ट्रंप शुरू से ही अविश्वास का माहौल बनाते रहे हैं। अब उन्होंने पूरी चुनाव प्रणाली को संदिग्ध करने का प्रयास किया है, जिससे अभूतपूर्व अनिश्चय की स्थिति पैदा हो गई है।