20 साल बाद फिर इंदौर -भोपाल में दिग्विजय सिंह की “कांग्रेस”

इंदौर। कई महीनों के इंतजार के बाद आखिरकार इंदौर शहर कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल ही गया। राजनीतिक तौर पर अगर इसे समझने की कोशिश करें तो साफ है कि बीते करीब 20 साल बाद एक बार फिर से इंदौर की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का संगठन पर कब्जा हो गया। इसके पूर्व सीधे तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के दखल के चलते विनय बाकलीवाल इस पद पर रहे। विवादों के कारण उनकी विदाई हो गई। यही वजह रही कि चार महीने से ज्यादा समय तक शहर कांग्रेस को अध्यक्ष नहीं मिल पाया। बढ़ते विवादों से खुद को दूर रखते हुए कमलनाथ ने भी यहां ज्यादा ध्यान देना उचित नहीं समझा। ऐसे में मौका दिग्विजय सिंह कैम्प के हाथ लगा और दो महीने पहले इस पद की दावेदारी करने वाले पूर्व पार्षद सुरजीत सिंह चड्डा को दिल्ली की हरी झंडी मिलने के बाद अध्यक्ष पद दे दिया गया। मप्र की आर्थिक राजधानी कही जाने वाले इंदौर में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के करीबी नेता शहर और जिले को संभालते रहे। दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुखिया बनने के बाद वरिष्ठ नेता महेश जोशी ने शहर की राजनीति को चलाया। रामनारायण तिवारी के बाद पंडित कृपाशंकर शुक्ला और उजागर सिंह शहर अध्यक्ष रहे। अब उनका बेटा नया अध्यक्ष बना है।
इस तरह कट्टर विरोधियों को एक मंच पर लाए थे चौकसे
शहर कांग्रेस में एक दौर ऐसा भी आया जब ज्योतिरादित्य सिंधिया का इंदौर की राजनीति में दखल बढ़ा ( जब वो कांग्रेस में थे ) लेकिन उनके लिए संगठन दूर की कौड़ी था। तब सज्जन वर्मा के सबसे करीबी नेता रहे राजेश चौकसे ने बड़ी भूमिका निभाई । आपसी घोर विरोधी माने जाने वाले सज्जन वर्मा और तुलसी सिलावट के साथ तात्कालिक विधायक भल्लू यादव सहित सारे दिग्विजय सिंह विरोधियों को एक मंच पर ला दिया। प्रमोद टंडन सबका सहमति वाला नाम बना। चौकसे के कारण सिंधिया को इंदौर का संगठन मिला और सज्जन , तुलसी के साथ सुभाष यादव गुट भी ताकतवर हो गया। ये वो दौर था जब लंबे अरसे के बाद एक गुट विशेष कमजोर हुआ और उसका असर 18 साल से ज्यादा इंदौर में दिखा।।              इंदौर – भोपाल दोनों दिग्विजय सिंह के
दिग्विजय सिंह राजनीति के सबसे मजबूत और मंजे हुए खिलाड़ी हैं। राजनीति में धैर्य रखना कोई उनसे सीखे , ये उसी का प्रमाण है कि सबके थक जाने के इंदौर और भोपाल जैसे गढ़ अब उनके समर्थकों के पास हैं। संगठन में पकड़ और राजनीतिक दक्षता में उनका कोई सानी नहीं है। एक ही झटके में इंदौर में दखल रखने वाले नेताओं को उन्होंने ने किनारे कर दिया। अभी तक यहां सज्जन वर्मा , जीतू पटवारी और अरुण यादव जैसे मजबूत नेताओं की राजनीतिक तूती बोलती थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *