मजबूरी में घर से निकले प्रवासी मजदूरो की मौतों पर पूर्णतया रोक लगाने उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मांग

बिप्लब् कुण्डू,पाखंजुर : सोशलिस्ट यूनिटी सेन्टर ऑफ इण्डिया (कम्युनिस्ट) जिला – कांकेर( छःग) ने मजबूरी में घर से निकले प्रवासी मजदूरों की राह चलते हो रही मौतों पर कारगर ढंग से पूर्णतया रोक लगाने, उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने तथा अन्य मांगों को पुरा करने केन्द्र एवं राज्य सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के नाम पर अनुविभागीय अधिकारी( रा.) पखांजूर के हाथों ज्ञापन दिया।

मजदूरों का हृदय विदारक दर्द ,दिल दहला देने वाली हजारों घटनाएं मानवता के मनवीय मूल्यबोध ,इन्सानियत को झकझोर कर शर्मसार करके रख दिया ।एक और उनके हाथों में फूटी कोड़ी नहीं हैं ना पेट में एक दाना है कई दिन कआ भुखा एसे समय ।उपर से पुलिसजनों का बर्ताव बेहद क्रूर, अमानवीय व असभ्य रहा है। उनकी मार मजदूरों की जीवन नरक से घिनौना बना दिया हैं। एक और हमदर्दों द्वारा मजदूरों को सहायोग करने वालो पर कानून कार्यवाही करना देश में इन्सानियत को खत्म करने का खतरनाक बात हैं ।

एसयूसीआई कम्युनिस्ट कांकेर जिला का संयोजक महेश मण्डल ,ज्योत्स्ना अधिकारी आदि ने कहां है कि मजबूरी में घर से निकले प्रवासी मजदूरो की मौतों पर पूर्णतया रोक लगाने उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाया जाए।पूरे देश में कोरोना काल के लॉकडाउन से उपजी भारी कठिनाइयों और बेबसी से पीड़ित होकर अन्य कोई उपाय न रहने पर अनेक प्रवासी मजदूर बच्चों, महिलाओं और वृद्धों समेत दूसरे राज्यों में अपने घरों की ओर चल पड़े। रास्ते में, हालांकि, कुछ जगह उन्हें समाज के लोगों ने यथासंभव सराहनीय ढंग से खाने-पीने की चीजें उपलब्ध कराने की कोशिशें की लेकिन उपस्थित समस्या को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं रही।

भीषण गर्मी में उनमें से अनेक भूख प्यास से व्याकुल होकर दम तोड़ कर चल बसे ।पैरों में छाले, घाव होने पर भी वे चलते रहे। पैरों के जवाब देने पर बच्चा पीठ पर बिठा कर हिम्मत के साथ रेंगते हुए वे चले।कई महिलाओं को सड़क पर खुले में ही बच्चों को जन्म देना पड़ा जिनमें से कुछ की मौत भी हो गई। कई स्थानों पर दुर्घटनाओं में इन प्रवासी मजदूरों की दुखदाई मौतें हुई हैं जिनमें औरंगाबाद रेल दुर्घटना को सारा देश जानता है। एक अनुमान के अनुसार ये मौतें 600 को पार कर गई हैं जबकि बहुत सारी घटनाओं की सूचनाएं नहीं हैं। इसी तरह से कईयों ने काम के अभाव से कुपित होकर मानसिक आघात आदि कारणों से सुसाइड का दुखदाई रास्ता भी चुना है।आज तक केंद्र व राज्य सरकारों अथवा प्रशासन की ओर से इन्हें मुआवजा देने की बात तो दूर रही, उनके लिए धीर-धोपना या सांत्वना के दो शब्द तक नहीं कहे गए हैं।

यह और भी हृदय- विदारक है कि राह चलते इन प्रवासी मजदूरों के साथ पुलिसजनों का बर्ताव बेहद क्रूर, अमानवीय व असभ्य रहा है। इसे रोकने के लिए कोई प्रयास नजर नहीं आए हैं और सरेआम ऐसे गैर-जिम्मेदाराना, अपराध-पूर्ण व्यवहार, बर्ताव के दोषियों के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई की कोई भी सूचना नहीं है यह जानकर सबसे भारी तकलीफ होती है, मन टूट जाता है, रोता है, नींद व चैन छूट जाता है कि पैदल या जैसे-तैसे वाहनों में बहुत ही अमानवीय हालात में राह चलते इन प्रवासी मजदूरों को पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं हो रहा है, ऊपर से उनके साथ कुछ जगह मारपीट व घृणा की भी भीषण बौछारें की जा रही हैं।सरकारी मशीनरी क्यों आगे आकर राहत दिलाने के काम में हाथ नहीं बटा रही, यह समझ से बाहर है।

वैध-अवैध के रटे रटाए पाठ के साथ पीड़ित बेबस इंसान, देशवासियों से एक इंसान जैसा तो छोड़िए युद्ध के कैदी जैसा बर्ताव भी नहीं देखने में मिल रहा। एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के सरकारी वाहनों से भेजे गए मजदूरों को वापस लौटाने, ऊपर से पुलिस द्वारा उनसे मारपीट की सूचनाएं बहुत ही संकीर्ण व संकुचित हो चुके मीडिया में देखने, सुनने, पढ़ने आई हैं।इन भीषण हालातों पर कोई भी सभ्य राष्ट्र मूक नहीं रह सकता और आज कोरोना-लॉकडाउन की स्थिति में अपने देश की सरकार, व्यवस्थापकों से पुकार करने के अलावा अन्य कोई उपाय बचता भी नहीं है। लिहाजा केन्द्र एवं राज्य सरकार से पुरजोर मांग है कि;- सभी राज्यों से प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए पर्याप्त संख्या में रेलगाड़ियां चलाई जाएं।

हर जिला मुख्यालय से ऐसी गाड़ियां चलाई जाएं। जाने के इच्छुकों का रजिस्ट्रेशन करने की सार्वजनिक सूचनाएं हों। पंजीकरण की प्रक्रिया सरल हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि जो रास्ते में हैं, उनको भोजन, पानी व चिकित्सा उपलब्ध हो । सरकार व प्रशासन उन्हें भी घरों तक सुरक्षित पहुंचाने की व्यवस्था करें।जगह-जगह सहायता केंद्र स्थापित किए जाएं।अब तक जो प्रवासी मजदूर मारे जा चुके हैं, उनके परिवारों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए।हर गांव-शहर में रोजगार के पर्याप्त उपाय किए जाएं। गांव में मनरेगा के कार्य बड़े पैमाने पर तत्काल शुरू किए जाएं।

हर गांव-शहर में हर गरीब परिवार को 10-10 हजार रूपये की न्यूनतम आर्थिक सहायता अविलम्ब दी जाए। कोरोना के लक्षण मिलते ही जांच से लेकर उपचार तक निशुल्क बेहतरीन प्रबंध किए जाएं. निशुल्क एंबुलेंस प्राप्त हों। चिकित्सकों, नर्सों व सहयोगी स्टाफ को पीपीई, मरीजों के लिए वेंटिलेटर, बेड, सफाई, भोजन आदि की उचित व्यवस्था की जाए। केंद्र व राज्य सरकार अपने अपने स्तर पर कोरोना-लॉकडाउन काल में दिखाई दी गई कमियों का आकलन करें और गैर-जिम्मेदाराना, लापरवाहपूर्ण व टिरकाऊ रवैये की समीक्षा करें और उन्हें अविलंब दूर करने के कदम उठाएं। इस बारे सरकारी आदेश जारी किए जाएं।कोरोना-लॉकडाउन काल में श्रम कानूनों, मंडी कानूनों, आवश्यक वस्तु कानूनों, सार्वजनिक क्षेत्र को प्राइवेट पूंजी के हितों में खोलने जैसे नाजायज व नकारात्मक कदमों से केंद्र व प्रदेश सरकार दूर रहें। अब तक जारी किए गए ऐसे आदेशों को वापस लिया जाए और नागरिकों के जीवन, रोजगार, शिक्षा, जीने के साधनों, आवागमन के बेहतरीन संचालन व तात्कालिक जरूरतों पर अपना ध्यान केंद्रित करें आदि पुरा करने सरकार से अपिल किया हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *