{किश्त81}
अबूझमाड़ छत्तीसगढ़ का एक ऐसा क्षेत्र है जिसके बारे में पूरी तरह आज भी कोई नहीं जानता। यहां अब भी कैसे और कितने आदिवासी हैं, किसी को नहीं पता।इनकी सही संख्या तो छोड़िए,यह रोंगटे खड़े कर देने वाला ऐसा रहस्यमय इलाका है जिसका आज इस इक्कीसवीं सदी में भी राजस्व सर्वेक्षण नहीं हो पाया है। प्रयास अब भी जारी है।प्राकृतिक सौंदर्य से भरे मगर बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे अबूझमाड़ में तो जिंदगी आपकी कठोरतम परीक्षा लेती है।हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सन 1986 में बीबीसी की टीम ने किसी तरह यहां के घोटुलों में रह रहे नग्न जोड़ों की फिल्म उतार ली थी,इसके बाद इस इलाके में बाहरी दुनिया के लोगों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया।सन 2009 में छत्तीसगढ़ सरकार ने यह प्रति बंध हटाया।हालांकि इसके बाद भी बाहरीआदमी अबूझ माड़ के अंधकार से घिरे जंगलों में नहीं जाता।इतना घना क्षेत्र है कि यहां सूरज की किरणें भी नहीं पहुँचती है।नारायणपुर जिले से लेकर महाराष्ट्र तक लगभग 4400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला अबूझमाड़ का जंगलआजादी के 77 साल बाद भी दुनिया के लिए अबूझ पहेली ही है।अबूझमाड़ के जंगलों में अभी भी आदिम संस्कृति फल फूल रही है।
प्रसव पद्धति और अमेरिका…..
अबूझमाड़ में जनजातीय महिला प्रसव के लिए जिस पद्धति को अपनाती है उसका अनुसरण अमेरिका जैसा आधुनिक देश भी करता है। अबूझमाड़ में गर्भवती को एक झूलेनुमा पाटे में बिठा दिया जाता है।वह झूले की रस्सी को पकड़ कर बैठती है इससे पेट पर दबाव बढ़ता है तथा रस्सी जोर से पकडऩे से पेन किलर का काम करता है। जिस विशेष झोपड़ी में प्रसव कराया जाता है उसे गोण्डी भाषा में ‘कुरमा’ कहा जाता है।विकसित देश अमेरिका सहित कुछ अन्य देशों में बैठकर प्र lसव कराने की नई वैज्ञानिक पद्धति शुरु की गई है यह बात और है,अबूझमाड़ में गर्भवती महिलाओं को झूले नुमा पाटे में बिठाकर ‘कुरमा’ झोपड़ी में प्रसव कराया जाता है तो अमेरिका में आधुनिक अस्पतालों में एक करोड़ की लागत से बनाये गये कुर्सीनुमा उपकरण में बिठाकर प्रसव कराया जाता है।