{किश्त75}
छत्तीसगढ़ में दाऊ कल्याण सिंह अग्रवाल के नाम की चर्चा जरुरी है। 1828 जिला बिलासपुर के ग्राम तरेंगा में उदय हुआ तहुत दारी का,तहुतदारी के जन्म के 48 वर्ष बाद,4 अप्रैल 1876 को जन्म हुआ दाऊ कल्याण सिंह का।पिता बिसेसर नाथ व मातापार्वती देवी थी। पिता तहुतदार थे।ताहुतदारी बढ़ाने,राजस्व आय को दृष्टिगत रखते हुए निर्जन स्थानों पर नए गांव बसा कर अपने ताहुतदारी गांवों में वृद्धि की,पर साथ ही कर्ज का बोझ भी बढ़ा लिया।कारोबार ठीक चल ही रहा था कि बिसेसरनाथ की मृत्यु हो गई,सन1903 जब पिता की मृत्यु हुई दाऊ तब 27 वर्ष के थे।27 वर्ष की आयु में कारोबार का भार दाऊ के कंधे पर आया और साथ मे आया 2 लाख 12 हज़ार का कर्ज भी।इस कर्ज के एवज में तरेंगा की उनकी संपत्ति जबलपुर के सेठ गोकुल दास के पास गिरवी थी। दाऊ की पढाई तरेंगा ग्राम में ही हुई, प्रबन्ध कौशल किसी शहर वाले से भी तेज था। कारोबार हाथ मे लेते ही सूझबूझ,प्रबंध कौशल से सारा कर्ज जल्द ही उतार दिया और अपने क्षेत्र में ऐसा विकास किया कि ताहुतदारी की वार्षिक आय तीन लाख तक पहुंच गई। कारोबार में बढ़ोतरी अब ऐसी थी कि सन 1937 में “दाऊ कल्याण सिंह” ने 70 हज़ार रुपये से अधिक का राजस्व पटाया। इनआकडों से उनका परिश्रम, प्रबंधन कौशल दोनो झलकता है। दाऊ केवल कमाने के लिए मशहूर नही थे,प्रेमभाव से अपनी संपत्ति लोगों में बांटने के लिए भी मशहूर थे। छत्तीसगढ़ के इतिहास में इनसे बड़ा दानी शायद ही आपको कोई और मिलेगा।छत्तीसगढ शासन का मंत्रालय जिस भवन में स्थापित था,वह पहले चिकित्सा सुविधाओं से परिपूर्ण डीके अस्पताल (दाऊ कल्याण सिंह) हुआ करता था।अस्पताल के निर्माण के लिए दाऊ ने सन् 1944 में एक लाख पच्चीस हजार रूपये दान दिया था।वह छग में एक मात्र आधुनिक चिकित्सा का केन्द्र था।प्रदेश के दूर दूर गांव व शहर से लोग निःशुल्क चिकित्सा के लिए इस अस्पताल में आया करते थे।दान के रूप में कल्याण कारी कार्यो की लंबी सूची है,रायपुर के लाभांडी में कृषि कालेज हेतु कृषि प्रायोगिक फार्म के लिये 1729 एकड़ भूमि तथा 1 लाख 12 हज़ार नगद उन्होंने दान किया था।रायपुर में 323 एकड़ भूमि क्षयग्रस्त रोगियों के आयोग्यधाम निर्माण हेतु दान किया।रायपुर के प्रसूति अस्पताल में कई कमरों का निर्माण,रायपुर के पुरानी बस्ती टुरीहटरी में जगन्नाथ के प्राचीन मंदिर को खैरा नामक पूरा गांव दान में चढ़ा दिया था।ये कुछ ही उदाहरण थेउनकी दानवीरता के। इसलिए दाऊ नही होते तो रायपुर का नक्शा ही कुछ और होता।उन्होंने केवल रायपुर ही नही बल्कि प्रदेश व देश के अनेक स्थानों पर अपनी महानता की छाप छोड़ी है,सन 1921 के भयंकर अकाल के समय,पीड़ितों के लिए भाटापारा में लाखों खर्च कर बड़े जलाशय का निर्माण करवाया,जिसे लोग कल्याण सागर जलाशय के नाम से पहचानते है।भाटा पारा में ही मवेशी अस्प ताल,धर्मशाला,पुस्तकालय का निर्माण भी करवाया गया था। दाऊ की उदारता प्रदेश की सीमा में कैद नही रही,नागपुर स्थित लेडी डफरिन अस्पताल,सेंट्रल महिला कालेज का निर्माण नही हो पाता अगर दाऊ कल्याण सिंह दान राशि उपलब्ध नही कराते। बिहार के भूकंप का समय हो या वर्धा में बाढ़ का,या उनके पहुँच वाले क्षेत्र में कोई अकाल, सभी प्राकृतिक आपदाओं के समय दाऊ अपने कोष का मुँह खोल दिया करते थे।दाऊ को लोग कट्टर हिन्दू माना करते थे,लेकिन जब दान करते, तब दानधर्म ही उनके लिए सबसे बड़ा धर्म बन जाता था,उन्होंने धर्म,जाति,या वर्ण से कभी कोई भेदभाव नही किया।मंदिर,मस्जिद, चर्च सभी के लिए भूमि उपलब्ध कराई। बाजार, कांजीहाउस,शासकीय कार्यालय भवन,स्कूल, गौशाला,शमशान,सड़क, पुस्तकालय, तालाब आदि अनेक कार्यो के लिये न केवल भूमि मुहैया कराई वरन नगद राशि भी दान की। दाऊ का छत्तीसगढ़ के लिये जितना प्यार था,हम उन्हें उसका आधा भी नही दे पाए,आज दाऊ को लोग भूल चुकेहैँ। किसी मंच से उनका नाम सुनाई ही नहीं देता है।