नई दिल्ली : हवाई रास्ते से स्वदेश आया कोरोना वायरस अब पैदल-पैदल हिंदुस्तान के गांव-गांव तक पहुंचने लगा है। इस संक्रमण के वाहक बन रहे हैं प्रवासी मजदूर। इसे श्रमिकों की मजबूरी कहिए या सरकार की बदइंतजामी, लेकिन पलायन अपने साथ सिर्फ रोजगार नहीं ले जा रहा बल्कि ग्रामीण भारत को भी कोविड-19 के चपेट में ले रहा है। मुंबई-दिल्ली जैसे महानगरों में खौफ का दूसरा नाम बनने के बाद अब देश के कई राज्यों के छोटे-छोटे जिलों और गांवों से नए मामले सामने आने लगे हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर प्रवासियों की घर वापसी हुई थी, जिसके बाद अब ग्रामीण क्षेत्रों में 30 से 80 फीसदी तक मरीजों के आंकड़ों में बीच उछाल दर्ज की गई है।
हिंदुस्तान का ऐसा शायद ही कोई कोना होगा, जहां बिहार के लोग न मिले। 3 मई के बाद लगभग तीन हजार प्रवासियों की घर वापसी हुई है। फिलहाल 70% मामले प्रवासियों के ही हैं। एक अधिकारी ने बताया कि 1 अप्रैल को, बिहार में कोरोना के 24 पॉजिटिव केस थे और उनमें से पांच ग्रामीण क्षेत्रों से थे, ये सभी खाड़ी देशों से वापस आए थे। 1 मई को, संख्या 450 तक पहुंच गई। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से लगभग 20 लाख प्रवासी कामगारों और अन्य फंसे हुए लोगों को बिहार भेजा गया। दो लाख से अधिक लोगों के सड़क मार्ग से लौटने का अनुमान है। बिहार से सटे राज्य उत्तर प्रदेश की भी यही स्थिति है। करीब 30 लाख प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों से वापस आए हैं। एक्टिव मामलों को देखें तो बस्ती और अमेठी जैसे छोटे जिले क्रमशः दूसरे और तीसरे पायदान पर आ गए हैं। 2 जून तक बस्ती में कोरोना के 183 और अमेठी में 142 केस हो चुके। 2 जून तक राज्य के 3324 कोरोना मामलों में से 70 फीसदी प्रवासी मजदूरों से जुड़े थे।