{किश्त 4}
अविभाजित म.प्र. में जनसंघ तथा बाद में भारतीय जनता पार्टी को स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली ग्वालियर राज्य की राजमाता स्व. विजयाराजे सिंधिया की 100 वीं वर्षगांठ हाल ही म.प्र. में मनाई गई है।राजमाता का नाम आने से छत्तीसगढ़ के कुछ दिनों के सीएम रहे राजा नरेशचंद्र (सारंगढ़) का नाम भी याद आना स्वाभाविक है।बहुत कम लोगों को मालूम है कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया मध्यप्रदेश के सागर क्षेत्र के राणा परिवार की बेटी थी उनके पिता महेंद्र सिंह ठाकुर जालोन जिला के डिप्टी कलेक्टर थे अपने पति महाराजा जीवाजीराव सिंधिया के मृत्यु के पश्चात राजनीति में सक्रिय हुई। राजमाता 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना संसदीय क्षेत्र से सांसद रहीं। 12 अक्टूबर 1919 को जन्मी राजमाता का निधन 25 जनवरी 2001 को हुआ। उनकी एक बेटी वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं तो एक और बेटी यशोधरा राजे मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री है तथा उनका पोता ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा की मोदी सरकार में मंत्री है।कभी ये राहुल गांधी के विश्वसनीय सहयोगी हुआ करते थे।दरअसल द्वारिका प्रसाद मिश्रा म.प्र. के सीएम बने और 1964 में उन्होंने मंत्रिमंडल का गठन किया था। उस मंत्रिमंडल के गठन को लेकर असंतोष था।एक तरफ श्रीमती विजयाराजे सिंधिया,डी.पी. मिश्र से असंतुष्ट थी तो दूसरी ओर गोविंद नारायण सिंह की महात्वाकांक्षा जोर मार रही थी। सूत्र कहते हैं कि सिंधिया चाहती थीं श्यामा चरण शुक्ल दलबदल करके मुख्यमंत्री बन जाये पर वे सहमत नहीं हुये। श्रीमती सिंधिया ने गोविंद नारायण सिंह को भी यही आफर दिया था। इधर छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी विधायक बृजलाल वर्मा और गणेशराम अनंत भी मंत्रिमंडल में नहीं लिये जाने के कारण नाराज चल रहे थे। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ के विधायकों को तोडऩे में पं. शारदाचरण तिवारी की बड़ी भूमिका रही। कुल मिलाकर कांग्रेस के 35 विधायक तोड़ लिये गये। कुछ विधायकों को दिल्ली ले जाकर पुरानी दिल्ली की मैडन्स होटल में ठहराया गया।1967 में म.प्र. विधानसभा में दल-बदल की यह कोई पहली घटना नहीं थी। यह कहा जा सकता है कि न केवल विधानसभा किंतु राजनैतिक दलों के नैतिक चरित्र की गिरावट यहीं से शुरू हुई।बहरहाल संविद शासन के पदारूढ़ होने के बाद गोविंद नारायण सिंह के बाद छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ के राजा नरेशचंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने वे सरल प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। किंतु उनमें संगठन क्षमता का अभाव था। इसके पीछे उनका राजघराने का वातावरण भी हो सकता है। श्रीमती सिंधिया का बड़ा वर्चस्व तथा जनसंघ के नेताओं की दखलअंदाजी के बीच 13दिन ही राजा नरेशचंद्र मुख्यमंत्री रहे पर तब तक संविद शासन में असंतोष बढऩे लगा था तब कांग्रेस विधायक दल के नेता श्यामाचरण शुक्ल थे और उन्होंने बहुत से कांग्रेसी विधायकों को वापस लाने का भी पूरा प्रयास किया। इसी बीच जबलपुर उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने द्वारिका प्रसाद मिश्र के कसडोल चुनाव को अवैध करार दे दिया और मिश्रजी को छ: वर्ष तक चुनाव लडऩे के लिए अपात्र घोषित कर दिया। गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व वाली संविद सरकार का पतन,राजा नरेशचंद्र के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही दलबदल करके गये कांग्रेसी विधायकों की वापसी के बाद पं. श्यामा चरण शुक्ल के सीएम बनने का मार्ग बाद में प्रशस्त हो गया। कुल मिलाकर राजमाता सिंधिया को इस रूप में भी छत्तीसगढ़ याद करता है कि छत्तीसगढ़ से पं. रविशंकर शुक्ल के बाद अविभाजित म.प्र. में राजा नरेशचंद्र सिंह,श्यामाचरण शुक्ल आदि को सीएम बनने का मौका मिलने के पीछे राजमाता की भूमिका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रही। छत्तीसगढ़ दौरे पर राजमाता आती रही थीं । कोंटा उपचुनाव में वे सरदार आंग्रे के साथ प्रचार करने पहुंची थी हालाकि उस उपचुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी। ज्ञात रहे कि राजा माता के पुत्र माधव राव सिंधिया उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया शुरू से कांग्रेस में रहे हैंऔर ज्योतिरादित्य फिलहाल मप्र में कमलनाथ की सरकार गिराने में बड़ी भूमिका अदा करने के कारण भाजपा की केंद्र में मोदी सरकार में मंत्री हैं।