कॉंग्रेस को पराजय का दर्शन सीखना होगा

सतीश दीवान । उत्तरप्रदेश सहित पाँच राज्यों के चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन से कार्यकर्ताओं का निराश एवं कुंठित होना स्वाभाविक है । जनता जब किसी दल को सत्ता सौपति है वहीं दूसरी ओर अन्य सक्षम दल को सत्ता की निगरानी हेतु विपक्ष का उत्तरदायित्व भी सौपति है । लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष एक दूसरे के पूरक होते हैं । अतः चुनाव में पराजित होने को अपमानित अथवा हतोउत्साहित बिलकुल नजिन होना चाहिए । पराजय में ही विजय का संदेश छुपा होता है तथा जो दो इस संदेश को पढ़ नहीं पाते उनकी सफलता संदिग्ध होती है । काँग्रेस को भी पराजय का दर्शन सीखना होगा ।

काँग्रेस के शक्ति का आंकलन उसके मौजूदा हालात से नहीं किया जाना चाहिए । वह आज भी देश की शानदार एवं जानदार पार्टी है जिसकी भारत के हर कोने में उपस्थिति है तथा कुछ राज्यों में सत्तासीन तथा विभिन्न राज्यों में मान्यता प्राप्त विपक्षी दल है । काँग्रेस की असली पु जी उसकी विचारधारा है जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जन्मी थी । धर्मनिरपेक्षता, समानता, स्वतंत्रता, संसदीय लोकतंत्र जैसे गुणों को आधार बनाकर काँग्रेस देश मे लंबे समय तक राज करती आई तथा देश का, विश्व में विशिष्ट स्थान दिलाने में बड़ा योगदान रहा । कांग्रेस ने लोकतांत्रिक मूल्यों की जड़ों को मजबूत करने का बड़ा काम किया है । किंतु आज देश मे काँग्रेस, विचारधारा एवं संगठन की दृष्टि में अत्यंत कमज़ोर हो चुकी है । जिसका दुष्परिणाम, मुसलसल एक के बाद एक राज्य उसके हाथों से खिसकता जा रहा है । कांग्रेस के नेतृत्व पर पार्टी के भीतर और बाहर से सवाल उठाये जाते रहे हैं । पार्टी का नेतृत्व कौन करे यह विपक्ष का काम नहीं है । कॉंग्रेस के अगर हज़ारों कार्यकता और नेतागण का, गाँधी परिवार से का नेतृत्व स्वीकार है तो अन्यों का आपत्ति निरर्थक है । नरेंद्र मोदी के उदय के बाद कॉंग्रेस को अपनी भूमिका पर विचार करना होगा तथा सकारात्मक राजनीति सड़क से लेकर संसद तक सक्रिय रहने पड़ेगा । श्री राहुल गांधी का नकारात्मक सोच से पार्टी को अब तक कोई लाभ नहीं मिला है ।

लगातार पराजय से अब तो आँख खुल ही जानी चाहिए । G23 सहित पार्टी के शीर्ष एवं वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर पूरे देश मे संगठन को मजबूत किये जाने हेतु कदम उठाना चाहिए । सम्पूर्ण देश में विधायिका में 33 प्रतिशत आरक्षण, बेरोजगारी, महंगाई के विरुद्ध व्यापक आंदोलन की योजना बनाकर बड़ी लड़ाई के लिए संगठन को तैयार करना होगा । इस हेतु छत्तीसगढ़ राज्य की ज़मीन सर्वाधिक उर्वरा है जहाँ, यहाँ की जनता के तीन चौथा बहुमत देकर सत्ता और संगठन को सुदृढ़ बनाया है ।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार राजधानी रायपुर में, इंडिया गेट शहीद स्मारक बनाने एवं गाँधीजी द्वारा हिन्द स्वराज में वर्णित ग्रामीण अर्थव्यवस्था जैसे राष्ट्रवाद एवं गांधीवाद पर आधारित है । श्री बघेल की सरकार देश में एकमात्र ऐसी सरकार है जिसने अपने शपथ लेने के चंद घंटों के भीतर ही चुनाव में कर्ज़ माफ़ी, 2500 में धान खरीदी, आधा बिजली बिल, जैसे वादों को पूरा किया । प्रदेश में सत्ता और संगठन अच्छे तालमेल के साथ जनकल्याणकारी कार्यों को अमलीजामा देने में लगे हुए हैं । भूपेश बघेल की राष्ट्रीय छवि को देखते हुए उनका उपयोग पिछड़े वर्ग के बड़े चहरे के रूप में केंद्र द्वारा बड़ी भूमिका के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए । लेकिन यह निर्णय छत्तीसगढ़ के सन 2023 के अंतिम माह में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद लिया जाना चाहिए । उनके स्थान पर छत्तीसगढ़ के अति पिछड़े वर्ग से आने वाले डॉ. चरणदास महंत को राज्य का दायित्व सौंपा जा सकता है । छत्तीसगढ़ हरिजन आदिवासी बहुल राज्य है इसलिए यहाँ की धरती को राष्ट्रव्यापी आंदोलन हेतु उपयुक्त मंच के रूप मे इस्तेमाल किया जा सकता है । कॉंग्रेस मजबूत होगा तो देश मजबूत होगा ।                       ( ये लेखक के निजी  विचार हैं )

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