कामरेड सुधीर दादा,मजदूर नेता,विधायक से शतरंज के खिलाडी तक…

{किश्त45}

एक कामरेड सुधीर मुखर्जी भी थे,साइंस कालेजनागपुर के छात्रसंघ चुनाव में श्यामा चरण शुक्ला को हराया था तो सीपीआई से रायपुर से विधायक भी बने,पर1980 में सीपीआई से जांजगीर लोकसभा से पराजित भी हुए… सुबह एक रिक्शे से शहर का दौरा करने वाले दादा शाम को छोटापारा में तब के वरिष्ठअधिवक्ता हैदर अली के घर जाकर शतरंज की बाजी भी खेला करते थे।1972 के विस चुनाव में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के कामरेड सुधीर मुखर्जी रायपुर से विधायक बने थे। दरअसल उस चुनाव में कॉंग्रेस और सीपीआई के बीच तालमेल हुआ था,रायपुर विधान सभा की सीट कांग्रेस ने सीपीआई के लिये छोड़ी थी। तब सुधीर दादा बड़े मजदूर नेता थे। रायपुर आकर तब की पीएम इंदिरा गाँधी ने आम सभा में सुधीर मुखर्जी को बुलवाकर उन्हें विजयी बनाने की अपील जनता से की थी। सुधीर दादा को तब 30347 और जनसंघ के मनसुख लाल चंदेल को 16882 मत मिले थे और दादा विजयी भी रहे थे।वैसे 1972 में विजयी कई विधायक बाद में बड़े नेता बने थे। मोती लाल वोरा राजा नरेशचंद्र सिंह,बिसाहू दास महंत पुरुषोंत्तम लाल कौशिक बलदेव प्रसाद मिश्र प्यारे लाल कंवर,मथुरा प्रसाद दुबे,राजेंद्र प्रसाद शुक्ला रेशमलाल जांगड़े देवी प्रसाद चौबे किशोरी लाल शुक्ला, झूमुकलाल भेड़िया आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।वहीं इसी चुनाव में ही नेमीचंद श्रीश्रीमाल,ननकी राम कँवर मनहरण लाल पांडे,पवन दीवान,वासुदेव चंद्राकर आदि की हार भी चर्चा में रहीं। कामरेड सुधीर मुखर्जी का जन्म 30 नवम्बर सन् 1919 को दमोह में हुआ था।किंतु वे बचपन में ही बूढ़ापारा, रायपुर में अपने मामा बीरेन्द्र कुमार बनर्जी के घर आ गये थे,जो रायपुर जिला कौंसिल में उपाध्यक्ष थे।सुधीर दादा ने साइंस कालेज नागपुर में शिक्षा ली,बाद में सुधीर दादा ने विधि स्नातक की शिक्षा रायपुर से प्राप्त की।पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् उन्हें रायपुर डिस्ट्रिक्ट कौंसिल में ही नौकरी प्राप्त हो गयी थी।अपने शिक्षा के समय से ही कामरेड सुधीर मुखर्जी,निखिल भूषण सुर बिपिनबिहारी सूर एवं परस राम सोनी के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरूद्व आंदोलन में भाग लेने लगे थे। इसी समय वे बंगाल के क्रांति कारियों के बारे में पढ़ते हुये उनके कार्यों एवं विचारों प्रभावित हुये और वामपंथ की ओर आकर्षित हुये थे। वे सन् 1935 में ही एण्टी इंपीयरियलिस्ट कान्फ्रेंस में भाग लेने नागपुर गये थे। इस संगठन में वे जनरल सेक्रेटरी बनाये गये थे।उन्होंने सन 1940 से ही राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेना शुरु कर दिया था क्योंकि उनके मामा श्री बैनर्जी स्वयं एक राष्ट्रभक्त सेनानी थे।सुधीर मुखर्जी के मित्र सूर बंधु एवं परसराम सोनी अंग्रेजों के विरूद्व सशस्त्र क्रांति की योजना बना रहे थे। इस योजना को सही रुप देने में सुधीर मुखर्जी का महत्व पूर्ण योगदान था। परसराम सोनी के साथ मिलकर बम एवं बंदूक बनाने में वे सक्रिय हो गये थे।अपने बनाये हुये बम और बंदूकों का परीक्षण कर उसकी ताकत एवं सफलता की जांच करने की वजह से वे पुलिस की नजर में आ गये एवं उन पर निगाह रखी जाने लगी थी। फिर भी सुधीर दादा अपने साथियों के साथ भयभीत हुये बिना सशस्त्र क्रांति की तैयारी कर रहे थे। इसी समय भारत छोड़ो आन्दोलन से पूर्व ही परसराम सोनी के एक निकटम साथी ने पुलिस का मुखबिर बनकर परसराम सोनी को 15 सितम्बर सन 1942 को रिवाल्वर समेत पकड़वा दिया।दूसरे दिन सुधीर मुखर्जी भी गिरफ्तार कर लिये गये।9 माह तक मुकद्दमा चलने के पश्चात् सशस्त्र क्रान्ति करने विस्फोटक एक्ट और आम्स एक्ट के अंतर्गत 27 अप्रैल सन् 1943 में 2 वर्ष की सजा हुई।अपील करने पर सजा घटाकर एक वर्ष हो गयी थी। अपने जीवन भर मजदूरों तथा आम आदमी के हितों के लिये संघर्ष करने वाले सुधीर दादा ने 26 सितम्बर सन 1995 को अंतिम सांस लेकर उस दुनिया को अलविदा कह दिया ।

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