शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर में भाजपा ने अपनी सरकार क़ायम रखी है तो पंजाब में आमआदमी पार्टी की सरकार बनना तय हो चुका है। पंजाब कांग्रेस के हाँथ से निकल गया है.. लगता है कि कांग्रेस हाईकमान को कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाना, चन्नी और सिद्धू की ताजपोशी भारी पड़ गईं… अमरिंदर ने कांग्रेस को सरकार नहीं बनाने देने में लगभग वही भूमिका अदा कि जो कभी छ्ग में विद्याचरण शुक्ला ने अदा कर कांग्रेस की सरकार नहीं बनने दी थी….!और 15 साल कांग्रेस सत्ता से बाहर रही थी। बाद में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार प्रचंड बहुमत से बनी।
यह उस उत्तर प्रदेश के साथ हो रहा है जिस उत्तर प्रदेश ने, देश का सबसे संवेदनशील चुनाव देखा था। इंदिरा गांधी के आपातकाल में चुनाव भी 1977 के मार्च महीने में ही हुआ था और यही उत्तर प्रदेश था जिसने उस वक़्त की प्रधानमंत्री आयरन लेडी इंदिरा गांधी और कई मायनों में उनसे भी अधिक ताकतवर माने जानेवाले संजय गांधी तक को हरा दिया था। यही उत्तर प्रदेश था जिसने 1971 के गोरखपुर के उपचुनाव में तब के महंत अवैद्यनाथ के घनघोर समर्थन और अपनी सीट खाली किये जाने के बावजूद तबके सत्तासीन मुख्यमंत्री टीएन सिंह को हरा दिया था। यह उप्र ही था जिसने सवर्णवादी हरम में कैद राजनीति को बाहर निकालकर एक दलित महिला मायावती को शीर्ष पर बिठाया था,उसी उत्तर प्रदेश में इस बार भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच कांटे का मुक़ाबला माना जा रहा था, वहाँ सपा शुरुआत में पिछड़ती नज़र आती रही….कांग्रेस के लिए भी यहाँ संदेश साफ़ है….उन्हें बड़ी सर्जरी की ज़रूरत है…?पिछले तीस सालों में उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी ने एक के बाद एक दो बार जीत दर्ज नहीं की है.योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सालों बाद ऐसा होता दिखाई दिया है।इस चुनाव को कई राजनीतिक विश्लेषक 2024 के लोकसभा चुनाव का सेमी फ़ाइनल करार दे रहे हैँ….?हालांकि हर चुनाव में मुद्दे अलग अलग होते हैं।इसलिए इसे 24के चुनाव से जोड़ना जल्दबाजी होंगी।बाबा साहब अम्बेडकर को आदर्श मानने वाली बसपा उप्र में इस चुनाव में चरमरा गईं है तो “आप ” ने भगतसिंह और बाबा साहेब के नाम पर पंजाब में बहुमत हासिल कर लिया है…..। इधर कुछ लोग उप्र की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ के आगे के राजनीतिक सफ़र के लिए अहम मान रहे थे….उत्तर प्रदेश में ब्रांड योगी और भारत में ब्रांड मोदी और मज़बूत होता दिख रहा है।उत्तर प्रदेश की बात हो या फिर पंजाब की, किसान आंदोलन का असर दोनों राज्यों में भाजपा पर नकारात्मक पड़ता नहीं दिखाई दिया है।कई जानकार ये मान रहे है कि नए कृषि क़ानून वापस लेकर मोदी सरकार ने अपने होने वाले नुक़सान को कम कर लिया है,किसान नेताओं ने पंजाब मेंअलग पार्टी बना कर चुनाव लड़ने का फैसला किया जिसका लाभ उन्हें पंजाब में नहीं मिलता दिखाई दिया।उसी तरह से किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट-मुसलमान एकता की वापसी की बात हो रही थी।लेकिन उस इलाके में भाजपा को बहुत नुक़सान नहीं हुआ है, ऐसा लग रहा है कि अखिलेश यादव ने पिछले चुनावों के नतीजों से सबक लेते हुए बसपा और कांग्रेस जैसे दलों के साथ समझौता नहीं किया और राष्ट्रीय लोकदल, ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया. शुरुआती रुझानों से लगता है कि सपा को उसका लाभ मिला… पर वे सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में कामयाब नहीं हो पाए।भाजपा का वोट शेयर उत्तर प्रदेश में बढ़ा है, तो अखिलेश का भी बढ़ा है।भाजपा ने जहाँ ज़रूरत पड़ी वहाँ विकास का सहारा लिया. टिकट बंटवारे में मुसलमानों को ज़्यादा टिकट नहीं देने की पुरानी रणनीति कायम रखी….निषाद पार्टी और अपना दल जैसी पार्टियों को साथ लेने से भी परहेज नही किया.लेकिन चुनावी सभाओं की बात करें तो समाजवादी पार्टी के राज के दौरान चरमराई क़ानून व्यवस्था की याद भी जनता को ख़ूब दिलाई गई।लगता है लोग बुलडोजर सीएम, लाभार्थी स्कीम के फ़ायदों, राम मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर के मुद्दे से ज़्यादा ख़ुश रहे…. किसान सम्मान निधि के पैसों और मुफ़्त राशन ने वो काम किया जो अखिलेश महंगाई और बेरोज़गारी का डर दिखा कर नहीं कर पाए…..!
पूर्व और मौजूदा सीएम, डिप्टी सीएम की हार….
पंजाब में ही पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह,प्रकाश सिंह बादल और डिप्टी सीएम रहे सुखविंदर सिंह बादल, पंजाब की एकमात्र महिला सीएम रही राजिंदर कौर भट्टल की भी बुरी हार हुई है। कांग्रेस आलाकमान द्वारा अमरिंदर सिँह को हटाना, सिद्धू तथा चन्नी की ताजपोशी के चलते पंजाब कांग्रेस के हांथों निकल गया….। अमरिंदर सिंह खुद तो हार गये पर कांग्रेस की सरकार नहीं बनने देने में बड़ी भूमिका अदा की।इधर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी तथा पूर्व सीएम हरीश रावत भी चुनाव हार चुके हैं ।हरीश रावत को भावी सीएम घोषित करने में कांग्रेस आलाकमान ने रूचि नहीं ली…..। उप्र में सीऍम योगी, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जीत गये हैँ तो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, भाजपा छोड़कर सपा में शामिल स्वामी प्रसाद मौर्य भी चुनाव हार गये हैं।
भूपेश ने पेश किया सर्वाधिक बड़ा बजट…
छग के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चौथी बार वित्तीय वर्ष 2022-23 का वार्षिक बजट 1.04लाख करोड़ का पेश किया जो छ्ग बनने के बाद सर्वाधिक बड़ा बजट है।छत्तीसगढ़ में पिछले 15 साल से वित्त विभाग की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री अपने पास ही रख रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री ही बजट पेश करते हैं।डॉ रमन सिंह 11 बार पेश कर चुके हैँ।छत्तीसगढ़ गठन के बाद पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने डॉ. रामचंद्र सिंहदेव को वित्त मंत्री बनाया था। एक नवंबर 2000 को नया राज्य अस्तित्व में आया। नई सरकार बनी थी। ऐसे में पहला वार्षिक बजट 2001 में आया। डॉ. सिंहदेव ने तीन बार बजट पेश किया।2003 के आखिर में प्रदेश की सत्ता बदली और डॉ. रमन सिंह ने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली। तब डॉ. रमन सिंह ने बिलासपुर विधायक अमर अग्रवाल को वित्त मंत्री बनाया। इस हैसियत से 2004-05 से 06-07 तक के तीन बजट अमर अग्रवाल ने पेश किए। उसके बाद अमर अग्रवाल को पद से हटा दिया गया। डॉ. रमन सिंह ने मुख्यमंत्री पद के साथ वित्त विभाग की भी जिम्मेदारी संभाल ली। उसके बाद अगली दो सरकारों में भी उन्होंने यह विभाग नहीं छोड़ा। 2018 में कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी। इस बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंत्रालयों के बंटवारे में पूर्ववर्ती डॉ. रमन सिंह का ही अनुसरण किया। वित्त, सामान्य प्रशासन और जनसंपर्क विभाग की जिम्मेदारी खुद मुख्यमंत्री ने अपने पास रखी। 2019 से 2022 तक वे चार बार आम बजट पेश कर चुके हैं।
और अब बस
0छ्ग में भी कभी सीएम रहें श्यामाचरण शुक्ला, मोतीलाल वोरा, अजीत जोगी को चुनाव में कभी न कभी हार का सामना करना पड़ा था….
0लगभग 15 सालों तक सत्तासीन रही भाजपा छ्ग में 15 सीटों पर ही सिमट गईं थी।
0छ्ग में डी पी मिश्र कसडोल से उप चुनाव जीतकर मप्र के सीएम बने थे।
0जेल में बंद एडीजी (निलंबित )जी पी सिंह के माता, पिता तथा पत्नी को भी आरोपी बनाया गया है।