तेरे करीब आकर बड़ी उलझन में हूँ…… मै गैरो में हूँ या तेरे अपनों में हूँ……

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार ) 

भारतीय जीवन का वर्तमान दौर निःसन्देह सबसे चिंताजनक कालचक्र है। बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है। उद्योग धंधे मंदे पड़े हुए हैं, छोटे दुकानदार कर्ज में डूबे हुए हैं। बैंकों से प्रभावशाली पूंजीपतियों की लाखों करोड़ की लूट सरकार की मिलीभगत से हो रही है…? मध्यमवर्गीय परिवार बच्चों की महंगी होती जा रही शिक्षा के बोझ से दबे हुए हैं। अस्पतालों की लूट पर कोई अंकुश नहीं है। चारों तरफ एक ही माहौल है निराशा का….। अगर कुछ फलफूल रहा है तो वो है नफरत फैलाने का कारोबार…..। युवा पीढ़ी के दिमागों में जहर भरा जा रहा है। उनके हाथों में हुनर से जीविकोपार्जन करने वाले औजार नहीं बल्कि पत्थरऔर हथियार हैं। ये बच्चे उन भड़काऊ नेताओं की औलादें नहीं हैं जो सत्ता को सांप्रदायिक आग से चमका रहे हैं। ये किसी परिवार के अपेक्षा के अंश हैं, जो इस्तेमाल हो रहे हैं। हिन्दू सनातन धर्म इतना कमजोर नहीं है कि किसी दूसरे धर्म के कट्टर अनुयायियों के कारण खतरे में पड़े…। न मुगलों के दौर में और न ही अंग्रेजों-ईसाइयों के दौर में, कोई खतरा हुआ…! अब किसकी मजाल..! फिर क्यों बेवजह एक वर्ग के खिलाफ देश भर में नफरती माहौल बनाया जा रहा है? आपका तो नारा और दावा है “सबका साथ सबका विकास” विपक्षी दलों की तो वैसे ही सांसे उखड़ी हुई हैं। क्योंकि जांच एजेंसियों का शिकंजा कई नेताओं की हालत पतली कर चुका है जो भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं। कुछ मीडिया संस्थानों पर कोई टिप्पणी करने की जरूरत नहीं है। न्यायपालिका की भी सीमाएं हैं। अब तो आम जनता को खुद एक जिम्मेदार नागरिक की जिम्मेदारी को समझना होगा। भावी भारत की पीढ़ी को एक शांतिपूर्ण, सहअस्तित्व और विकसित देश मिले इसके लिए गलत का विरोध करना चाहिए। तटस्थता कहीं भारी न पड़ जाए…।

पलायन और मिनीमाता छ्ग की पहली महिला सांसद…..     

छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद मिनीमाता का जन्म सन् 1913 में असम के नुवागांव जिले के ग्राम जमुनामुख में हुआ था उनकी माता का नाम मतीबाई था।इनका परिवार मूलतः बिलासपुर जिला निवासी था । 1901 से 1910 के बीच छत्तीसगढ़ के भीषण अकाल ने अधिकांश गरीब परिवारों को जीविका की तलाश में प्रदेश के बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया था..उनके नाना-नानी भी असम के चाय बगानों में काम की तलाश में रेलगाड़ी से बिलासपुर से जोरहट गए । इस दौरान उनकी तीन पुत्रियों में से दो की मौत हो गई । एक बेटी, आपकी मां ही जीवित बच गईं…..।उनके बाल्यकाल तक परिवार व्यवस्थित हो चुका था । उनका वास्तविक नाम मीनाक्षी था। स्कूली शिक्षा असम में प्राप्त की । असमिया, अंग्रेजी, बांगला, हिन्दी तथा छत्तीसगढी का ज्ञान उन्हें था ।उनके जीवन में नया मोड़ उस समय आया जब सतनामी समाज के गुरु अगमदास धर्म प्रचार के सिलसिले में असम गए और बाद में आपको जीवन संगिनी के रुप में चुन लिया।समाज की गरीबी, अशिक्षा तथा पिछड़ापन दूर करने के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया । 1952 से 1972 तक लोकसभा में सारंगढ़, जांजगीर तथा महासमुंद क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। मजदूर हितों और नारी शिक्षा के प्रति भी जागरुक और सहयोगी रहीं । बाल-विवाह और दहेज प्रथा को दूर करने के लिए समाज से संसद तक आपने आवाज उठाई । छत्तीसगढ़ में कृषि तथा सिंचाई के लिए हसदेव बांध परियोजना उनकी दूर-दृष्टि का परिचायक है । भिलाई इस्पात संयंत्र में स्थानीय निवासियों को रोजगार और औद्योगिक प्रशिक्षण के अवसर उपलब्ध कराने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया ।छत्तीसगढ़ की स्वप्नदृष्टा मिनीमाता का 11 अगस्त 1972 को भोपाल से दिल्ली जाते हुए पालम हवाई अड्डे के पास विमान दुर्घटना में निधन हो गया ।इनके वंशज विजय गुरु तथा रूद्र गुरु (वर्तमान में भूपेश मंत्रिमंडल के सदस्य)राजनीति में सक्रिय हैं।

सोनिया-राहुल के
करीबी……

छत्तीसगढ़ के राजनेता, मुख्य मंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरण दास महंत कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांघी, राहुल गांघी के करीबी हैं वहीं इनके निकट होने का दावा टी एस सिंहदेव भी करते हैं पर छ्ग की दो ऐसी महिला नेत्री हैं जो सोनिया-राहुल के काफ़ी करीबी हैं उनसे लगातार चर्चा भी करती रहती हैं बस इन नेत्रियों ने कभी यह जताने का प्रयास नहीं किया..? ये हैँ राज्य सभा सदस्य रंजीत रंजन तथा लोक सभा सदस्य ज्योत्सना महंत।सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों के पति भी काफ़ी वरिष्ठ नेता हैं।

रंजीत रंजन पप्पू यादव     

छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा सदस्य बनीँ रंजीत रंजन एक सक्रिय टेनिस खिलाड़ी रही हैं। मधेपुरा के पूर्व सांसद पप्पू यादव से विवाह करने के एक साल के अंदर वे स्वयं भी राजनीति में आ गईं। रंजीत 1994 से राजनीति में सक्रिय हैं। राजनीति जीवन की शुरुआत रंजीत ने सुपौल विधानसभा क्षेत्र से की, लेकिन वे चुनाव जीत नहीं सकीं।2004 में रंजीत रंजन ने लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट सहरसा से लोकसभा से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। बाद में परिसीमन के बाद सहरसा सीट के स्थान पर सुपौल क्षेत्र बना। इस सीट से रंजीत ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा पर जदयू उम्मीदवार से पराजित हुईं। 2014 में उन्होंने सीमांचल और कोसी में कांग्रेस की उम्मीद को जिंदा रखते हुए मोदी लहर के बावजूद सुपौल सीट जीती। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अब कांग्रेस ने छग से रंजीत को राज्यसभा भेजा है। रंजीत के पति बिहार की राजनीति में राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव एक बड़ा नाम हैं। पप्पू यादव 5 बार लोकसभा सांसद और विधायक रह चुके हैं। किसी जमाने में लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले पप्पू यादव ने अपना राजनीतिक सफर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर शुरू किया। फिर सपा और राजद में रहे। लालू यादव की पार्टी से वह दो बार सांसद भी रहे।पप्पू यादव ने 2015 में अपनी जन अधिकार पार्टी बना ली है। बिहार में उनकी छवि बाहुबली और दबंग नेता के तौर पर है।

ज्योत्सना चरण दास महंत……     

कांग्रेस से पिछले लोकसभा चुनाव में सोनिया गाँधी सहित 7 महिला सांसद ही निर्वाचित हुई हैं जिसमे छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से कोरबा लोक सभा से निर्वाचित ज्योत्सना महंत ने पहला चुनाव लड़ा और मोदी लहर के बाद भी विजयी रही। इनके अलावा कांग्रेस से गीता कोरा सिंहभूमि, परणित कौर पटियाला, ज्योतिमणि कुरुर, प्रतिमा सिंह मंडी, राम्या हरिदास अलथुर शामिल हैँ। ज्योत्सना अब से पहले खुद कभी चुनाव नहीं लड़ीं. वैसे पूरे प्रदेश में ज्योत्सना महंत अपने परिचय के लिए मोहताज नहीं हैं. एमएससी प्राणी शास्त्र से उत्तीर्ण ज्योत्सना की तीन पुत्री व एक पुत्र हैं. समाज सेवा, जनचेतना के कार्यों में पिछले 25 साल से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं.ज्योत्सना महंत का कहना है कि अपने उद्देश्य व संकल्प पूर्ति के लिए कांग्रेस को सशक्त माध्यम के रूप में देखती हूं. कांग्रेस उनकी दृष्टि में राजनीतिक दल नहीं बल्कि एक विचारधारा है. पति डॉ. चरणदास महंत के साथ लोकसभा व विधानसभा चुनाव में लगातार सक्रिय रहने से आमजनों से सीधे संपर्क का फायदा उन्हें लोस चुनाव में मिला भी….उनके पति तथा छ्ग विस के अध्यक्ष डॉ चरण दास महंत छ्ग के सबसे वरिष्ठ कॉंग्रेसी नेता हैँ.चरणदास महंत यूपीए-2 में केन्द्रीय राज्यमंत्री रहे हैं. डॉ महंत मध्यप्रदेश सरकार में गृहमंत्री भी रह चुके हैं।

चंदेल बने नेता प्रतिपक्ष, कौशिक हटाए गये…     

छ्ग भाजपा में पहले अध्यक्ष बदले फिर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बदल दिया गया। नारायण चंदेल के नेता प्रतिपक्ष तथा भाजपा अध्यक्ष अरुण साव के बनने से भाजपा के अभी तक शक्तिशाली रहे एक गुट की ताकत कम होने का भी संकेत मिल रहा है। चंदेल पहली बार 1998 में मप्र विधान सभा के लिए चुने गए । छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के बाद 2003 में विस चुनाव हार गये
फिर से उन्होंने 2008 का विधानसभा चुनाव जीता और छत्तीसगढ़ विधानसभा में उपाध्यक्ष बने । 2018 में चंदेल फिर विधानसभा के लिए चुने गए।
इधर हटाए गये नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक बिल्हा सीट से पहला चुनाव साल 1998 में लड़ा और जीत मिली. इसके बाद साल 2003 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद साल 2008 के चुनाव में बिल्हा सीट से इन्हें फिर से जीत मिली और भाजपा सरकार में ये विधानसभा अध्यक्ष बने. फिर 2013 के में हार और 2018 के चुनाव में उन्हें फिर से जीत मिली.उनके साथ एक बात यह भी है कि बतौर विस अध्यक्ष वे अगला चुनाव हार गये थे …..फिर भी उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और उनके नेतृत्व में 15 साल तक सरकार चलाने वाली भाजपा के केवल 15 विधायक ही चुने गये फिर भी उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था।

और अब बस…..

0देश की पहली अंतरिम सरकार 1950 से 1952 में मनोनीत सांसद बनने का रिकार्ड रेशमलाल जांगड़े के नाम बना हुआ है।
0 नेहरू, इंदिरा, राजीव गाँधी तीनों के कार्यकाल में सांसद बनने वाले विद्या चरण शुक्ल थे।
0वार्ड मेंबर, विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री, 2 राज्यों के राज्यपाल बनकर रमेश बैस ने भी छग में रिकार्ड क़ायम कर लिया है।
0महापौर, विधायक, लोकसभा, राज्य सभा का सफऱ तय करने सुश्री सरोज पांडे हैँ।
0 एक ही विधानसभा से लगातार 7 बार विधायक बनने का रिकार्ड बृजमोहन अग्रवाल के नाम दर्ज हो चुका है।

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