छेरछेरा पर्व ,रायपुर में कांग्रेस भवन का निर्माण, 1938 में सरदार पटेल ने किया था उद्घाटन…

{किश्त 243 }

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का गठन सन 1906 में सी एम ठक्कर ने किया था,छेरछेरा पुन्नी1929को कांग्रेस भवन की स्थापना का प्रयास शुरू हुआ और 1938 में सरदार वल्ल्भ भाई पटेल ने भवन का उद्घाटन किया था यानि 92 साल की उम्र हो चुकी है इस भवन की, महात्मा गांघी, पं. जवाहरलाल नेहरू,डॉ राजेंद्र प्रसाद आदि भी आ चुके हैं,यह बात और है कि अब यहां जिला कॉंग्रेस का कार्यालय है,छ्ग बनने के बाद शंकरनगर चौक में नया कांग्रेस ऑफिस राजीव भवन बन चुका है।छत्तीस गढ़ी संस्कृति में दान मांगने की अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है। आधु निक दौर में दान मांगने की यह परंपरा कायम है। पौष पूर्णिमा के दिन हर गांव में बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं दान मांगने घर- घर जाते हैं। मांगने आने वालों को खाली हाथ नहीं लौटाया जाता..घर के मुखिया अपने कोठार में रखे गए धान,गेहूं अन्य फसलों में से कुछ न कुछ दान अवश्य करते हैं, 1929 में कांग्रेसियों ने घर- घर जाकर दान मांगा था, दान में मिले धान को बेचने और अन्य सहयोग से छोटा पारा स्थित कांग्रेस भवनकी नींव रखी गई थी,1938 में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भवन का उद्घाटन किया था। वैसे बैरिस्टर सी.एम. ठक्कर ने 1906 में रायपुर शहर में कांग्रेस की शाखा की स्थापना की थी, सुंदर लाल शर्मा समेत क्षेत्र के अन्य राजनेता भी कांग्रेस सदस्य बने थे।यहां यह भी बताना जरुरी है कि छत्तीस गढ़ में असहयोग आंदोलन -1920,राष्ट्रीय झण्डा सत्या ग्रह-1923,स्वराजदल,बीएन सी मिल मजदूरआंदोलन राजनांदगांव,रोलेक्ट/ रॉलेट एक्ट1919 सूरत विभाजन 1907, बंगाल विभाजन के वक़्त प्रांत राजनीतिक सम्मे लन 1905 होमरूल लीग आंदो लन हुआ था।छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिनछग में बड़े ही धूमधाम, उल्लास से मनाया जाता है,इससाल 2025 में छेरछेरा 13 जन वरी को मनाया जाएगा,इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं, इसे दान लेने-देने का पर्व मानते हैँ।मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती, इस दिन छत्तीस गढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं और युवा डंडा नृत्य करते हैं। सभी कहते हैं छेरछेरा… ’माई कोठी के धान ला हेर हेरा’, इस पर्व को मनाते बच्चों और बड़े,बुजुर्गों की टोलियां एक अनोखे बोल से दान मांगते हैं, दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक घर की महिलाएं अन्नदान नहीं देती तब तक वे कहते रहेंगे… ‘ अरन बरन कोदो दरन, जबे देबे,तबे टरन’.. इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं,मां दान दो,जब तक दान नहीं दोगे, तब तक हम नहीं जाएंगे..!

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