छ्ग राज्य निर्माण के स्वप्नदृष्टा,साहित्यकार, राजनेता डॉ खूबचंद बघेल…

{किश्त 213}

डॉ.रामलाल कश्यप जी (पूर्व कुलपति रविवि राय पुर) ने जब डॉ. बघेल से पूछा- आप छत्तीसगढ़ी आंदोलन के प्रेणता माने जाते हैं,आपके अनुसार छत्तीसगढि़या की परिभाषा क्या है.? डॉ. बघेल ने उत्तर दिया “जो छत्तीसगढ़ के हित में अपना हित सम झता है मान- सम्मान को अपना मान-सम्मान सम झता है,छग के अपमान को अपना अपमान समझता है, वह छत्तीसगढि़या है,भले ही वह किसी भी धर्म,भाषा प्रांत,जाति का क्यों न हो” उन्होंने छत्तीसगढ़ का अप मान करने वालों को इन पंक्तियों में जवाब दिया था–

‘बासी के गुण कहुँ कहाँ तक,
इसे ना टालो हांसी में…।
गजब बिटामिन भरे हुये हैं,
छत्तीसगढ़ के बासी में…’

स्वतंत्रता संग्राम और छग राज्य निर्माण आंदोलन के नेता,साहित्यकार, राजनेता डॉ खूबचंद बघेल विधायक और राज्यसभा सांसद भी रहे। डॉ. बघेल हमेशा सामा जिक कुरीतियों, बुराइयों को समाज से दूर करने का बहुत प्रयास किया,जिसके फलस्वरूप उन्हें कई बार समाज के ही कुछ लोगों के गुस्से का सामना भी करना पड़ा। रायपुर तहसील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में डॉक्टर बघेल निर्विरोध चुने गए थे।1946 में तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष,प्रांत कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनो नीत किये गये थे ।डॉ.बघेल का जन्म 19 जुलाई 1900 को रायपुर जिले के ग्राम पथरी में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल से हुई। आगे की पढ़ाई रायपुर के गवर्न मेंट हाई स्कूल से पूर्ण हुई। मैट्रिक की शिक्षा के बाद नागपुर के रॉबर्ट्सन मेडि कल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।महात्मा गाँधी के ही आव्हान पर अगस्त 1942 में ब्रिटिश हुकूमत के खिला फ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय योगदान केकारण ढाई साल जेल में रहे असह योग आंदोलन के प्रभाव में डॉक्टरी की पढ़ाई बीच में छोड़,आंदोलन में शामिलहो गए। घरवालों के बार-बार समझने से पुनःएल.एम.पी. (लेजिस्लेटिव मेडिकल प्रक्टिसनर) नागपुर में दाखिला लिया, 1923 में एल.एम.पी. की परीक्षा पास की। बाद में एलएमपी को सरकार ने एमबीबीएस का दर्जा दिया गया।डॉ.खूब चंद बघेल का विवाह बहुत की कम उम्र में करा दिया गया था,जब वे प्राथमिक की पढ़ाई कर रहे थे तो सिर्फ 10 वर्ष की उम्र में उनका विवाह उनसे 3 वर्ष छोटी कन्या राजकुँवर से करा दिया गया। उनकी पत्नी राजकुँवर से 3पुत्रियाँ पार्वती,राधा,सरस्वती का जन्म हुआ। बाद में उन्होंने डॉ.भारत भूषण बघेल को गोद लिया।डॉ बघेल का हमेशा से सामाजिक कुरी तियो, बुराइयों को समाज से दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये।पूरे देश की तरह तब छ्ग में छुआ छूत और ऊँच-नीच की भावना व्याप्त थी।डॉ बघेल ने जब से होश सम्हाला था,तब से उन्हें जातिगत भेदभाव से चिढ़ थी। उन्होंने जातिगत भेदभाव के साथ-साथ उप जातिगत भेदभाव को भी दूर करने का काम किया जिसके फलस्वरूप आज के समय में कुर्मी समाज में व्याप्त उपजाति भेदभाव को दूर किया जा सका है। इस भेदभाव को मिटाने डॉ. बघेल जो स्वयं मनवा कुर्मी थे, उन्होंने अपनी एक पुत्री का विवाह दिल्लीवार कुर्मी समाज में, सबसे छोटी बेटी का विवाह पटना केराजेश्वर पटेल से करवाया, जिससे उन्हें समाज के क्रोध के कारण कुर्मी समाज से बहि ष्कृत कर दिया गया। परन्तु वे हमेशा से उपजाति बंधन को तोड़ने में लगे रहे। ‘पंक्ति तोड़ो आंदोलन’ छत्तीसगढ़ में व्याप्त एक कुप्रथा थी। इसमें शादी में समाज के आधार पर पंक्ति निर्धारित होती थी। उसी पंक्ति में बैठ भोजन करना होता थाकोई कुर्मी समाज का है तो सिर्फ कुर्मी समाज की पंक्ति में बैठ भोजन कर सकता था। अन्य किसी पंक्ति में बैठना अपराध था। इसी कुरीति को तोड़ने के डॉ. बघेल ने पंक्ति तोड़ो आंदोलन शुरू किया। जिसका परिणाम आज सबके सामने हैअब सब मिल जुलकर किसी भी पंक्ति में भोजन कर सकते हैं।’किसबिन नाच’ किसबा जाति द्वारा किया जानेवाला पुश्तैनी धंधा था जिसमें किसबा जाति के पुरुष महिलाओं से त्यौहारों में तवायफों जैसे नचवाने और गँवाने का काम किया करते थे। इस चलन को बंद करने डॉ. बघेल ने समाज सुधार की दृष्टि से ‘भारतवंशीजाती य सम्मलेन’ का आयोजन मुंगेली में कराया था जिस का असर किसबा जाति पर पड़ा,सभी सामाज कीमुख्य धारा में लौट आये।1931 तक डॉक्टर के सरकारी पद त्याग कर खूबचंद बघेल ने कांग्रेस में प्रवेश कियाइसके पूर्व अप्रैल 1930 में रायपुर महाकौशल राजनीतिक परिषद के अधिवेशन में डॉ. बघेल ने भी हिस्सा लियाथा 1931 में डॉ बघेल रायपुर जिला डिक्टेटर और बाद में राज्य के आठवें डिक्टेटर नियुक्त हुए। जिला डिक्टेटर के पद पर रहते डॉ.बघेल, सामाजिक सुधार के प्रति भी जागरूक रहें।1939 के त्रिपुरी केउस ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन में स्वयं सेवकों के कमांडर के रूप में कार्य किया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के तहत इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। डॉ. बघेल के साथ उनकी धर्मपत्नी राज कुँवर देवी भी 6 माह के लिये जेल गईँ । रायपुर तह सील से 1946 के कांग्रेस चुनाव में डॉ बघेल निर्विरोध चुने गए। इस तरह 1946 में डॉ. बघेल को तहसील कार्यालय कार्यकारिणी के अध्यक्ष,प्रांत कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में मनो नीत किया गया। स्वतंत्रता के बाद उन्हें प्रांतीय शासन ने संसदीय सचिव नियुक्त किया। 1950 में आचार्य कृपलानी के आह्वान पर कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हुए।1951के बाद चुनाव में विधानसभा के लिये पार्टी से निर्वाचित हुए। 1965 तक विधान सभा सदस्य रहे। 1965 में राज्यसभा सदस्य बने।राजनीति से 1968 तक जुड़े रहे।रचनाएँ 0ऊँच- नींच : छुआछूत, जातिप्रथा को कम करने के लिए इस नाटक को लिखकर मंचन किया गया 0 करम-छंडहा : यह नाटक आम आदमी की गाथा, बेबसी को दर्शाता था 0जनरैल सिंह : छग केदब्बू पन को दूर करने का रास्ता बताया गया है।0भारत माता : 1962 में भारत- चीन युद्ध में इसे लिखकर मंचन कराया गया, चंदा इकठ्ठा कर भारत सरकार के पास भिजवाया गया।जातिगत भेदभाव, कुरी तियों को मिटाने वाले डॉ खूबचंद बघेल का निधन 22 फ़रवरी, 1969 को हुआ। वह संसद के शीत कालीन सत्र में भाग लेने दिल्ली गए हुए थे। दिल का दौरा पड़ने से उनकी आक स्मिक मृत्यु हो गई।

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