{किश्त 35)
सिंधी समाजअपने एक बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी पर नाज करता है। देश के उप प्रधानमंत्री,गृहमंत्री का कार्यभार सम्हाल चुके आडवाणी हालांकि आज कल पीएम नरेन्द्र मोदी के केन्द्र की राजनीति में आने के बाद कुछ अनमने से हैं, वहीं प्रसिद्ध वकील तथा राजनेता राम जेठमलानी तो वकालत और राजनीति में बड़ा नाम रहे हैं। रही छत्तीसगढ़ की बात तो कभी सिंधी समाज का कोई व्यक्ति सांसद तो नहीं बना किन्तु,रायपुर के अधिवक्ता रमेश वल्यानी ने जनता पार्टी के समय कॉंग्रेस के स्वरूपचंद जैन को हराकर मप्र की विधान सभा में पहुंचे थे तो राजनांदगांव के लीलाराम भोजवानी पत्रकारिता से विधायक भाजपा की टिकट पर बने थे।तीन बार विधायक होने के साथ ही मप्र मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे।बाद में उन्हीँ की विधानसभा राजनांदगाव से जीतकर डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री बनते रहे और 2023 के विस चुनाव में भी उतरे हैं।इधर भाजपा नेता श्रीचंद सुंदरानी ने 2013 के विस चुनाव में कुलदीप जुनेजा को पराजित कर विधायक बनने में सफल हो गये थे। बाद के 2018 के चुनाव में वे पराजित हो गये थेपिछले नगर निगम चुनाव में कविता ग्वालानी ने भाजपा प्रभाव वाले वार्ड से कांग्रेस की पार्षद बनकर सभी को चौंका दिया था।1947 के भारत-पाक विभाजन में सब कुछ पाकिस्तान में लुटा -पिटाकर भारत में आने वाले सिंधी समुदाय ने विभाजन के दौरान जुल्मों अत्याचारों का रोना रोये बिना मेहनत से भारत में खुद को स्थापित किया और प्रयत्नशील भी हैं।सिंधी समुदाय ने कभी भी आरक्षण की भीख नहीं मांगी और खुद को आत्मनिर्भर बनाने में लगे रहे।इसी का परिणाम है कि उद्योग,फिल्म जगत सहित छोटे से बड़े व्यवसाय में सिंधी समाज छाया हुआ है वह भी अपनी मेहनत से… यह जरूर है कि राजनीति तथा प्रशासनिक क्षेत्र में अपेक्षाकृत अपनी वह जगह नहीं बना पाया जिसका हकदार था….? बहरहाल सिंधी समाज की उपेक्षा कांग्रेस,भाजपा सहित कोई भी राजनीतिक दल कम से कम छग में तो नहीं कर सकता है।पर इस बार 2023 में कॉंग्रेस और भाजपा ने किसी भी सिंधी को विस प्रत्याशी नहीं बनाया है?