{किश्त139 }
छग की जीवनदायिनी महानदी के पानी के बंटवार को लेकर छग-ओडिशा के बीच विवाद अभी भी अन सुलझा है।छ्ग से निकली महानदी पर छ्ग-ओड़िसा सीमा पर बने हीराकुण्ड डेम की भी एक अलग कहानी है,छग सरकार का आरोप है कि महानदी के पानी का समुचित दोहन नहीं कर ओडि़सा सरकार उसे समुद्र में बहा रही है। वैसे वर्तमान में छग और ओडि़शा दोनों राज्य महानदी के जल का मात्र 17.5 % ही उपयोग कर रहे हैं। जिसमें छत्ती सगढ़ 3.5% और ओडिशा को 14% पानी का उपयोग करती हैं।जबकि 82%पानी व्यर्थ बह रहा है, ओडिशा राज्य से ही पानी समुद्र में जाता है इसलिए छग सर कार उसे ही दोषी ठहराती है।यह बताना भी जरूरी है कि महानदी में छत्तीसगढ़ की सिंचाई क्षमता 30% है, ओडि़सा की सिंचाई क्षमता 54% है। महानदी पर ओडि़सा राज्य में हीराकुंड डेम सन 1957 में बना था। 1983 में जलविवाद की स्थिति आने पर ओडि़सा के सीएम जानकी वल्लभ पट नायक़, अविभाजित मप्र के सीएम अर्जुन सिंह के बीच महानदी के बंटवारे पर एक संयुक्त कंट्रोल बोर्ड बनाने के लिए समझौता हुआ था लेकिन बोर्ड का गठन ही नहीं हो सका था। भारत गुलामी की जंज़ीरों से मुक्त हुआ ही था कि देश के पहले पीएम पं. जवाहर लाल नेहरू ने एक महत्त्व पूर्ण परियोजना के पहले कंक्रीट का पत्थर रख दिया ।छग से निकली महानदी पर बना ये ऐतिहासिक हीराकुंड बाँध (ओड़िसा) नाम का प्रोजेक्ट दुनिया को मज़बूत भारत का संदेशदेने वाला बना।हीराकुंड बाँध परियोजना भारत के स्वतंत्र होने के बाद बहुउद्देशीय नदीघाटी परियोजनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस प्रॉजेक्ट की आधारशिला सन 1946 में उड़ीसा के गवर्नर सर हॉथोर्न लुईस ने बाढ़ की विनाशकारी चुनौ तियों के समाधान के लिए रखी थी, 1947 में भारत के आज़ाद होने के बाद देश के सामने तमाम आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक समस्याएं बड़े पैमाने पर थीं । इन सब के बावजूद जवा हर लाल नेहरु ने हीराकुंड परियोजना को प्राथमिकता देकर निर्माण शुरूकरवाया। यूँ तो प्रॉजेक्ट को 1953 में ही पूरा कर लिया गया था, लेकिन 1957 में अधिका रिक रूप से इसका उद्घाटन पंडित नेहरू के हाथों हुआ।अगर हीराकुंड बाँध की कुल लम्बाई की बात करें तो ये लगभग 16 मील के आस-पास है। मुख्य बाँध की लम्बाई 3 मील यानी लगभग 4.8 किमी के क़री ब है। बाँध की ऊँचाई लग भग 61 मीटर है। उड़ीसा के संबलपुर से 15 किमी की दूरी पर मौजूद इस बाँध को कंक्रीट,मिट्टी के मिश्रण से बनाया गया था। बाँध का विस्तार लक्ष्मी डुंगरी की पहाड़ियों से दक्षिण मेंस्थित चांडीली डूंगुरी के पहाड़ी क्षेत्र तक फ़ैला है।बाँध से अनेकों जलविद्युत संयंत्रों के ज़रिये बिजली उत्पादन का कार्य किया जाता है। चिपिलिमा तथा बुर्ला, दो बिजली उत्पादक संयंत्र हैं। हीराकुंड बाँध की बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 347 मेगावॉट है। बाँध में बने नाले का आकार 75 हजार वर्ग मीटर है। हीरा कुंड से पानी भेजने के लिए 34 क्रेस्ट गेट, 64 स्लाइ डिंग तथा 98 फ्लड गेट बनाए गये हैं। यहीं वजह है कि हीराकुंड बाँध विश्व के सबसे लंबे बांधोँ में शुमार है, हीराकुंड बाँध जैसी ख़ास नदी परियोजना के पीछे का सबसे प्रमुख प्रयो जन महानदी का अत्यंत प्रचंड होना था।असल में महानदी ऐतिहासिक तौर पर एक विनाशकारी नदी रही है। साथ ही,ये एक मौसमी नदी है,जिसका बरसात के दौरान जलस्तर बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है। इसका नतीज़ा ये होता था कि हज़ारों एकड़ जमीन पर खड़ी फसल बर्बाद होजाती थी। इसके अतिरिक्त, यहाँ रहने वाले लाखों लोगों को दूसरी जगह जाकर रहना पड़ता था। हीराकुंड बाँध के आस-पास के क्षेत्र में एक कैटल आइलैंड भी है, जो प्राकृतिक रूप से बेहद ही ख़ूबसूरत है।इसे जंगली जानवरों का निवास स्थान कहते हैं। ये कैटल आइलैंड अब ऐसी जलमग्न पहाड़ी में तब्दील हो चुका है जहाँ सिर्फ़ जानवर ही रहते हैं। हालाँकि जब तक हीराकुंड बाँध नहीं बना था तब तक ये क्षेत्र एक विकसित गाँव हुआ करता था।बताया जाता है कि बाँध बन जाने के बाद इस गाँव को खाली करवाया गया। यहाँ रहने वाले लोग तो कहीं ओर जाकर बस गए परंतु उनके पाले हुए जानवर वहीं पर रह गए। बाँध से पानी छोड़ ने के बाद ये सारा इलाका पानी से लबालब भर गया। इस तरह, ये पहाड़ी चोटी एक कैटल आइलैंड में ही बदल गई। वर्तमान आइलैंड पर मवेशियों के साथ ही अनेकों प्रवासी पक्षियों को भी देखा जा सकता है। ऐसा भी कहा जाता है कि बाँध के बनने पर अनेकों मंदिर हमेशा के लिए नष्ट हो गए थें।बाँध बनने के दौरान ही लगभग 200 से अधिक मंदिरों का अस्तित्व समाप्त हो गया था। हालाँकि,अब यहाँ 50 के आस-पास ही मंदिर बचे हुए हैं। अक्सर गर्मियों में जब जल का स्तर नीचे आ जाता है तो खोये मंदिरों के अवशेष नजर आने लगते हैं।वर्तमान में हीराकुंड बाँध न केवल भारत के आर्थिक ढांचे में अहम योगदान दे रहा है, बल्कि ये स्थान प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी सैला नियों के आकर्षण का केन्द्र बन गया है।