– 1961 में तय की गयी थी
चुनाव खर्च की सीमा (1)
छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव के लिये अधिकतम खर्च की सीमा 1961 में 6 हजार रूपये थी जो 2013 में यानि 52 सालों में 16 लाख रूपये तय की गई है। जो 2023 के मौजूदा चुनाव में बढ़कर 40 लाख हो गई है।क्या देश-प्रदेश में रहने वाले आम नागरिकों की ‘आय’ में भी इसी तरह वृद्धि है…..?1961 से विधानसभा चुनाव में 6 हजार अधिकतम खर्च की सीमा थी।1971 में बढ़ाकर 10 हजार कर दी गई यानि 10 साल में 4 हजार अधिक खर्च बढ़ाया गया वही 1977 में जब देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी उस विधानसभा में चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा 25 हजार की गई यानि 15 हजार की वृद्धि की गई।1984 के विस चुनाव के समय बढ़ती महंगाई तथा निर्वाचन खर्च बढ़ने के अनुरोध पर निर्वाचन आयोग ने 40 हजार निर्वाचन खर्च की सीमा प्रत्याशियों के लिये तय की गई तब प्रत्याशी के अलावा अन्य द्वारा खर्च को प्रत्याशी के निर्वाचन व्यय में शामिल नहीं किया जाता था। निर्वाचन आयोग ने पाया कि प्रत्याशी खर्च अधिक करते है और निर्धारित सीमा से अधिक खर्च को अन्य के खर्च में शामिल कर देते है। इससे मतदान और मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। 1993 में विधानसभा चुनाव के समय निर्वाचन आयोग ने प्रत्याशियों के अलावा अन्य के खर्च को भी प्रत्याशी के खर्च में शामिल करने का आदेश जारी किया।चुनाव सुधार हेतु कई कदम उठाये गये,मतदान पेटी और मतपत्र की जगह ईव्हीएम का आयोग शुरू हुआ। सेण्ट्रल की पैरा मिलेट्री फोर्स की देखरेख में मतदान होने लगे,केन्द्रीय पर्यवेक्षकों की देखरेख में मतदान होने लगे।चल और अचल सम्पत्तियों का विवरण लिया जाने लगा,अपराध बावत भी शपथ पत्र लिया जाने लगा है। खैर 6 हजार से शुरू निर्वाचन खर्च की सीमा 2008 के विधानसभा चुनाव में 10 लाख रूपये थी जो 5 साल बाद यानि 2013 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 16 लाख कर दी गई है। इस बार प्रत्याशी अधिकतम खर्च 40 लाख कर सकेंगे। इसमें नामांकन करने से लेकर चुनाव परिणाम आने तक का खर्च शामिल है। ज्ञात 1962 के विस चुनाव में चुनाव खर्च कीअधिकतम सीमा 6 हजार थी पर 2013 के विस चुनाव में तो नामांकन में जमानत राशि ही सामान्य के लिये 10 हजार और सुरक्षित वर्ग के प्रत्याशियों के लिये 5 हजार तय की गई है।जो अभी भी बरकरार है।