{किश्त 13}
आजादी के बाद देश में पहला आमचुनाव 1952 में हुआ था उस समय कुछ लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों में दो, सांसद, दो विधायक चुने जाते थे। आबादी और क्षेत्रफल के कारण उस लोकसभा या विधानसभा में प्रथमऔर दूसरा स्थान पाने वाले को विजयी माना जाता था।पहले विधानसभा चुनाव में रंगीन मतपेटियां रखकर मतदान होता था।यानि प्रत्याशियों को रंगीन पेटी बता दी जाती थी और प्रत्याशी रंग की पेटी में ही अपना समर्थन मत डालने प्रचार करते थे।ज्ञात रहे कि उस समय कम प्रत्याशी चुनाव लड़ते थे इसलिये कुछ रंगीन मतपेटियां मतदान के लिये रखी जाती थीऔर निर्धारित कर दिया जाता था कि कौन सी रंग की पेटी किस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के लिये है। 1962 में मतदान पद्धति बदली,प्रत्याशियों के लिये पृथक पृथक रंगीन पेटी के स्थान पर एक मत पेटी ही रखना शुरू हुआ। यही नहीं प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह छपे मतपत्र तैयार कर मतदान कराने का सिलसिला शुरू हुआ।देश में पहला चुनाव साल 1952 में हुआ। उस समय आज की तरह संसाधन नहीं थी। अब निकाय चुनावों में भी प्रत्याशी कई गाड़ियों से पर्चा भरने जाते हैलेकिन पहले चुनाव के वक्त न तो महंगी कारें थीं और न ही सोशल मीडिया। ऐसे में प्रत्याशी बैलगाड़ी से जनता के बीच जाते थे और प्रचार करते थे। इतना ही नहीं जिस गांव में रात हो जाती थी,नेताजी वहीं रुकते थे और दूसरे दिन समर्थकों के साथ आगे बढ़ जाते थे।आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के पहले चुनावों में आज की तरह न तो ईवीएम थी और न ही मतपत्र। पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ ही होते थे। इन्हें कराना बहुत बड़ा टास्क होता था। पहले चुनावों में हर पार्टी, प्रत्याशी के लिये अलग-अलग रंग की मतपेटी बनाई जाती थी। मतदाता अपनी मर्जी के हिसाब से अपने प्रत्याशी को चुनते थे।वोट डालने के लिए उन्हें एक कोरा कागज दिया जाता था,जिसे वो इन मतपेटी में डालते थे यानी आज जिस तरह बैलेट पेपर पर कई प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह होते हैं और एक मतपेटी,वैसा तब नहीं था।पहले चुनावों में जितने प्रत्याशी उतनी ही मतपेटी बनाई गईं।आंकड़े बताते हैं कि इसके लिए लोहे की 2 करोड़ 12 लाख मतपेटियां बनाईं गईं और करीब 62 करोड़ मतपत्र छापे गए।
दूसरे चुनाव में हुआ
थोड़ा बदलाव
आजाद भारत में दूसरे आम चुनाव 1957 में हुए। इस समय लोग पहले से ज्यादा जागरुक हो चुके थे। साथ ही चुनाव आयोग ने भी चुनावी प्रक्रिया में कई बदलाव किये। इस चुनाव में लकड़ी के डिब्बों पर उम्मीदवारों का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा जाने लगा। लेकिन मतपत्र तब भी कोरा कागज हुआ करता था।मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के डिब्बे में कोरा कागज डालकर मतदान करते थे। बाद में इन कोरे कागज को गिनकर चुनाव के नतीजे आते थे।
1962 से चलन में
आया मतपत्र….
चुनाव आयोग को ये समझ में आ गया था कि ये प्रत्याशियों की नाम की मतपेटी बनाने की प्रक्रिया ज्यादा दिन नहीं चलेगी। इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने इसमें बड़ा बदलाव किया और पहली बार 1962 के विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह के मतपत्र छापे गये।अब मतदाताओं को अपने पसंदीदा प्रत्याशी के नाम के सामने मुहर लगाकर मतपेटी में डालना होता था। चुनाव की ये प्रक्रिया लंबे वक्त तक चली। आज भी कई जगहों पर पंचायत चुनाव में इसका इस्तेमाल होता है।