सांसों में हमारी भरकर गर्द-ओ-गुबार…. ऐ विकास! तुम कहां हो गये फरार….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )            

देश में चल रहे किसान आंदोलन पर विदेशों से आ रही प्रतिक्रिया पर क्रिकेट के महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर सहित कुछ फिल्मी कलाकार तथा मोदी समर्थक कुछ लोगों की टिप्पणी है कि किसानों के मुद्दे पर विदेशी सेलेब्रिटिज को नहीं बोलना चाहिये क्योंकि यह देश का आंतरिक मामला है। पर लोग यह भूल गये कि कश्मीर में धारा 370 हटाने के बड़े निर्णय, लेह को अलग केंद्र शासित राज्य बनाने के फैसले के बाद केंद्र सरकार की मंशा पर देश के विपक्षी पार्टी के सांसदों को श्रीनगर एयरपोर्ट से ही लौटा दिया गया, वहां के हालात जानने की अनुमति नहीं दी गई वहीं यूरोप के 27 सांसदों का जम्मू-कश्मीर में दौरा कराया गया, कहा गया कि यह अधिकारिक नहीं निजी दौरा था? देश के आंतरिक मामले में देश के बाहर के राजनेताओं को दौरा करने देना क्या भारत के आंतरिक मामले में दखल नहीं था…।
70-72 दिन से देश के किसान उन तीन कृषि कानूनों का विरोध करने सड़कों पर उतर गये है, कभी उन्हें खालिस्तानी समर्थक, कभी आतंकवादी, कभी नक्सली समर्थक तो कभी विदेशों से फडिंग से आंदोलन करने की बात सत्ता से जुड़े लोग उठाते रहते हैं कभी उन पर विपक्षी पार्टी द्वारा बरगलाकर आंदोलन कराने की बात की जाती है। अब किसान आंदोलन पर कुछ विदेशी हस्तियों के निजी ट्वीट से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार घबड़ाहट प्रकट करते हुए भारत की छवि विदेश में खराब करने की बात करती है… किसान आंदोलन जिसे केंद्र की सरकार के मुखिया ही अभी तक नदरअंदाज करते रहे क्या उस आंदोलन में इतनी ताकत है कि विश्वस्तर पर भारत की छवि बिगाड़ दे…। ‘अब की बार ट्रंप सरकारÓ से क्या विदेशों में भारत की छवि बनी थी…
कभी किसी लोकतांत्रिक देश में आंदोलनकारियों को रोकने के लिए कांक्रीट की दीवार खड़ी की गई थी, क्या सड़कें खोदी गई है? क्या सड़कों पर मोटी-मोटी कीलें ठोकी गई है? क्या हम वाकई किसी लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं? भारत के अन्नदाता किसान दुश्मन नहीं है, जो उनसे बचने युद्ध सरीखी तैयारियां की जा रही है? क्या वे भारत के नागरिक नहीं है उन्हें लोकतांत्रिक आंदोलन का अधिकार नहीं है? पत्रकारों को गिरफ्तार किया जा रहा है, उन पर मुकदमे किये जा रहे हैं, घटना स्थलों का इंटरनेट बंद किया जा रहा है, पानी की आपूर्ति बंद की जा रही है, बिजली काटी जा रही है, ठीक है जनता ने आपको पूर्ण बहुमत से चुनकर भेजा है तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि मनमानी शुरू की जाए…? जब 1984 में कांग्रेस 400 से अधिक लोकसभा सीटें लेकर आई थी तब कहा गया था कि इतना बड़ा लोकतांत्रिक बहुमत तानाशाही के लिए खतरा पैदा करता है पर उस समय ऐसा कुछ नहीं हुआ…। जेपी आंदोलन, आरक्षण विरोधी आंदोलन, अन्ना आंदोलन भी हुआ पर कभी भी आंदोलनकारियों को गद्दार, देश विरोधी, खलिस्तानी नहीं ठहराया गया, न उन्हें रोकने युद्धस्तर की तैयारियां की गई, किसान आंदोलन देश का कोई पहला आंदोलन तो नहीं है…। फिर जिस कृषि कानून को सरकार लागू करने प्रतिबद्ध है और किसान उसे नहीं लागू कराना चाहते हैं तो केंद्र की सरकार यह तो कर ही सकती है कि प्रदेश सरकारों को इतनी छूट दे दे कि जो राज्य चाहते हैं वे लागू करें जो नहीं चाहते लागू करने बाध्य नहीं है… इससे कुछ माह में ही स्पष्ट हो जाएगा कि कृषि कानून किसान हित में है या नहीं…।

अच्छे दिन कब आएंगे…?

अच्छे दिनों का वादा किया गया था, हर खाते में 15 लाख, नोटबंदी से कालेधन की वापसी, एक देश एक टेक्स, किसानों की लागत को दोगुना करने, सबका साथ-सबका विकास, न खाऊंगा न खाने दूंगा, देश को बिकने नहीं दूंगा आदि नारों पर आंख मंूदकर यकीन कर लिया था लेकिन जब आंख खुली तो वास्तविकता कुछ अलग ही दिखी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पेट्रोल, दूरसंचार इन सभी का निजीकरण जिस चालाकी से किया जा रहा है, इसका दायरा भी बढ़ रहा है।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के बजट में तो निजीकरण का ऐलान किया और जनता को विश्वास दिलाने का प्रयास किया गया कि यह सब विकास को रफ्तार देने के लिए है, जिस तरह त्यौहारी सीजन में शापिंग माल या आनलाईन कंपनियां सेल का बम्फर आफर देती है कुछ इसी अंदाज में मोदी सरकार देश के सार्वजनिक निकायों की सेल बाजार लगा रही है, मध्यम वर्गीय समाज तो फिर इस बजट में छला गया है। आयकर स्लेब में तो कोई बदलाव नहीं किया गया है बल्कि एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेव्लपमेंट सेस की घोषणा भी की है जिससे पेट्रोल ढाई रुपये तथा डीजल 4 रुपये प्रति लीटर का उपकर लगाया गया है इससे निश्चित ही महंगाई और बढ़ेगी क्या ऐसे में अच्छे दिन आने की उम्मीद की जा सकती है…।

सांसदों-विधायकों का कार्यालय…..     

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए जवाब मांगा है कि ब्लाक और जिला स्तर पर सांसदों-विधायकों का दफ्तर क्यों नहीं बनाया गया है ताकि आमजन सुविधा के साथ आवेदन उन्हें दे सकें।
पेण्ड्रा-गौरेला के मथुरा सोनी के अधिवक्ता अच्युत तिवारी के माध्यम से प्रस्तुत याचिका में कहा गया है कि सांसद, विधायक का कार्यालय जिला एवं ब्लाक स्तर पर नहीं होने से आम लोगों को परेशानी होती है। शासन की ओर से ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं की गई है, लोगों को अपनी शिकायत, समस्या बताने में इसके लिए इंतजार करना पड़ता है। चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू ने इस बाबत मुख्यसचिव से जवाब भी तलब किया है।

मानव सभ्यता और श्वानों का साथ….      

मानव सभ्यता का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना श्वान का इतिहास है। भेडिय़ा ही आज के श्वान का पूर्वज हैं। तथ्यों के हिसाब से 12 हजार से 15 हजार वर्ष पूर्व श्वान पालतू हुआ था, महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर जब कामकाज छोड़कर पहाड़ों पर अपनी अंतिम यात्रा में गये तो एक श्वान साथ था। जो अंत तक उनके साथ रहा, मिस्त्र से प्राप्त 7500 वर्ष पुराने बर्तनों में आज के ग्रेहाऊण्ड और सलूकी नस्ल के श्वानों के चित्र मिले हैं। 55 वीं ईश्वी में इंग्लैंड ने रोम के खिलाफ लड़ाई में श्वानों का इस्तेमाल किया था। प्रथम विश्वयुद्ध में विश्व के विभिन्न देशों में 60 हजार श्वानों को संतरी ड्यूटी, मेसेंजर ड्यूटी, एजुकेशन कैरियर, रूकावट एवं केजुवल्टी ढूंढने के लिए इस्तेमाल किया गया था, द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत श्वानों को माईन डिटेक्शन, गार्ड ड्यूटी के अलावा भूस्खलन, बचाव कार्य, रेस्क्यू आपरेशन, नारकोटिक्स डिटेक्शन आदि का प्रशिक्षण दिया जाने लगा, सन 2001 में गुजरात प्रांत के कच्छ एवं भुज इलाकों में भूकंप के बाद राहत एवं बचाव का भी प्रशिक्षण शुरू किया गया। छग में 2002 में पुलिस ने श्वान दल की स्थापना की, 2005 से 2017 तक ओपन मार्केट से डाग पप्स खरीदे गये पर 2019-20 में श्वानदल मुख्यालय 7 वीं वाहिनी छसबल भिलाई में बेल्जियम मेलाइनिस शेफर्ड के 3 का मेटिंग कराया गया जिसमें 22 पप्स स्वस्थ अवस्था में पैदा हुए जिन्हें छत्तीसगढ़ी नाम राणा, बैजू, बुधारू, खेमू, भूरी, नीता, बिंदु, लाली आदि दिया गया जिन्हें प्रशिक्षित किया गया। उपरोक्त उल्लेख पुलिस श्वान प्रशिक्षण एवं प्रबंधन नामक पुस्तक में है जिसका संपादन आईपीएस विजय अग्रवाल ने किया है। जिसका विमोचन डीजीपी डी.एम. अवस्थी, स्पेशल डीजी आर.के.विज, अशोक जुनेजा की उपस्थिति में किया गया। यह पुस्तक डॉग लवर्स के लिए काफी उपयोगी होंगी क्योंकि इसमें श्वान से संबंधित सभी जानकारियां दी गई है, श्वान पर इतनी अच्छी पुस्तक के संपादन के लिए विजय अग्रवाल बधाई के पात्र हैं।

और अब बस…

0 आम लोगों से मुलाकात करने का रिकार्ड छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनसुइया उइके के नाम दर्ज हो चुका है…।
0 पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी ने आजकल पुलिस व्यवस्था चुस्त करने सीधे पुलिस अधिकारियों का निलंबन शुरू करने से पुलिस व्यवस्था में कुछ कसावट आई है।
0 पुलिस में डीजीपी छोड़कर कुछ बड़े स्तर के अफसरों को इधर-उधर करने की खबर तेज है।
0 मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने 2 साल के कार्यकाल पूरा करने के बाद कुछ दिनों में ही छग के लगभग सभी जिलों का दौरा कर लिया है।

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