बुलबुल को बागबां से, न सय्याद से गिला… किस्मत में कैद लिखी थी, फसल ए बहार में…

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )      

लोकसभा के बाद ध्वनिमत से किसी तरह राज्यसभा में मोदी सरकार ने 3 कृषि विधायकों को पारित करा लिया.. क्या यह किसानों के लिए हितकारी है? यदि ऐसा होता तो पंजाब से कर्नाटक तक, कृषि प्रधान छतीसगढ़, मप्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि में किसान आंदोलन नहीं शुरू होते…? देश का पेट भरने वाला किसान सड़कों पर उतरने को आखिर मजबूर क्यों हैं…? वैसे यह पहली बार नहीं हो रहा है, किसी भी पार्टी की सरकार देश-प्रदेशों में हो… अन्नदाता कभी धान, कभी गेहूं, कभी गन्ने के बकाया भुगतान,समर्थन मूल्य, कभी प्याज की घटती कीमतों, कभी कारपोरेट के इशारे पर जमीन के बलात अधिग्रहण को लेकर तो कभी खाद, बीज, बिजली, डीजल की रियायती दर की मांग को लेकर सड़क पर उतरते रहते है। कभी उपज की वाजिब कीमत के लिए संघर्षरत आसानी से दिखाई देते हैँ?

कृषि उपज की कीमतों को तय करने के लिए एक कमेटी एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित की गई थी, उसने अपनी लंबी-चौड़ी रिपोर्ट दी है। दिलचस्प यह है कि जो भी विपक्ष में रहता है उसकी रिपोर्ट लागू करने की मांग करता है, सत्तारूढ़ होते ही इसे भूल सा जाता है।
बहरहाल मोदी सरकार के तीन नये बिल पर चर्चा करना जरूरी है। पहले बिल पर…. सबसे अधिक चर्चा हो रही है अब किसानों की उपज सिर्फ सरकारी मंडियों में ही नहीं बिकेंगी, बड़े व्यापारी भी उसे खरीद सकेंगे। बिहार में अभी भी सरकारी मंडियों में 9 से 10 फीसदी फसल बिकती है बाकी व्यापारी खरीदते हैं पर वहां मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 है और किसान 900 से 1100 प्रति क्विंटल बेचते हैं। किसान यही तो मांग कर रहे हैं कि हर कोई किसान की फसल खरीद सकता है, राज्य के बाहर ले जा सकता है पर इस बिल में यह भी जोड़ दें कि समर्थन मूल्य से कम कीमत पर नहीं खरीदने का प्रावधान हो, दूसरा बिल है… कांट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर.. lइसमें कोई भी कारपोरेट किसानों से कांट्रेक्ट करके खेती कर सकेगा। मतलब कोई कारपोरेट आकर किसान की जमीन लीज पर लेकर खेती करने लगेगा पर इसमें गांव के उन गरीब किसानों को सीधा नुकसान होगा जो छोटी पूंजी लगाकर नान रेसिडेंसियल किसानों की जमीन सालभर के लिए लेकर खेती करते हैं। छग में इसे अधिया, टूटिया आदि भी कहते हैं। इसमें किसान या तो फसल का हिस्सा तय कर देते हैं या जितनी फसल होती है उसका आधा -आधा बांट लेते हैं। इस बिल से निश्चित ही गांव के भूमिहीन, सीमांत किसान बदहाल हो जाएंगे और काम की तलाश में पलायन बढ़ेगा, तीसरा बिल है…. एसेंशियल कमोडिटी बिल। जिसके तहत कारोबारी अपने हिसाब से खाद्यान्न और दूसरे उत्पादों का भंडारण कर सकेंगे और दाम अधिक होने पर उसे बेच सकेंगे मतलब अब जमाखोरी गैर कानूनी नहीं रहेगी। बहरहाल तीनों बिल कारोबारी के हित तथा उन्हें खेती के वर्जित क्षेत्र में उतरने के लिए मदद गार साबित होंगे वहीं किसानों को खेती के क्षेत्र से खदेडऩे का एक प्रयास है, किसानी के पेशे में छोटे-मंझोले खेतिहर मजदूरों की बिदाई इन बिलों से लगभग तय मानी जा है…।लॉक डाउन के बाद मजदूरों,छोटे -मंझोले कामगारों को बेरोजगारी का सामना करना पड रहा है वहीं महामारी के हालात में किसानों के इन गैर जरूरी बिल लाने की जरुरत और जल्दी को लेकर भी अब केंद्र सरकार पर सवाल उठ रहे हैँ.. आखिर इन बिलों की मांग किसने की थी किसानों ने या कारपोरेट जगत ने…..?

लॉकडाऊन और कलेक्टर     

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, न्यायधानी बिलासपुर, औद्योगिक नगरी भिलाई, कोरबा, रायगढ़ औषधीय बाजार की नगरी धमतरी, मुंगेली, कवर्धा, जशपुर आदि स्थानों पर पुन: लॉकडाउन लगाया गया है इसका प्रमुख कारण कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संख्या ही है। नेता नहीं नागरिक भी कोरोना पॉजीटिव्ह हो रहे हैं, आम से खास लोग भी कोरोना को अभी भी हल्के से ले रहे हैं। समुचित दूरी, मास्क आदि का उपयोग गंभीरता से नहीं कर रहे हैं खैर भूपेश मंत्रिमंडल ने कोरोना से निपटने लाकडाऊन लगाने का अधिकार जिला कलेक्टरों को दिया है वहीं लोग अब लॉकडाऊन का निर्णय ले रहे हैं वैसे प्रदेश में सबसे पहले लाकडाउन रिटर्न का निर्णय प्रमोटी कलेक्टर ने लिया था, उनकी प्रदेश के मुखिया से रिश्तेदारी किसी से छिपी नहीं है उन्होंने रास्ता दिखाया और कई कलेक्टर उसी मार्ग पर चल पड़े? वैसे भी जब तक वैक्सीन नहीं बन जाती है तब तक कोरोना से निपटने लॉकडाऊन को छोड़कर कोई विकल्प भी तो नहीं है। 15 सालों तक कुछ प्रशासनिक अफसरों के प्रभामंडल में छग में राज करने वाले डॉ. रमन सिंह या तब के विधानसभा अध्यक्ष तथा वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, कलेक्टरों को भूपेश मंत्रिमंडल द्वारा कोरोना से निपटने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने का विरोध कर रहे हैं। छग में 11 लोकसभा क्षेत्रों में 9 पर भाजपा के सांसद है, ये सांसद केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर छग को कोरोना से निपटने आर्थिक मदद दिला सकते हैं पर केवल राज्य सरकार को कोसने में पीछे नहीं है? राज्य सरकार की देय राशि भी केंद्र से दिलाने किसी भी सांसद का बयान नहीं आया है। राजनीति ठीक है पर इस महामारी के दौर में क्या यह उचित है? जहां तक जिला कलेक्टरों को भूपेश सरकार द्वारा अधिकार देने की बात है तो आजादी के पहले से देश में आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) हावी रही है पहले नौकरशाही के इस शीर्ष पर अंग्रेज अफसर होते थे। आजादी के बाद भारत की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के तहत तमाम बदलाव हुए लेकिन एक बात नहीं बदली, वह थी नौकरशाही की विरासत और चरित्रl आजादी के बाद भले ही आईसीएस को बदलकर आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) कर दिया गया, प्रशासनिक अधिकारियों को लोकसेवा कहा जाने लगा पर बदलाव उतना नहीं आया जितनी उम्मीद की जा रही थी प्रशासनिक अधिकारियों का यह तंत्र आज भी ‘स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया” कहलाता है नौकरशाह मतलब ‘तना हुआ एक पुतला’ यह बात और है कि कुछ नये युवा आईएएस जरूर स्टील फ्रेम को कुछ लचीला बनाते कभी कभी दिखाई देते हैं।

बाहरी-भीतरी का विवाद     

छत्तीसगढ़ में आईपीएस अवार्ड से पहले विवादों में चल रहे यशपाल सिंह के खिलाफ 2019 में करोड़ों की संपत्ति हासिल करने की शिकायत अब चर्चा में है। राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने शिकायत संबंधी जानकारी पुलिस मुख्यालय भेजी है।
दरअसल इस वर्ष 1998 बैच के 6 छग पुलिस सेवा के अफसरों को आईपीएस अवार्ड होना है वहीं लाईन में 6 अफसर हैं इसमें यशपाल सिंह चर्चा में है। यशपाल सिंह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में डिप्टी कमांडेण्ट थे जो 2009-10 में प्रतिनियुक्ति में छग आये थे। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के एक बड़े नेता से निकटता का लाभ उठाकर 2016 में अपना संविलियन छग पुलिस में करा लिया। कमाल की बात तो यह है कि उन्हें 1997 से वरिष्ठता दी गई जबकि छग राज्य की 2000 में बना था। जाहिर है इनकी वरिष्ठता से छग कॉडर के 1998 बैच तथा बाद के कुछ पुलिस अफसरों को आईपीएस अवार्ड में देरी संभव है। अभी प्रदेश में 1997 बैच के राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को आईपीएस अवार्ड मिल चुका है।
वैसे जिन 6 अफसरों को आईपीएस देने की वरिष्ठता सूची की चर्चा है उसमें बीएसएफ के यशपाल सिंह के अलावा म.प्र. काडर के 2 अफसरों धर्मेन्द्र छवई , संतोष महतो को लेकर छग पुलिस सेवा के अफसर नाखुश है। पिछली सरकार के ये कृपापात्र अफसर इस सरकार में भी लाभ ले सकते हैं। ज्ञात रहे कि 98-99 बैच के 18 अफसर इन अफसरों के कारण निश्चित ही प्रभावित होंगे। 18 अफसरों में मनोज चौधरी, मनोज खिलाड़ी, रवि कुर्रे, सुरजन राजभगत, झाड़ूराम ठाकुर, प्रफुल्ल कुमार ठाकुर, राजेन्द्र प्रसाद भईया, विजय कुमार पांडे, पंकज चंद्रा, भावना पांडे, वी. के. बैस. हरीश रावत, देवव्रत सिंह मौर, राजश्री मिश्रा, श्वेता श्रीवास्तव, सिन्हा आदि शामिल है।

और अब बस

भारत में कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या के लिए मोदी सरकार नहीं देश के पहले प्रधान मंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू दोषी है कैसे… कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर….

1. कोरोना कहां पैदा हुआ…. जवाब चीन में.
2. कोरोना दुनिया में कैसे फैला… देशों के बीच सफर से.
3. सफर देशों के बीच कैसे होता है… हवाई जहाज से
4. हवाई जहाज कहां उतरते हैं… एयरपोर्ट में
5. कोरोना कहां से भारत में घुसा…. एयरपोर्ट से
6. देश में कितने इंटरनेशनल एयरपोर्ट हैं… 34
7. एयरपोर्ट किसकी निगरानी में है-…. केंद्र सरकार की.
8. देश को लॉकडाउन करना था कि एयरपोर्ट को… एयर पोर्ट को
9. चीन में कोरोना की खबर कब आई… 8 दिसंबर को
10. एयरपोर्ट बंद क्यों नहीं किये….डोनाल्ड टंम्प को भारत आना था.
11. एयरपोर्ट में कोरोना टेस्ट सभी का कराया गया… नहीं
12.डब्लु एच ओ ने लाकडाऊन की हिदायत कब दी थी… एक फरवरी को..
13. फिर सरकार ने लॉकडाउन क्यों नहीं किया… म.प्र. में सरकार गिरानी थी

आखरी सवाल एक करोड़ के लिए….. फिर देश में कोरोना फैलने के लिए कौन जिम्मेदार है? जवाब…..पंडित जवाहर लाल नेहरू क्योंकि नेहरू ने ही एयरपोर्ट बनवाए थे। बधाई… आप एक करोड़ जीत गये?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *