पुस्तक समीक्षा ” मन का मौसम” समसामयिक मुद्दों पर कविताएं

समीक्षक – डॉ मंजुला उपाध्याय
कविता मन के कोमल भावों की सात्विक अभिव्यक्ति होती है । हमारे शास्त्रों में कहा गया है, ‘वाक्यम रसात्मकम काव्यम’। अर्थात जिस वाक्य से रस की निष्पत्ति हो, वह कविता है। यह जरूरी नहीं कि कविता छंदबद्ध हो । वह छंद से मुक्त होकर भी कविता हो सकती है। अपने मन की सहज भावनाएं गद्य रूप में प्रस्तुत हो, तो भी वह कविता हो सकती है। दरअसल कविता को किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता। और यह भी एक महत्वपूर्ण बात भी है कि मां सरस्वती की साधना का अधिकार हर किसी को है। फिर वह चाहे वह हिंदी साहित्य का विद्यार्थी हो, चाहे कोई वैज्ञानिक हो, चिकित्सक हो या किसी भी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति हो । अभी हाल ही में रवि तिवारी की कविताओं का संग्रह ‘मन का मौसम’ प्रकाशित हुआ है। रवि मूल रूप से कवि नहीं है। न साहित्यकार ही है। लेकिन उनके भीतर यकायक कविता ने प्रवेश किया और वह अपनी मन की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से काव्यात्मक अनुभूति पेश करते रहे। ऐसी ही अनेक अनुभूतियों का संग्रह उन्होंने प्रकाशित कराया है, जिसे और लोगों ने पसंद भी किया है। इस संग्रह में उन्होंने समाज में घट रही विभिन्न घटनाओं पर अपनी काव्यात्मक प्रतिक्रिया देने का प्रयास किया है, जिसे काफी हद तक सफल कहा जा सकता है। अपने कविता कर्म के बारे में कवि ने ईमानदारी के साथ स्पष्ट कर दिया है कि यह विशुद्ध रूप से स्वांतः सुखाय हैं। कवि ने ‘अपनी बात’ यानी भूमिका में बहुत साफ तरीके से क्या लिख दिया है कि ”मेरे मन में भी विचार आया कि क्यों न अपने सुख का दायरा और भी व्यापक किया जावे। अपनी सारी रचनाओं को संकलित कर इसे एक पुस्तक का रूप प्रदान कर पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जावे उनके पठन हेतु। मन में बहुत झिझक थी किंतु हिम्मत की और आज नतीजा आपके सामने है।” वे यह भी कहते हैं कि, “ना मैं साहित्यकार हूं। न कथाकार, न कविकार, न कलाकार ,न ही कोई पत्रकार, तो क्या मैं लिख नहीं सकता? बोल नहीं सकता ? या समझ नहीं सकता? सब कर सकता हूं मैं। मेरे पास भी दिल- दिमाग है। देखने-समझने की शक्ति है। घटना-दुर्घटनाओं से रोज होता हूं दो-चार। हर घटित बातों पर नजरिया भी रखता हूं। माना इस बात को शब्द नहीं, भाषा नहीं। लिखने की शैली भी नहीं । बोली तो है । जज्बात तो है। मन की भावनाएं तो हैं। दिल में बनते-बिगड़ते रोज के हालात तो हैं। मैंने भी कर लिया है तय। ले लिया है यह संकल्प, मैं भी लिखूंगा लेख व कविताएं । अपने मन में रोज उमड़-घुमड़ते भाव को दूंगा शब्द। यह असली होंगे। बनावटीपन से कहीं दूर। आडम्बर शब्दजालों से परे। आम लोगों की बातें सभी को दिलों को छू लेंगी। उसकी अपनी बोली होंगी। उसकी अपनी भाषा होगी। दिल में पनप रही चाहत किसी कार का ठप्पा नहीं। स्वांतः सुखाय चाहिए बस।” रचनाकार का यह वक्तव्य उनके व्यक्तित्व को बताने के लिए पर्याप्त है । इसलिए अगर विशुद्ध साहित्य के पाठक शिल्प की दृष्टि से इन कविताओं को पढ़ेंगे, तो हो सकता है, उन्हें निराशा हाथ लगे। लेकिन जो भावनात्मक रूप से चीजों को समझने की कोशिश करेंगे, उन्हें इन कविताओं में छुपी संवेदना को समझने में सहायता मिलेगी। भाषा से भी महत्वपूर्ण होती है भावनाएं, जो इस पुस्तक में यत्र-तत्र बिखरी हुई है। सुविख्यात कवियत्री डॉक्टर कीर्ति काले ने भी ठीक लिखा है कि ”समाज में गहरे तक पैठती जा रही भौतिकतावादी प्रवृत्ति को देखकर किसी आस्थावान संवेदनशील मनुष्य का मन विचलित होना स्वाभाविक है । कवि श्री रवि तिवारी ने अपनी कविताओं के माध्यम से इस युग की उथल-पुथल को शब्दायित किया है।”
कवि ने अपने कवि होने को कुछ इस रूप में व्यक्त किया है कि “यह मन का मौसम ही है/ जिसने मुझे बना दिया/ रचनाकार/ हर क्षेत्र से निकाल लाया/ मौसम की बहार /कुछ खट्टे-मीठे अनुभव /कुछ तीखे तेवर /कुछ मन की थी बातें /कुछ आंखों देखी खबरें/ बोलता गया मेरा मन/ आते गए विचार/ लिखता चला गया/ तैयार हो गई यह कृति/ मन का मौसम।”
इस काव्य संग्रह में डेढ़ सौ कविताएं संकलित हैं। हर कविता जीवन के विविध आयामों को दर्शाने वाली है ।इसमें मजबूत इरादे हैं। नसीहत है। भारत के जवानों की बात है। समाज का दर्द है। दुनियादारी है। राजनीति है ।किस्मत और मेहनत का द्वंद है । जीवन का फलसफा है । होली है। कोरोना है। दारू की विसंगतियां है। लॉक डाउन है। काढ़ा पीने का संदेश भी है। कोरोना काल में उपजी मानसिकता का भी अनेक स्थानों पर काव्यात्मक विवेचन है। हसीन जिंदगी की बात है ।इंसान की घटिया सोच पर प्रहार है। जिंदगी के उतार-चढ़ाव का जिक्र है। और अगर राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ, तो उसका भी जिक्र है। सभी के राम जैसी कविता भी है। छोटे से दिल की बड़ी सी आशा, जीवन का सच, दिल की आवाज, आज के पत्रकार, नाज है हमे अपनी एकता पर, अपनों पर नजर, घर ही जन्नत है, हमारा एक रंग यह भी, नशा जिंदगी का, आज मेरा मन जैसी महत्वपूर्ण कविताएं भी हैं। हर कविता का तो जिक्र संभव नहीं है ।, मगर बानगी के तौर पर दो एक कविताओं को जरूर दिया जा सकता है। जैसे, ‘जनता हूं मैं’ जैसी एक अच्छी कविता भी है। कुछ कविताएं कोरोना काल की विसंगतियों और उसकी अच्छाइयों पर भी केंद्रित हैं । भारतीय जनता क्या है, उसको इस कविता के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है। आम आदमी को उन्होंने बहुत अच्छे से परिभाषित किया है। कविता का एक अंश देखें,
”सहने की असीम क्षमता है
चीरते रहो रहते हो हमेशा
मेरी छाती को, अरमानों को
खून के घूंट पी के रह जाता हूं
फिर भी हंसता रहता हूं
भाग्य को कोसता हूं
व्यवस्था पर झल्लात हूं
लुटा जा रहा हूं यह भी जानता हूं
फिर भी खामोश रहता हूं
स्वभाव से समुंदर जो हूँ।”
कवि को अपने राज्य छत्तीसगढ़ से लगाव है। उस पर कविता है। रायपुर नामक कविता भी है, जिसमें शहर की खास खास जगहों के बारे में अब बताया गया है। ‘उम्र के बहाव में’ नामक कविता साठ साल होने पर उत्पन्न होने वाली अनुभूतियों का सुंदर निरूपण है। यह जीवन की कटु सच्चाई है कि व्यक्ति की वय धीरे-धीरे बढ़ती ही जाती है साठ साल को जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। कवि नेबभी साठ साल को देख लिया है इसलिए वे अपनी अनुभूतियों को सुंदर ढंग से व्यक्त करते हुए कहते हैं,
” और हम खड़े-खड़े/ उंगलियों में गिनते रहे /गलतियों को याद किया/ उपलब्धियों में फूल गए/ जीवन को तौल लिया/ उम्र की तराजू में /…जो न कर सके, वही करेंगे /अपनी ख्वाहिशें पूरी करेंगे/ साठ के इस पड़ाव में /उम्र के इस बहाव में।”

अंत में, मुझे पूरा विश्वास है कि 350 पृष्ठों तक फैले भावनात्मक विस्तार को यथार्थपरक नजरिये से पढ़ने वाले पाठक पसन्द करेंगे। संग्रह में उठाए गए सम-सामयिक मुद्दे और उनको काव्यात्मक ढंग से कहने की कोशिश भी लोगों को ज़रूर पसन्द आएगी। दुनिया में तमाम मौसम आते हैं और जाते हैं। मगर मन का मौसम सदाबहार होता है। इसलिए इस मौसम की भावनाएं कभी मुरझा नहीं सकतीं।                    प्रकाशक – वैभव प्रकाशन रायपुर छत्तीसगढ़
मूल्य -200

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