रायपुर। जैसे – जैसे विधानसभा चुनाव पास आ रहे हैं वैसे – वैसे कांग्रेस और बीजेपी अपनी रणनीति तय करने में लगी है। जहां तक बीजेपी की चुनावी तैयारियों की बात है तो प्रदेश में लगातार केंद्रीय नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के लिए कड़ी मेहनत वाले दौरे हो रहें हैं। प्रदेश प्रभारी, सहप्रभारी से लेकर केंद्रीय मंत्री व स्टार प्रचारकों के अलग अलग समय पर लगातार छत्तीसगढ़ में दौरे चल रहे है। यही वजह है कि अब कुछ महीनों में इसका सकारात्मक परिणाम भी भाजपा के पक्ष में देखने को मिलने लगा है। अब इधर कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर चिंता है कि कहीं बड़े नेता दबाव बनाकर अपने समर्थकों और परिवार को टिकट दिलाने सफल रहे तो बना बनाया माहौल बिगड़ जाएगा। चर्चा है कि ऐसे में पार्टी को किसी भी तरह का रिस्क लेने से बचना चाहिए और सर्वे के आधार पर विजयी प्रत्यशियों को ही टिकट देना चाहिए। बात ये भी उठ रही है कि जातिगत समीकरण और पुराने नेताओं की लॉबिंग को देखकर अगर टिकट तय हुए तो फिर एक बार फिर भाजपा को छत्तीसगढ़ में बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ सकता है।
इधर , जनता के बीच जा रहे कार्यकर्ता भी ये मान रहे हैं कि बीजेपी को इस बार चुनाव में विजयी होने वाले प्रत्याशी और काम करने वाले स्वच्छ छवि के नेताओं को ही टिकट देना पड़ेंगे। जनता भी मन बना रही है कि जातिगत समीकरण से ऊपर उठकर उनकी समस्या का निराकरण करने और क्षेत्र के विकास के लिए काम करने वाला ही उनका जनप्रतिनिधि हो फिर चाहे वह किसी भी जाति का हो अन्यथा महिला ही क्यों न हो। अब बात करें भाजपा में कुछ नेताओं की तो वो ऐसे हैं जो अपने व अपने करीबियों के भविष्य और उत्तराधिकारी के भविष्य को सुरक्षित बनाने के भाजपा की जीत का समीकरण बिगाड़ने में लगे है। गौर हो कि पिछले चुनाव में भाजपा की यही सबसे बड़ी गलती थी। सर्वे के आधार पर और जनता की राय को दरकिनार करते हुए पिछली बार टिकट का वितरण में जो अपनों का भला किया गया उसका परिणाम दिल्ली से लेकर प्रदेश बीजेपी तक देख चुकी है। हाल ये रहा कि भाजपा को 14 सीटों पर सिमटकर ही रहना पड़ गया। कार्यकर्ताओं की दबी जुबान बता रही है कि यदि इस बार भी बड़े नेताओं की चल गई तो पुरानी स्थिति से भी बुरे परिणाम भाजपा को छत्तीसगढ़ में देखने को मिल सकते हैं।
केंद्र सरकार ने विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव में महिलाओं को 33% आरक्षण का नारी शक्ति वंदन अधिनियम को पारित किया है। जिसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी है। अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या भाजपा तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कितनी महिलाओं को टिकट देगी। बात छत्तीसगढ़ की करें तो यहां कुछ विधानसभा सीटों में महिलाओं का सीधा प्रभाव जनता के बीच है, यदि उन्हें टिकट मिलता है तो वो बड़ी जीत भी दर्ज कर सकती हैं। लेकिन भाजपा के कुछ पुराने व बड़े नेता अपने उत्तराधिकारी का भविष्य सुरक्षित बनाने के लिए ऐसी सीटों पर अपनों के लिए लॉबिंग कर रहें हैं, यदि ऐसा होता है तो भाजपा के महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य पर भी बड़ा सवालिया निशान खड़ा होगा। ऐसे में भाजपा को अपने सर्वे के हिसाब से विजयी प्रत्याशियों के नाम जो निकलकर आये हैं उन्हें टिकट देनी चाहिए ना कि पुराने नेताओं की लॉबिंग और जातिगत समीकरण के मद्देनजर।