जन्मदिन,रथयात्रा और जीवन पथ की यात्रा…

                        मेरा जन्म 20 जून 1960 को फिंगेश्वर (राजिम) में हुआ था, उस दिन रथयात्रा भी नहीं थी पर आज जन्मदिन और रथयात्रा एक साथ है। वैसे रथयात्रा के दिन के साथ मेरे जीवन के कुछ संयोग भी जुड़े हैं। रथयात्रा के दिन ही करीब 55/56 साल पहले हम रायपुर माता, पिता,भाई बहन के साथ आये थे।आज माता -पिता की तो यादें हीं बची है, बाकी सभी साथ – साथ हैं। उस समय मै तीसरी का छात्र था। पिताजी स्व. जगन्नाथ प्रसाद पांडे का तबादला भाटापारा, बलौदा बाजार से रायपुर कलेक्टर ऑफिस में हुआ था।

फिंगेश्वर(राजिम)में जन्म लेने के बाद मैंने स्कूली शिक्षा के तहत पहली कक्षा भाटापारा से तो दूसरी कक्षा की पढ़ाई बलौदा बाजार से की थी। हमारा परिवारिक/पुश्तैनी मकान पुरानी बस्ती लोहार चौक के पास था। घर के पास ही अमीनपारा स्कूल में फिर कक्षा तीसरी में प्रवेश लिया था। वहीं से पाँचवी 85% अंक लेकर पास हुआ था। फिर गवर्मेंट स्कूल से ग्यारहवीं तो साइंस कालेज रायपुर से बी. एससी. (बायो) किया, फिर दुर्गा लॉ कालेज से एलएल.बी.,
छतीसगढ़ कालेज से बी.जे. (बेचलर ऑफ़ जर्नलिज्म ), रविशंकर विवि शिक्षण विभाग से एम.ए. (समाज शास्त्र)की पढ़ाई जारी रही।

साथ ही 1979-80 से पत्रकारिता का सफऱ और पढ़ाई भी साथ साथ चलती रही। छात्र नेता भी रहा। साइंस कॉलेज में छात्र संघ सचिव की जिम्मेदारी सम्हाली तब सीएम भूपेश बघेल हमसे जूनियर थे तो पूर्व सीएस विवेक ढांड सीनियर.. हाँ, डॉ आलोक शुक्ला जरूर हमारे बैच के थे। डॉ शैलेश शर्मा,डॉ जावेद अली खान (दोनों डीऍम कर्डियोलॉजी) डॉ एच के अनम स्कूल से साथ पढ़े, तो वर्तमान में अधिकांश डॉक्टर मुझसे कॉलेज में जूनियर रहे।

अब लगभग 44 साल की पत्रकारिता की उम्र हो चली है। समाचार पत्रों ,न्यूज़ एजेंसी, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया से समाचार पत्रिका जैसे पत्रकारिता के विभिन्न माध्यमों में काम करने का अवसर भी मिला। सिटी रिपोर्टर से प्रधान संपादक तक का दायित्व भी निभाया। इस दौरान अपने छत्तीसगढ़ पर 5 पुस्तकों को लिखने का भी सौभाग्य मिला। वहीं पंडित राजनारायण मिश्र की प्रेरणा से एक नियमित कॉलम ‘आइना ए छत्तीसगढ़’ शुरू किया जो 15 सालों से हर सप्ताह नियमित है। ये फेसबुक, वाट्सअप के साथ ही 3 दैनिक,कई साप्ताहिक समाचार पत्रों के साथ ही एक दर्जन वेबपोर्टलों में स्थान पा रहा है।

पुरानी बस्ती रायपुर में बचपन गुजरा और पास ही से लगभग 500 सालों से रथयात्रा निकलती आ रही है। उस रथ की रस्सी पकड़कर खींचने का भी सौभाग्य मिला तो घर के पास ही करीब 7 दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा जी के सालों दर्शन करने का भी अवसर मिला।

रथ यात्रा के साथ एक और संयोग भी जुड़ा है। सन 2005 में अचानक तबियत ख़राब होने पर ही रथयात्रा के दिन ही भिलाई स्टील प्लांट के सेक्टर 9 अस्पताल में भर्ती हुआ और वहाँ जीवन-मरण के साथ संघर्ष के चलते करीब डेढ़ माह (जिसमें करीब 30 दिन icu में) भर्ती होकर स्वस्थ होकर लौटा और फिर से पत्रकारिता की यात्रा में 3/4 महीने बाद लौट गयाऔर पत्रकारिता की यात्रा निरंतर जारी है।

अंत में इतना ही कि जीवन के 63 बसंत कई कई खट्टे मीठे अनुभवों से भरे रहे और अब आगे की यात्रा भी कुछ ऐसे ही कट जाएगी …।

(रथयात्रा की बहुत बहुत शुभकामनायें……)

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