बस्तर का राजा, विधायक.. जो पुलिस की गोलियों से मारा गया….

{किश्त 27 }

राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव अविभाजित मध्यप्रदेश में जगदलपुर से विधायक भी थे। वे आदिवासियों के हितों को लेकर मुखर भी थे और उनका यह मानना था कि प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय आदिवासियों का हक़ सबसे अधिक है। आदिवासियों के इन्हीं हितों के लिए वे तत्कालीन सरकार के विरुद्ध खड़े हुये थे। तत्कालीन सरकार के साथ अपनी लड़ाई के दौरान ही 25 मार्च 1966 की रात पुलिस फायरिंग में उनके ही महल में उनकी मौत हो गई थी। साथ ही उनके सात समर्थकों की मृत देह भी मिली थी। इस घटना की एक सदस्यीय जाँच में प्रशासन की आलोचना तो की गई पर घटना के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सका था।अविभाजित मप्र में जब यह घटना हुई थी तब द्वारका प्रसाद मिश्र के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही थी।
छत्तीसगढ़ में एक ऐसा राजा भी था,जिन्होंने आजादी के बाद चुनाव लड़ा,जीत हासिल की और फिर अपनी जनता के हक के लिए संघर्ष करते हुए अपने ही महल की सीढ़ियों पर पुलिस की गोलियों से मारे गये।बात हो रही है बस्तर के राजा प्रवीरचंद्र भंजदेव की…..आजादी से पहले बस्तर इस क्षेत्र की सबसे बड़ी रियासत थी,उन्हें ऐसे हालात में ब्रिटिश सरकार ने बस्तर का महाराज बनाया,जब उनकी मां की संदिग्ध मौत हो गयी थी और उनके पिता को ब्रिटिश सरकार ने बस्तर से निर्वासित कर दिया था।उनका पालन अंग्रेजी माहौल में हुआ, गोरी नर्स और अंग्रेज गार्जियन उनकी देखरेख करते थे। ब्रिटिश सरकार की कोशिश थी कि उन्हें अंग्रेजों का वफादार बनाया जाए और बस्तर के आदिवासियों पर राजघराने के प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए वहां की खनिज संपदा का दोहन किया जाए।महराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव की एक आदत थी।अन्याय उन्हें बर्दाश्त नहीं था,चाहें वो किसी पर हो।नतीजतन बस्तर के लोगों के लिए वे भगवान बन गए,जबकि अंग्रेज सरकार उन्हें बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।आजादी के बाद उन्होंने अपनी रियासत का भारत में विलय कर दिया।प्रवीरचंद्र भँजदेव ने आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष किया।वे कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने, हालांकि उन्होंने सरकार द्वारा वन और खनिज संपदा के दोहन के खिलाफ आदिवासियों के प्रदर्शन को राजनीतिक समर्थन दिया। इस कारण केंद्र सरकार उनसे खफा हो गई।1959 में उन्हें गिरफ्तार किया गया। बाद में आदिवासियों ने प्रदर्शन किया,जिसमें करीब एक दर्जनआदिवासी मारे गए। 1961 उनके रिहा होने के बाद बस्तर आदिवासी आंदोलन मुखर होने लगा।1962 में जब विधान सभा चुनाव हुए तो बस्तर की दस में से आठ सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा,जबकि प्रवीरचंद्र भंजदेव के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की।इसके बाद बस्तर में आदिवासी आंदोलन और तेज हो गया।1966 में पुलिस ने कुछ संदिग्धों की तलाश के लिए राजभवन को घेर लिया।इसके चलते राजभवन में पुलिस और आदिवासियों के बीच संघर्ष हुआ और पुलिस की गोलीबारी में कई आदिवासियों की मौत हुए…. साथ ही पुलिस की गोली से प्रवीरचंद्र भंजदेव भी मारे गये।आदिवासी प्रवीरचंद्र भंजदेव को भगवान मानते थे।पुलिस की गोलियों से उनकी मौत होने पर आदिवासियों का सरकार से भरोसा उठ गया और देखते देखते बस्तर आगे चलकर माओवाद का गढ़ बन गया….?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *