बस्तर:आदिवासियों के तीर,बरछी,कुल्हाड़ी में नहीं लगता है जंग…

{किश्त 68}

तेरहवीं शताब्दी में सम्राट अशोक के समय बने स्तंभ हालांकि लोहे के बने थे पर उनमें जंग नहीं लगा है।उसी तरह की तकनीक लोहे का चयन बस्तर केआदिवासी करके देशी हथियार तीर, टंगिया,बरछी,फरसा आदि बनाते हैं जिनमें जंग नहीं लगता है।बस्तर में ‘बैल के डील’ वाले बैलाडिला में उच्च कोटी का लौहअयस्क पाया जाता है एक जापानी दल ने कहा था कि बैला डिला की एक भी पहाड़ी जापान में होती तो द्वितीय विश्व युद्ध नहीं हारते….।तेरहवीं शताब्दी में सम्राट अशोक ने जिस लौह तक नीक का इस्तेमाल किया था उसी तकनीक का इस्ते माल बस्तर के जंगलों में रहने वाले आदिवासी भी कर रहे हैं यहीं कारण है कि सम्राटअशोक के स्तंभ तथा आदिवासियों के हथियारों तीर,बरछी,टंगिये, फरसे में जंग नहीं लगता है।छग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सूत्रों की मानें तो जाने-अनजाने ही बस्तर के आदिमानवों को लौह अयस्कमें छिपे नैनो पार्टि कल्स का ज्ञान हो गया था यही कारण है कि उनके देशी तरीके से बनाये गये हथियारों में जंग नहीं लगता है।बस्तर,बैलाडिला से निक लने वाला लौहअयस्क विश्व में सर्वश्रेष्ठ है।द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक जापानी प्रतिनिधिमंडल बैलाडिला प्रवास पर आया था,बस्तर के ‘बैल के डील’ केआकार की बैलाडिलापहाड़ी में पाए जाने वाले लौह अयस्क पर टिप्पणी भी की थी,इन पहाडिय़ों में एक भी हमारे जापान में होती तो द्वितीय विश्व युद्ध नहीं हारते…।यानि इतनी महत्वपूर्ण है बैलाडिला की पहाड़ी, वहां से निकलने वाला लौह अयस्क…..। बस्तर के बैलाडिला से निकलने वाले लौह अयस्क की गुणवत्ता उच्च स्तरीय है,इससे ढाले जाने वाले शिल्प में भी अनूठापन छिपा है।बस्तर में लौह शिल्प का इतिहास प्रागैति हासिल काल से रहा है।यहां के वनक्षेत्र में रहने वाले आदिवासी देशी तरीके से पारंपरिक तौर पर लौह का चयन कर उसे फौलाद के रूप में ढालते हैं।यहां से बनी कलाकृतियां देशविदेश में चर्चित है।बस्तर के लौह शिल्पी की माने तो लोहे का चयन भी देशी पद्धति से किया जाता है। पहले लोहे का चयन कर उसे तोड़ मरोड़कर पीटा जाता है।अगर उसमें दरार या किरचें आ जाती हैं तो उसेअनुप योगी माना जाता है।हथियार बनाने के लिए धातु का लचीलापन होना ही जरूरी है।उसे तपाकर विभिन्न आकार में ढाला जाता है इससे बने तीर, फरसे,कुल्हाड़ी आदि का मौसम की मार का असर नहीं होताऔर न ही उसमें जंग लगती है।दिल्ली की ऐतिहासिक कुतुब मीनार तो आपने देखा ही होगा, जिसे ईंट से बनी दुनिया की सबसे ऊंची मीनार माना जाता है।इसी कुतुब मीनार के पास ही एक विशाल स्तंभ भी है,जिसे ‘लौह स्तंभ’ कहा जाता है।इसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे,लेकिन इसका इतिहास बहुत पुराना है और यह स्तंभ रहस्यों से भरा हुआ भी है।माना जाता है कि यह स्तंभ1600 साल से भी पुराना है।इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि यह शुद्ध लोहे से बना हुआ है और सदियों से खुले आसमान के नीचे खड़ा है,लेकिन आज तक इस पर कभी जंग नहीं लगा…..।

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