बस्तर से विशाखापत्तनम रेल यात्रा में 56 सुरंग पथ और अरकू घाटी भी……

 {किश्त 192}

आंध्रप्रदेश में समुद्र सतह के करीब कोत्तावालसा से किरंदुल तक रेललाइन की लंबाई 448 किलोमीटर है। दो चरणों में इसका निर्माण 1961से 1968 के बीच किया गया था। प्रथम चरण में कोत्तावालसा से कोरापुट (केके-वन) और दूसरे चरण में कोरापुट से किरंदुल (के के-टू) का निर्माण पूराहुआ। उस समय परियोजना के निर्माण पर करीब 56करोड़ रुपये की लागत आई थी। आंध्रप्रदेश-ओड़िशा मेंअनंत गिरी की सर्पीली घाटियों से होकर गुजरने वाली यह रेल लाइन में 56 सुरंगपथ हैं। रेललाइन में 87 वृहद और 1236 छोटे पुल हैं। प्रारंभ में स्टेशनों की संख्या 30 थी जो आज बढ़कर 47 हो चुकी है। केके रेललाइन में सबसे उंचाई पर स्टेशन सिमलीगुड़ा है, समुद्र सतह से 998 मीटर है,सबसेलंबा पुल कोलाब नदी पर कोरा पुट के समीप है जबकि मेजर जार्ज रेल पुल मल्ली गुड़ा में है। यह रेललाइन सिंगल पथ वाली है। अब इसका दोहरीकरण किया जा रहा है। करीब सवा सौ किलोमीटर में दोहरी लाइन बिछाई जा चुकी है।किरंदुल कोत्तावालसा लाइन अर्थात के-के लाइन से यात्रा की शुरुवात से लेकर अंत तक पहाड़ों,घाटियों से मुखातिब होते हैं और ऐसे में बैला डीला के पर्वत श्रृंखलाएं और बस्तर के पठार को छोड़ जब कोरापुट से आगे जाने लगें तो आताी है अरकू घाटी… 51 टनल घाट के रहस्यमयी अँधेरी भरी दुनिया से मुखातिबकर आपके रोमांच को द्विगुणित कर देते हैं।

क्या है एनएमडीसी
का इतिहास…..

खनन सार्वजनिक क्षेत्र की अग्रणी कंपनी नेशनल मिन रल डेवलपमेंट कार्पोरेशन का गठन 15 नवंबर 1958 को किया गया।तब तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन खनन हेतु इसका गठन किया गया था। अलग कंपनी बनने के बाद एनएम डीसी ने 1966 में मप्र के पन्ना में हीरा की खदानों को अधिगृहित किया। इसके बाद 1968 में बैलाडीला में लौह अयस्क खनन प्रारंभ किया। शुरूआत डिपाजिट 14 से हुई थी। वर्तमान में एनएमडीसी के सकलकारो बार का करीब 80 फीसद काम बस्तर में हैं। एनएम डीसी बैलाडीला से सालाना 25 मिलियन टन से अधिक मात्रा में लौह अयस्क का खनन करता है। यहां के लौह अयस्क में लोहे की मात्रा 65 फीसद और कहीं -कहीं इससे भी अधिक पाई गई है। एनएमडीसी और रेलवे दोनों मिलकर लौह अयस्क के उत्पादन और परिवहन से सालाना दो से तीन हजार करोड़ रुपये की कमाई करते हैं।कहा जाता है कि एक जापानी प्रतिनिधि मंडल ज़ब बैलाडिला आया था तो यहां के लोह अयस्क की गुणवत्ता देखकर कहा था कि यदि इन खदानों में एक भी जापान में होती तो हम सेकेण्ड वर्ल्ड वार नहीं हारते…!

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