बापू यानि महात्मा गाँधी, चाचा नेहरू यानि पंडित जवाहर लाल नेहरू, आयरन लेडी यानि इंदिरा गाँधी सहित देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गाँधी को याद किया जा सकता है। पिछले कुछ सालों यानि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा मिडिया सेल द्वारा गाँधी-गोडसे,नेहरू-सरदार पटेल, नेहरू-डॉ आम्बेडकर आदि के रिश्तों पर सवाल उठाते रहे हैं, कभी भगतसिंह, कभी सावरकर को लेकर भी तरहतरह की टीका टिप्पणी की जाती है …?कभी कभी तो कालीचरण टाइप साधु भी गाँधी पर अपशब्द कहते रहे हैँ। पिछले साल ही मप्र सरकार के शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की जमकर चर्चा रही थी… जिसमें भाजपा नेता ने पिछले यानि 2022 के गणतंत्र दिवस की परेड का जिक्र करते हुए कहा था कि गणतंत्र दिवस की परेड में नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार वल्लभभाई पटेल थे। मोहन यादव ने बिना नाम का उल्लेख किये कहा था कि परेड में न तो देश के फर्जी पिता थे….?न ही फर्जी चाचा थे…? न लोहे की महिला थी….? और न ही कम्प्यूटर के आविष्कारक थे….? मोहन यादव ने आगे लिखा था कि परेड में काशी विश्वनाथ की झांकी थी, वैष्णो देवी की झांकी थी, सनातन संस्कृति का नज़ारा था। मेरा देश सही में बदल रहा है, अंग्रेजी गुलामों के जबड़ों से निकल रहा है, मेरा देश सही में स्वतंत्र हो रहा है….? इधर हाल ही के गणतंत्र दिवस यानि 26 जनवरी 2023 को महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ी राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘गांधी गोडसे एक युद्ध’ आई है। इस कहानी की शुरुआत होती है एक कल्पना से। अगर महात्मा गांधी गोडसे गोली कांड से बच गए होते तो क्या होता? क्या क्या हो सकता था…इन संभावनाओं को फ़िल्म में दिखाने की कोशिश की है। इस कल्पना के साथ फिल्म की शुरुआत करते हैं कि गांधी को गोली तो जरूर लगी है मगर वह बच गए हैं…? फ़िल्म में दिखाया गया है कि कैसे महात्मा गांधी गोडसे को माफ कर देते हैं। वह उनसे जेल में मिलने जाते हैं। दोनों अपनी अपनी विचारधारा पर बहस करते हैं। इसी को केंद्र में रखकर फिल्म की कहानी को गढ़ा गया है।ऐसी काल्पनिक फ़िल्में बापू के देश में ही बन सकती हैं और ‘पठान’ फ़िल्म का विरोध करनेवाले लोग इस तरह की बापू को लेकर बनायी गईं काल्पनिक फ़िल्म को लेकर प्रतिक्रिया देने से भी बच रहे हैं…?वैसे
कुछ लोग सुभाष चंद्र बोस और पटेल पर प्यार लुटाने का रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं और इस बार तो नेहरू-डॉ आम्बेडकर को लेकर भी मतभेद की बात की शुरुआत कर चुके हैं…?जबकि सुभाष और पटेल, दोनों महात्मा गांधी के प्राणों में बसते थे, कांग्रेस से मतभेद के बाद सुभाष चंद्र बोस ने जब अपने काम करने का नया रास्ता चुना तब भी गांधी के प्रति उनमें नफरत नहीं थी और गांधी को राष्ट्रपिता कहने वाले पहले इंसान सुभाष चंद्र बोस ही थे। नेहरू-डॉ आम्बेडकर से विचारों को लेकर मतभेद हो सकता था पर मनभेद कभी नहीं रहा।स्व. अटल बिहारी वाजपेयी इसी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक थे जिन्होंने नेहरूजी की मृत्यु पर कहा था कि…भारत का दुलारा राजकुमार चला गया…। इंदिराजी के बांग्लादेश युद्ध के अवसर पर कहा था कि श्रीमती इंदिरा गांधी रणचंडी हैं। अटलजी ज़ब विदेशमंत्री बने थे तो संसद की दीर्घा में नेहरूजी की तस्वीर हटाने पर नाराज हो गए थे और अपने सामने उसे दोबारा लगवाया था…। उसी बाजपेयीजी ने राजीव गांधी की मृत्यु के बाद उनकी श्रद्धांजलि के अवसर पर दिल खोलकर देश के सामने खुलासा किया कि आज मैं जिंदा हूं तो राजीव गांधी की बदौलत….। उन्होंने मुझे ईलाज कराने एक प्रतिनिधि मण्डल के साथ विदेश भेजा था।
भारतीय जनता पार्टी के स्थापना के अवसर पर इस नए दल के आमुख उद्देश्य में स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने गांधीवादी समाजवाद को स्वीकार किया था।बाजपेयीजी जब प्रधानमंत्री बने तो भी उन्होंने कहा इस देश ने पिछले पचास वर्षों में जो उपलब्धियां अर्जित की हैं उनसे इनकार करना देश के पुरुषार्थ पर पानी फेरना है। इधर पिछले साल गणतंत्र दिवस पर आपत्तिजनक पोस्ट में मप्र सरकार के मंत्री मोहन यादव ने गांधी, नेहरू, इंदिरा और राजीव का अपमान करने के साथ स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के विचारों का अपमान भी किया था ।एक साल हो गये….सवाल उठ रहा है कि मप्र की सरकार के जिम्मेदार मंत्री के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गईं ? इससे तो यह समझा जाएगा कि उनके इस बयान के पीछे भाजपा भी है, एक भाजपा के नेता ने आगे बढ़कर क़ह दिया कि भारतीय नोटों पर गाँधी की तस्वीर छपी है इसीलिए नोटों का मूल्य गिरता जा रहा है…? भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी ने तो नरेन्द मोदी को ही राष्ट्रपिता ठहरा दिया था ….वैसे अब भाजपा को साफ करना ही होगा कि गाँधी /गोडसे में वे किसके साथ हैं….?कालीचरण के रायपुर के धर्मसंसद के बयान पर छ्ग के सीएम भूपेश बघेल ने उन्हें बंदी बनाने में देर नहीं की,उन्हें मप्र से गिरफ्तार किया गया तब भी वहाँ के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने विरोध किया था….। खैर,कभी कहा जाता है कि पाक बनाने के लिए नेहरू दोषी हैं… कभी कहा जाता है कि गाँधी-नेहरू ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया…? जबकि देश में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था और सरदार पटेल का निधन 1950 में ही हो गया था…तो फिर यह भ्रामक बातें देश के सामने कौन परोस रहा है….कुल मिलाकर देश के पूर्वजों को लेकर टीका टिप्पणी दुःखद है…देश या प्रदेश की सरकारों को महापुरुषों पर बयानबाजी करनेवालों पर कड़ी कार्यवाही के लिए क़ानून बनाना चाहिए जो राजद्रोह के बराबर भी हो सकता है..।
बस हम तो यही कह सकते हैँ कि बापू हमें माफ करना…….पूरे विश्व में आपका रुतबा है, आपकी मूर्तियां लोगों के लिए प्रेरणादायक हैँ तो आपके अपने देश भारत में कुछ लोग क्यों नफरत की आग में जल रहे हैं…समस्या यह है कि भाजपा जैसा भारत बनाना चाहती है, महात्मा गांधी उसके राष्ट्रपिता नहीं हो सकते हैं पर संकट यह है कि चाहते हुए भी वह सावरकर को अपना राष्ट्रपिता नहीं बना सकती है…..?
0शंकर पांडे / वरिष्ठ पत्रकार