बैलाडीला के पहाड़ और हैदराबाद के निज़ाम…

बस्तर को ओड़िसा में
शामिल करने का असफल
प्रयास भी हुआ था…..?
{किश्त9}

आदिवासी अंचल बस्तर,जिसे प्रकृति ने दिल खोलकर सजाया, संवारा है वहाँ के के खनिज, जंगल जलवायु,मेहनतकश इंसानों के चलते कभी हैदराबाद स्टेट बैलाडिला के पहाड़ खरीदना चाहते थे तो कभी ओड़िशा में मिलाना चाहते थे….. प्रयत्न तो बहुत हुए पर बस्तर छत्तीसगढ़ का ही अभिन्न अंग बना रहा।भारत को आजाद करने से पहले अंग्रेज बैलाडीला पहाड़ हैदराबाद के निजाम को बेचना चाहते थे।इसका बस्तर की तत्कालीन महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने विरोध किया था।इस बात से नाराज अंग्रेजों ने उनके पति प्रफुल्लचंद्र भंजदेव को बस्तर छोड़ कोलकाता रहने मजबूर कर दिया। वहीं महारानी कोअपेंडीसाईटिस पीड़ित बताकर लंदन भेज साजिश के तहत मरवा दिया था?महारानी की अंग्रेज विरोधी नीतियों के कारण ही 35 किलोमीटर लंबा बैलाडीला का पहाड़ आज बस्तर, छत्तीसगढ़ राज्य का हिस्सा है और पहाड़ से प्राप्त लौह अयस्क तथा पहाड़ के नीचे बसे समानांतर गांव से टीन अयस्क की खुदाई कर केंद्र और राज्य सरकार को अरबों रुपए का राजस्व प्राप्त हो रहा है। बैलाडीला का पहाड़ अगर निजामों के हाथों चला जाता तो छग में एनएमडीसी के सीएसआर मद के तहत हुए सैकड़ों विकास कार्य नहीं हो पाते।
कांग्रेस ने बस्तर में जन्मी फूलोदेवी नेताम राज्यसभा सदस्य बनीं।इसके पहले कांकेर लोस के निवासी आदिवासी नेता स्व. झुमुक लाल भेडिय़ा भी कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं।वैसे बस्तर के लेखक, वक्ता,राजनीतिज्ञ, होम्योपेथी डॉक्टरअभिमन्यु रथ को ओडि़सा कोटे से राज्यसभा सदस्य चुना गया था।वे 3 अप्रैल 56 से 2 अप्रैल 62 तक राज्यसभा सदस्य चुने गये थे।उन्होंने 1952-56 तक बस्तर को ओडि़सा में मिलाने का एक असफल आंदोलन चलाया था और वे सफल तो नहीं हो सके पर उन्हें तत्कालीन ओडि़सा सरकार ने पुरस्कार स्वरूप राज्य सभा की सदस्यता दिलाई थी।1952 के आम चुनाव में ओडि़सा (तब उड़ीसा) एक ऐसा राज्य था जहां कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था।उसे गणतंत्र परिषद (राजाओं,जमींदारों की पार्टी)के साथ मिलकर सरकार बनाना पड़ा था। उस सरकार के मुख्यमंत्री बने थे डॉ. हरेकृष्ण मेहताब। वे उत्कल संस्कृति से प्रभावित होकर आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों सहित बस्तर को भी उड़ीसा में मिलाकर सर्वांगीण विकास के पक्षधर थे। वे चाहते थे कि बस्तर के भीतर से उड़ीसा में शामिल होने की आवाज उठे ताकि राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष दमदारी से मामला पहुँचाया जा सके….।इसके लिए उन्होंने जगदलपुर के अभिमन्यु रथ को चुना था। रथ ने बस्तर के पूर्वी अंचल के भतरा आदिवासियों से संपर्क किया,दरअसल उनकी भाषा संस्कृति भी उड़ीसावालों से मेल खाती थी।उन्होंने हजारों लोगों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन भी पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष सैय्यद फजल अली को सौंपा भी था।जब यह खबर सीपी एण्ड बरार के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल को मिली उन्होंने अपने मित्र सुंदर लाल त्रिपाठी को इस मुहिम के खिलाफ खड़ा किया तब बस्तर को उड़ीसा में शामिल करने रैली निकली विरोध भी हुआ। प्रसिद्ध उपन्यासकार शानी ने ‘कस्तूरी’ में लिखा भी था, हम बस्तर में है तो सरकार हमे कौन से लड्डू खिला रही है…..उड़ीसा में रहेंगे तो कौन से कड़ाही में तले जाएंगे….? बहरहाल बाद में यह मामला देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू तक पहुंचा और उनके प्रयास से बस्तर,उड़ीसा में जाने से बाल बाल बच गया…।बाद में अभिमन्यु रथ के प्रयास के मद्देनजर उन्हें उड़ीसा कोटे से राज्यसभा सदस्य बनाया गया। बाद में वे नगर पालिका पार्षद भी बने,कुछ वर्षों पूर्व उनका रायपुर रेलवे स्टेशन में हृदयघात से निधन हो गया। उनके परिजन अभी भी जगदलपुर में ही रहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *