हर मोड़ पर हाथों की लकीरों से लड़ा हूं मैं…. हिम्मत पर भरोसा है तो खामोश खड़ा हूं मैं…

शंकर पांडे (  वरिष्ठ पत्रकार )       

छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसूइया उइके तथा राज्य सरकार के बीच फिर मतभेद उभर कर सामने आ रहे हैं। लंबित विधेयकों तथा कुछ अन्य मसलों को लेकर छग के 4 मंत्रियों रविन्द्र चौबे, मो. अकबर, शिव डहरिया तथा उमेश पटेल से मुलाकात के दौरान यह बात उभरी, दरअसल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति बलदेव भाई की राज्यपाल द्वारा नियुक्ति तथा हाल ही राज्य शासन द्वारा दो पत्रकारों को कुल सांसद बनाने को लेकर फिर अधिकार और कर्तब्य की बात चर्चा में है।
दरअसल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति के बाद राज्य सरकार ने विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक राजभवन भिजवाया था। उस पर राजवन की मंजूरी नहीं मिली है। हाल ही में उक्त विधेयक की स्वीकृति के लिए अनुरोध करने गये छग सरकार के मंत्रियों से राज्यपाल सुश्री उइके ने स्पष्ट कह दिया कि उक्त विधेयक पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा अन्य राज्यों की प्रणाली का अध्ययन कर विशेषज्ञों की सलाह लेने के पश्चात ही निर्णय लिया जाएगा राज्यपाल सुश्री उइके इस बात से भी चिंतित दिखाई दी कि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्राम पंचायतों को नगर पंचायतों में परिवर्तन किया जा रहा है जिससे जनजातियों के अधिकारों का हनन हो रहा है। एक बार चर्चा में उन्होंने बताया था कि पूर्ववर्ती तथा वर्तमान सरकार में ग्राम पंचायतों को नगर पंचायतों में तब्दील करने से ‘आरक्षण प्रणाली’ प्रभावित हो रही है तथा गैर जनजाति के लोगों को काबिज किया जा रहा है। बहरहाल राजभवन तथा राज्य सरकार के 4 मंत्रियों के बीच की चर्चा के बाद आगे की प्रक्रिया का इंतजार रहेगा वैसे हाल ही में उच्च शिक्षा मंत्री के कथन से भी राजभवन कुछ नाखुश है ऐसा पता चला है।

छग में पदस्थ रहे कुछ लोग म.प्र. में डीजी भी बने…          

अविभाजित म.प्र. के समय छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहर रायपुर की कानून व्यवस्था आईपीएस प्रशिक्षण काल में सम्हालने वाले 84 बैच के आईपीएस विवेक जौहरी अभी म.प्र. के पुलिस महानिदेशक हैं तो इसके पहले वे सीमा सुरक्षा बल के डीजी रह चुके हैं वहीं हाल ही में म.प्र. की स्पेशल डीजी ट्रेनिंग के पद पर अरूणा मोहन राव (आईपीएस 87) के पद पर पदोन्नत हुई हैं। ये भी अविभाजित म.प्र. के समय रायपुर जिले में शहर कप्तान तथा रेलवे एसपी के पद पर रह चुकी हैं तब पुलिस अधीक्षक के पद पर सीपीजी उन्नी (1973 बैच) पदस्थ थे। रायपुर में ही आईपीएस की ट्रेनिंग के दौरान सीएसपी का कार्यभार सम्हालने वाले डीएम अवस्थी (86 बैच) छग के पुलिस महानिदेशक के पद पर पदस्थ हैं तो रायपुर में ही आईपीएस का प्रशिक्षण लेने वाले एडीजी नक्सल आपरेशन अशोक जुनेजा (89बैच) भी सीएसपी सिविल लाईन सहित रायपुर में एसपी भी रह चुके हैं।
वैसे छत्तीसगढ़ में अविभाजित म.प्र. के समय पदस्थ कुछ अफसर बाद में म.प्र. के पुलिस महानिदेशक भी बनने में सफल रहे। रायपुर में एसपी, डीआईजी तथा आईजी के रूप में पदस्थ रहे कुछ अफसर म.प्र. के पुलिस प्रमुख बने थे जिनमें एचएम जोशी (83-84) विराज कृष्ण मुखर्जी (84-89), एम नटराजन (89) डीपी खन्ना (96) अयोध्यानाथ पाठक (97) बीपी सिंह (98-99) शामिल हैं। वहीं पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भी पहले छग में पदस्थ कुछ अफसर विभाजित म.प्र. में डीजीपी बने उनमें ए.एन. सिंह (2002), दिनश चंद्र जुगरान (2002-2003) श्रवण कुमार दास (2003-2005) स्वराज पुरी (बिलासपुर में एसपी रह चुके थे) (2005-2006) नंदन दुबे (एसपी रायपुर) (2012-2014) ऋषि कुमार शुक्ला (रायपुर में प्रशिक्षण), (2016-2019), व्ही.के. सिंह (जगदलपुर में एसपी, रायपुर रेलवे में एसपी) (2019) में डीजीपी रह चुके हैं। वैसे यह भी रिकार्ड है कि डीपी खन्ना म.प्र. के डीजीपी रहे तो उनके दामाद ऋषि कुमार शुक्ला भी डीजीपी रह चुके हैं तथा वर्तमान में सीबीआई के डायरेक्टर हैं। वैसे यह भी बताना जरूरी है कि अविभाजित म.प्र. में पहले डीजीपी नहीं आईजी का पद होता था। आखरी आईजी वीपी दुबे थे। 23 मार्च 82 को पहले डीजीपी के रूप में बीपी दुबे की ताजपोशी की गई थी।

बस्तर में पढ़े अजय, रायपुर के एसएसपी तो प्रशांत दुर्ग के एसपी…           

बस्तर के सुदूर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के सुदूर अंचल में सरकारी स्कूलों में हिन्दी माध्यम से पढ़ाई कर जगदलपुर के ही सरकारी कालेज से स्नातक तथा बाद में स्नातकोत्तर एसएससी तक पढ़ाई करने वाले 2004 बैच के आईपीएस अजय कुमार यादव राजधानी रायपुर के एसएसपी बनाये गये हैं। काकेर, जांजगीर, बिलासपुर, दुर्ग के बाद राजधानी रायपुर में एसपी बनाना बड़ी उपलब्धि है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह जिले दुर्ग में रहने के बाद उन्हें राजधानी में पदस्थापना के पीछे उनकी कार्यप्रणाली, दबंगता, पारदर्शी छबि भी बड़ा आधार है। बस्तर में स्कूली शिक्षा रविशंकर विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग से एसएसपी की परीक्षा उत्तीर्ण की। पिता कृषि विभाग में कार्यरत थे। उनकी प्रेरणा से ही अजय ने यूपी एसपी की परीक्षा एक नहीं तीन बार पास की पहले ही प्रयास में भारतीय लेखा सेवा में चयनित हुए फिर भी आईपीएस बनने की तमन्ना थी दूसरी और तीसरी बार वे आईपीएस में चयनित हो गये। वैसे अजय के बारे में कहा जाता है कि वे तीन भावना से काम करते हैं साथ ही अपने स्टॉफ को भी पूरा संरक्षण देते हैं। उनका मानना है कि आई लव टु टेक लाईफ एज इट कम… मतलब जिंदगी जैसे आ रही है वैसे ही जीना है, उसी में अपना सौ परसेंट जीना है।

प्रशांत ठाकुर…          

जशपुर, बेमेतरा, भाटापारा के बाद दुर्ग में पुलिस कप्तान बने प्रशांत ठाकुर भी बस्तर के निवासी है। उनके पिता कलेक्टर आफिस में सुपरिटेण्डेंट थे तथा खेती किसानी का काम भी घर में था। जगदलपुर में सरकारी स्कूलों से कालेज तक पढ़ाई करने वाले प्रशांत एसएससी गणित में गोल्डमेडल हासिल किया पीएससी से बतौर डीएसपी पुलिस बल में प्रवेश लेने वाले प्रशांत ने रायपुर, दुर्ग में एडीशनल एसपी, रायपुर कोतवाली, सिविल लाईन में सीएसपी की भी जिम्मेदारी सम्हाल चुके हैं। दुर्ग का खासकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह जिले का पुलिस कप्तान बनना महत्वपूर्ण है। साथ ही गृहमंत्री, का भी दुर्ग गृह जिला है। अपने काम से काम, कम से कम बात करने, ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा रखने तथा यारों के यार प्रशांत की कामयाबी का यही फंडा है कि जहां तक हो सके लोगों का भला करो… निरपराध को राहत और अपराधियों पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।

फूलनदेवी से विकास दुबे तक….

कानपुर का कुख्यात अपराधी तथा हाल ही 8 पुलिस वालों की हत्या का प्रमुख आरोपी विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गई तथा कुछ राज भी दब गय। कानपुर में अपने गांव से पुलिस वालों की हत्या के बाद से 7 दिनों में 6 राज्य सरकारों की पुलिस को उत्तरप्रदेश की लखनऊ पासिंग वाहन में फर्जी आईडी लेकर महाकाल की नगरी उज्जैन में आत्म समपर्ण (हालांकि पुलिस गिरफ्तारी बता रही है) करने वाले विकास दुबे को कानपुर पुलिस म.प्र. से लेकर गई। म.प्र. की पुलिस बार्डर तक छोडऩे गई फिर कानपुर के कुछ किलमीटर पहले उसे लेकर जा रही एसटीएफ की वाहन पलटी, पुलिस के अनुसार विकास, हथियार लेकर भागा, ललकारने पर भी नहीं रूका और अपने बचाव में पुुलिस की फायरिंग से विकास मारा गया (पुलिस अभिरक्षा में हत्या) खैर अपराधियों का हश्र ऐसे ही होता है या तो पुलिस के हांथों मरते हैं या कोई विरोधी गुट मार देता है….। या जेल में सजा काटते हुए मर-खप जाते हैं।
बहरहाल उत्तरप्रदेश के अपराधियों के आत्मसमर्पण की यह पहली घटना नहीं है। 14 फरवरी 1981 को बेहमई (उ.प्र.) में फूलन देवी ने 22 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी और 1983 में म.प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। उस पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपरहरण का आरोप था। 1993 में जेल से छूटने के बाद सपा की टिकट पर मिरजापुर से सांसद भी बनी। (मुलायम सरकार ने 93 में सभी आरोप वापस ले लिये थे) बाद में उनके परिचित शेरसिंह राणा ने 25 जुलाई 2001 को फूलनदेवी की हत्या कर दी थी। हो सकता है कि विकास की भी आत्म समर्पण के बाद कोई राजीतिक महत्वाकांक्षा रही होगी।
वैसे बिहार, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, म.प्र. में ही नहीं छत्तीसगढ़ में भी मुठभेड़ में अपराधी मारे जा चुके हैं। रायपुर में सदरबाजार निवासी मुन्ना तिवारी की भी पुलिस मुठभेड़ में मौत हो चुकी है उस समय एसपी सीपीजी उन्नी तथा सीएसपी रूस्तम सिंह (बाद में म.प्र. सरकार के मंत्री बने) थे।

और अब बस……….

0 पड़ोसी राज्य म.प्र. में मंत्रियों को विभागों का बंटवारा नहीं करने का रिकार्ड बन चुका है 28 मंत्री अभी भी बिना विभाग के हैं कहा जाता है कि इसका कारण महाराज, शिवराज तथा नाराज (भाजपा नेता) बताया जा रहा है।
0 मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है।
0 छत्तीसगढ़ में कोरोना प्रभावितों की संख्या बढऩे का कारण बाहर से आये मजदूर तो नहीं है।

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