आरंग का भांड देवल जैन मंदिर अति प्राचीन…

             {किश्त 214}

भांड देवल मंदिर, ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध का एक जैन मंदिर है,आरंग (राय पुर)के महाकोशल क्षेत्र में है। इसे वास्तुकला भूमिजा शैली में बनाया गया है। इस मंदिर के चबूतरे पर विस्तृत अलंकरण है। एक चबूतरा है जो एक कुर्सी को सहारा देता है, दीवार पर मूर्तियों की दो पंक्तियाँ हैं। मंदिर का ‘ले आउट प्लान’ एक स्टार आकार में है जिसे स्टेलेट (जिसका अर्थ -एक तारे के आकार का, जिसमें बिंदु या केंद्र से निकलने वाली किर णें हैं)के रूप में जाना जाता है, जिसमें छह “ऑफसेट” हैं।मंदिर पाँच मंजिलाँ ऊँचा हैअसामान्य विशेषता माना जाता है। मंदिर पश्चिम की ओर है और जीर्ण-शीर्णअव स्था में है। अतीत में, मंडप (एक बाहरी मंडप),एक बरामदा संभवतः मंदिर के हिस्से के रूप में मौजूद था। मंदिर में गर्भगृह या गर्भगृह में जैन तीर्थंकरों की 3 स्व तंत्र रूप से खड़ी बड़ी छवि याँ हैं। इन्हें काले पत्थर में अलंकृत रूप से उकेरा गया है,अत्यधिक पॉलिश किया गया है।तीर्थंकरों में अजित नाथ , नेमिनाथ,श्रेयासन नाथ हैं। केंद्रीय आकृति को बाएं हाथ में दो हिरणों को पकड़े एक चक्र के प्रतीक से सजाया गया है, दाहिने हाथ पर एक ग्लोब है। इस छवि के आधार पर “पंख वाली आकृति” नक्काशी है। नक्काशीदार छवियां मंदिर के बाहरी चेहरों को भी सुशोभित करती हैं।राय पुर-महासमुंद की सीमा में स्थित आरंग जैन धर्म के अनुयायियों का प्रमुख स्थल है।जैनप्रतिमाओं के अलावा गुप्तकालीन मुद्राएं,राजर्षि तुल्य कुलवंश, शरभपुरीय, कलचुरी शासकों केअनेक अभिलेख मिले हैं।आरंगका भांड देवल मंदिर छत्तीसगढ़ में जैन धर्म का सबसे प्रमुख मंदिर माना जाता है।रायपुर महासमुंद रोड पर 36किमी दूरी पर स्थित आरंग महत्व पूर्ण ऐतिहासिकस्थल है।आरंग महाभारत काल के राजा मोरध्वज की नगरी मानी गई है।आरंग में एक समय जैनधर्म का महत्व पूर्ण केंद्र भी था।यहां11वीं सदी का प्राचीन मंदिरस्थित है,जैन धर्म को समर्पित है। यह मंदिर भांड देवल के नाम से लोकप्रिय है। भांड देवल मंदिर एक ऊंची जग ती पर बना है, पश्चिमाभि मुखी है, मंदिर ताराकृती में पंचरथ और भूमिज शैली में बना हुआ है।गर्भगृह में तीन तीर्थंकर की सुन्दर, चमक दार कायोत्सर्ग मुद्रा वाली प्रतिमाएँ अधिष्ठित हैं। पश्चि ममुखी मंदिर ऊँची जगती पर निर्मित है,आधार विन्या स में पंच रथाकार है। नागर शैली में निर्मित इस मंदिरके मंडप और मुख मंडल का आधार से ऊपर का भाग विनिष्ट हो चुका है। मंदिर की बाह्य भित्ति अधिष्ठित से लेकर अमा लक तक उरु श्रँगों और कुलिकाओं से अलंकृत हैं। जैन तीर्थंकार यक्ष- यक्षिणी और देव प्रतिमाओं तो हैं, इसके अतिरिक्त भी आलिंगनरत मिथुन मूर्तियाँ का भी उत्की र्णन किया गया है। अधिष्ठा नभाग की सज्जा 5 पट्टीका ओं,हँसवाली नृत्य-संगीतके दृश्य,कीर्तिमुख,ज्यामिति अभिप्राय के अँकनों से युक्त है। कला की दृष्टि से हैहयवंशीय शासकों द्वारा निर्मित माना जाता है।

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