विकास के सारे दावे हुए खोखले साबित,बरसात में 50 गांव फिर होंगे टापू में तब्दील..!

बिप्लब् कुण्डू,पखांजुर : मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ राज्य को विभाजन हुए दो दशक बीत गए, विभाजन के बाद पहले तो कांग्रेस पार्टी की स्वर्गीय अजित जोगी की सरकार रही । फिर भारतीय जनता पार्टी के रमन सिंह की सरकार लगातार 15 सालो से छत्तीसगढ़ की बागडोर संभाल रखी और अभी वर्तमान में कांग्रेस पार्टी की भूपेश बघेल की सरकार को लगभग 2 साल होने को हैं । छत्तीसगढ़ में राजपाठ चलाने वाले इन दोनों पार्टियों के मुख्यमंत्रियों एवं मंत्रियों ने शहरों के विकास कार्य करना उचित समझा एवं कुछ हद तक विकास भी किया । मगर मुख्यमंत्री, मंत्रियों एवं सांसदों को जिन गांव वालों ने वडी उम्मीदों से जिताकर प्रदेश एवं केंद्र सरकार तक पहुचाया, वही ग्रामीण आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।

कोटरी नदी के उस पार बसें गाओं की जिनमे रहने वाले ग्रामीणों के पास मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है…

दरअसल हम बात कर रहे हैं कांकेर जिले के परलकोट क्षेत्र की जहाँ पखांजूर से लगभग 30 किलोमीटर दूर सीतरम, बेचाघाट, राजामुंडा, बिनागुण्डा, मेसपी, केंगल, मेसपी जैसे पचासों गांव कोटरी नदी के उस पार बसें गाओं की जिनमे रहने वाले ग्रामीणों के पास मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है ।गर्मियों के 4 से 5 महीनों में कोटरी नदी में जल स्तर कम रहते हैं । मगर बारिश के शुरू से लेकर ठंड के 8 महीनों तक इन ग्रामीणों को रोजमर्रा के सामान, स्वास्थ्य संबंधी सेवाओ एवं शासकीय योजनाओं से संबंधित कामकाज के लिए उफनती हुई कोटरी नदी में जान जोखिम में डाल कर नाव से नदी को पार कर बेठिया बाजार एवं पखांजूर स्थित शासकीय कार्यालय में आना पड़ता हैं।

# यहाँ के लोगों का जीवन वनवास से कुछ कम नहीं…

कोटरी नदी के उस पार में बसे 50सो गांव वालो का जीवन वनवास से कुछ कम नहीं है । अक्सर इन गांव के ग्रामीणों को घरेलू उपयोगी सामानों के लिए कोटरी नहीं को नाव के सहारे पार कर बेटियां बाजार, बांदे बाजार एवं पखांजूर में आना पड़ता हैं । कोई भी बीमार होने पर ग्रामीणों को इसी नाव से जान जोखिम में डालकर स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने पड़ते हैं । यह तक कि ग्रामीणों द्वारा इकट्ठा किया गया वनोपज को भेजने के लिए भी नाव का सहारा लेना होता हैं यह सभी गांव के चारो ओर से बड़े बड़े नदी एवं नाला गुजरा हैं बारिश के इन दिनों में सभी नदी नालों में लवालव पानी भर जाता हैं यहां सभी गांव में पहुंचने के मार्ग पर सरकार पुलिया व ब्रिज भी बनाने में आज तक नाकाम रही जिसका खामियाजा इन 50सो गांव के हजारों ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है हर बार चुनाव से पहले इन भोले भाले ग्रामीणों को जनप्रतिनिधियों द्वारा पुलिया एवं कोटरी नदी के बेचाघाट में ब्रिज बनाने की बात कही जाती हैं मगर हमेशा की तरह जनप्रनिधि कुर्सी में जम जाने के बाद इन ग्रामीणों से किया हुआ वादा भूल जाया करते हैं।

# ग्रामीण द्वारा चलाया जाता हैं नाव….

क्षेत्र में कोटरी नदी के बारकोट घाट एवं बेचाघाट में ग्रामीणों द्वारा नाव चलाया जाता हैं 50सो गांव के हजारों ग्रामीण छोटे छोटे बच्चो एवं बुजुर्गों को नाव में सवार होकर नदी पार करते हैं एक मोटरसाइकिल सहित एक आदमी एक बार पार करने के लिए नाव का किराया 50 रुपये नगत देने पड़ता है वही नाव को चलाने के लिए रोज अलग अलग गांव के नाविकों का जिम्मेदारी होता हैं।कई बार सवारी मोटरसाइकिल एवं सामग्री से भरा नाव डगमाकर पलट जाता हैं ।

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