सौम्य अजय राठौर नहीं रहे…..…सहसा विश्वास ही नहीं हो रहा है कि एक मनोहारी मुस्कान,तनाव रहित रहकर सबको खुश रखने वाला, सिद्धान्तों को समर्पित और आज के युग में वास्तविक ईमानदार अनुज अजय राठौर आज हमसे हमेशा के लिए दूर चला गया! क्रूर कोरोना कहर की तीसरी पारिवारिक लहर आज उसे भी लील गई।*
*इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज की राजनीति में हमारी पीढ़ी के बाद कौन ? यह सवाल उन दिनों हम लोगों की जहन में था…मनन चल रहा था, एक दिन तत्कालीन छात्रनेता स्व.चमकौरसिंघ और मैं अचानक उनके स्कूटर MPN 9131 से अज्जु भाई के महारानी रोड स्थित निवास पहुंचे,शायद वह 26 मई,1977 का दिन था।उनसे कहा कि तुम्हें अब कॉलेज की राजनीति में सक्रिय रहना है।अज्जु भाई बोले नहीं,नहीं मेरी रुचि तो खेलों में है,राजनीति मेरे बस की नहीं है।जैसे-तैसे उन्हें उन्हें छात्र राजनीति की चाशनी चखाई, वे सक्रिय भी हो गए, फिर 1980 में जब उनसे कहा कि अब तुम्हे इस वर्ष अध्यक्ष का चुनाव लड़ना है, तब कुछ देर आनाकानी के बाद वे राजी हुए। मैं और चमकौरसिंघ उन्हें एमजी रोड गुरुद्वारा के पास स्थित “मालवा स्टूडियो”,जो हर वर्ष हमारी छात्र राजनीति में चुनावी शुरुआत का मुख्य केंद्र हुआ करता था,वहां गए और हम सभी के आदरणीय स्व. रघुनाथ जी शिवनेकर (रघु भैया) से उन्हें मिलवाया,अज्जु भाई का बतौर उम्मीदवार फोटो सेशन करवाया,चुनाव लड़वाया,वे अच्छे मतों से जीते, फिर विवि छात्रसंघ अध्यक्ष,1983 में पार्षद रहे, विधान सभा क्षेत्र क्र.2 से पार्टी प्रत्याशी व दिग्विजयसिंह जी की सरकार में खादी ग्रामोद्योग निगम में उपाध्यक्ष भी मनोनीत हुए। पूर्ण ईमानदारी को समर्पित अपनी इस राजनीति में उनके स्वभाव में सिर्फ़ कार्यकर्ता का भाव ही हावी रहा,अहंकार कोसों दूर रहा।*
*राजनैतिक जीवन के हर उतार-चढ़ाव में उन्होंने हमेशा अपने पुराने संबंधों का हवाला देते हुये सदैव मुझे अपने बड़े भाई के रूप में सम्मान दिया, पारिवारिक रिश्ते ही निभाये। निःसंदेह वे राजनीति में स्व.माधवराव सिंधिया जी के नज़दीक रहे,उनके निधन के बाद कुछ समय तक विचलित भी रहे। एक दिन यकायक मुझे फोन किया,कहा के.के.भाई आपसे कुछ बातें करना है, कहां बैठें,मैंने कहा आप जहां कहें मैं वहां आ जाऊंगा,उन्होंने कहा पम्प पर नहीं वहां बात नहीं हो सकेगी फिर कहा सांटा बाज़ार किशोर बत्रा जी की दुकान पर (जहां छात्र जीवन से लगभग हमारे सभी समकालीन छात्र नेताओं की बैठक थी,जो आज भी है ) मिलते हैं। हम वहां मिले, अज्जु भाई बोले आप बड़े भाई हैं बताइये मैं क्या करूँ,कुछ निर्णय नहीं ले पा रहा हूँ। मैंने कहा स्व.सिंधिया आपको बहुत स्नेह के साथ व्यक्तिगत रूप से चाहते थे,लाज़मी है आपको उस परिवार के साथ ही राजनीति करनी चाहिए।आप जैसे ईमानदार व्यक्ति का भविष्य है,यदि अच्छे लोग राजनीति से दूर हो गए तो क्या चोर उच्चकों को हम लोग राजनीति की चाबी सौंप दें? उन्होंने बिना सोचे मुझे सीधा जबाव दे डाला जिसे महल में खेलता हुआ देखा है,उसे अपना नेता नहीं मान सकता हूँ! मैं आश्चर्यचकित, मैंने इस खुद्दारी पर खड़े होकर उन्हें चूमा,गले लगाया और सलाम किया। हालांकि उन्होंने कांग्रेस की सक्रिय राजनीति से कुछ हद तक तौबा कर ली थी,किन्तु सच्चे कांग्रेसी निरंतर बने रहे। पार्टी के हर कार्यक्रमों/समारोहों/आंदोलनों में हिस्सा लेने में कोई कोताही नहीं की, कार्यकर्ताओं के दुःख-सुख में हमेशा हिस्सा लिया।
अज्जु भाई की राजनैतिक व आर्थिक ईमानदारी के कई किस्से जो मेरे सामने घटित हुए, मैं उनकी सार्वजनिक चर्चा तो नहीं कर सकता हूँ पर यह अभिमान के साथ कह सकता हूँ कि आज के नैतिक व आर्थिक पतन के इस दौर में अजय भाई वास्तविक ईमानदारी की मिसाल थे,इससे इतर मुझे यह कहने भी कोई गुरेज नहीं है कि वह मौजूदा पीढ़ी के अंतिम ईमानदार नेता थे। शहर व प्रदेश के सभी राजनैतिक दलों व उनके नेताओं के पसंदीदा लोगों में अज्जु भाई श्रेष्ठ पंक्ति में आते थे…सार्वजनिक जीवन में उनका चले जाना सिद्धान्तवादी व ईमानदार नेता की कमी के रूप में सदैव खलेगा…।
– चित्र 1980 का है,जब वे क्रिश्चियन कॉलेज छात्रसंघ अध्यक्ष थे। आलेख : केके मिश्रा ( कांग्रेस के सीनियर लीडर हैं )