{किश्त 220}
देश के पूर्व उप-प्रधान मंत्री व भाजपा को फर्श से अर्श तक पहुंचानेवाले लालकृष्ण आडवाणी का 8 नवम्बरको जन्मदिन है। 8 नवम्बर 24 को आडवाणीजी 97 साल के हो जाएंगे।
भाजपा को 2 लोस सदस्य वाली पार्टी से तीसरी बार केंद्र में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली सरकार सहित कईराज्यों में भाजपा और समर्थक दलों की सरकार बनाने के पीछे निश्चित ही अटल -आडवाणी की मेहनत को भुलाया नहीं जा सकता है। अयोध्या में राममंदिर की स्थापना का भले ही लोग श्रेय लेने आगे हैं, पर इसमें भी आडवाणी की रथ यात्रा, आंदोलन का बड़ा योगदान रहा है।खैर,बात वर्ष 1984 की है।लोक सभा चुनाव के प्रचार में निकले लालकृष्ण आड वाणी को विमान की किसी तकनीकी खराबी के चलते ही अचानक माना विमानतल पर उतरना पड़ा। उस समय पुराने विमानतल पर छोटा सा व्हीआईपी रूम हुआ करता था और एक ही केंटीन थी।वह उसी समय खुलती थी ज़ब एक या दो विमान से यात्री आते थे। उस दिन मुझे उनके माना में अचा नक उतरने की खबर पुलिस अफसर से मिली, तब पत्रकारिता की 4 साल की उम्र में स्कूटर से ही विमानतल पहुंच गया। पहुंचने पर किसी अफसर ने मुझसे पूछा… कुछ खाने को है क्या..? उस समय हम बतौर सिटी चीफ लम्बे समय तक घर से ही बाहर रहते थे, स्कूटर की डिक्की में बिस्कुट,नमकीन आदि रखा करते थे। मैने वह तो दिया ही और पूछा भी इसकी इतनी जरुरतक्यों पड़ी है…? तब उसी अफसर ने बताया भी कि आडवाणीजी को शुगर है, न्हें कुछ खाना है,शहर से कुछ मंगाने में बड़ा समय लगेगा! खैर मेरी आडवाणीजी से अकेले में अच्छी मुलाक़ात हुई, तब राजनीतिक हालात के साथ ही निजी जिंदगी पर लम्बी बातचीत भी हुई। थोड़ी देर बाद बृजमोहन अग्रवाल नाश्ता लेकर पहुंचे और उसके बाद बातचीत का सिलसिला ही खत्म हो गया। तब तक कुछ पत्रकार फोटोग्राफर भी वहाँ पहुँच गये। थोड़ी देर में विमान की तकनीकी खराबी ठीक हो गई, आडवाणीजी गंतव्यकी ओर रवाना हो गये,वह मुलाक़ात अविभाजित मप्र के समय की थी। ठीक से समय तो याद नहीं है पर तब पीएम इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 84 के लोस चुनाव का समय हो सकता है, तब 1984 के चुनाव में भाजपा को देश में केवल 2 सीटें हीं मिली ही थीं, लोस सीट हनामकोड़ा (आंध्र) के आमचुनाव में इंदिरा की हत्या की सहा नूभूति लहर के बावजूद भाजपा के चंदू पाटिया रेड्डी ने कांग्रेस के बड़े नेता नरसिम्हा राव को हराया था।दूसरा लोस क्षेत्र था मेहसाणा (गुज रात) इस लोस क्षेत्र में भाजपा के एके पटेल ने भी कांग्रेस के आरएस कल्याण भाई को हराया, खैर बात आडवाणीजी के माना विमानतल पर उतरने की हो रही है।(फोटो उसी समय की,करीब 40 साल पुरानी है) उस मुलाकात में आडवाणी जी ने उस समय की राजनीति, भारत-पाक विभाजन की त्रासदी की भी चर्चा की थी।आडवाणी की आत्मकथा ‘माय कंट्री माय लाइफ’ में विभाजन के दौर में सिंध छोड़ने की व्यथा नरसंहार, पंजाब,सिंध और बंगाल के गैर मुस्लिम भी कत्ल किये गये थे,वे उन लाखों हिन्दुओँ में से एक थे जो पाकिस्तान से बचकर भारत आये,आत्मकथा में सिंध के सामाजिक- आध्यात्मिक इतिहास बताने के बाद, आड वाणीजी कराची (जिसे वे ‘पसंदीदा शहर’ कहते हैं) में घर,स्कूल में अपने जीवन का वर्णन भी किया है।अपने जीवन में दो परिवर्तनकारी प्रभावों के बारे में भी उन्होंने लिखा है।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएस एस),राष्ट्रवादी संगठन, जिसमें 14 साल की उम्र में स्वयंसेवक के रूप में वे शामिल हुये थे, स्वामी रंगनाथानंद,कराची में रामकृष्ण मठ प्रमुख थे, स्वामी विवेकानन्द के दर्शन के प्रखर प्रति पादक भी थे, आडवाणी की मुलाकात उनसे कराची में हुई थी।पत्रकार,जनसंघ के प्रथम पीढ़ी के नायक, श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने जिस ‘राष्ट्रवादी चिंतन’ को आधार बनाकर जनसंघ का स्वप्न सजाया उसे मूर्तरूप देने ही पूरा जीवन आहूत किया। ये वो दौर था ज़ब जनसंघ का कोई जनाधार नहीं था, देश मेँ कहीँ 2-4 जगह चुनाव मेँ सफलता मिलती थी। पर विश्वास से संगठन को मजबूत करने लगे रहे।अटलजी से उनकी मित्रता, भार तीय राजनीति की एक मिसाल रही, वे हमेशा साथ रहे ..!
वे याद करते हुये लिखते हैं कि इंदिराजी की हत्या के बाद चुनाव में कांग्रेस को एकतरफा जीत हासिल हुई भाजपा को मात्र 2 सीट में सफलता मिली, तब राष्ट्रीय पार्टी के नेतृत्व के लिए घोर निराशा के क्षण थे…! पर उन्होंने मनोबल बढ़ाया, राम जन्म भूमि आंदोलन साथ ही आडवाणीजी की रथयात्रा जिसने आज की शक्तिशाली भाजपा को जन्म दिया है।