{किश्त 191}
आचार्य विनोबा भावे,गांधी के अनुयायी थे।एक धर्मगुरु के साथ समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। अहिंसा के पुजारी थे।उन्होंने अहिंसा,समानता के सिद्धांत का हमेशा पालन किया,अपना जीवन गरीबों, दबे-कुचले वर्ग के लिए लड़ने को समर्पित किया। उनके अधिकारों के लिए खड़े हुए। उनको भूदान आंदोलन चलाने से ज्यादा लोकप्रियता मिली। सामु दायिक नेतृत्व के लिए 19 58 में अन्तर्राष्ट्रीय रेमन मेगसेसे पुरस्कार पानेवाले वह पहले व्यक्ति थे।1983 में मरणोपरांत सर्वोच्च नाग रिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया।उनका जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्रकोलाबा जिले के गागोड गांव में ही हुआ था। उनका पूरा नाम विनायक नरहरि भावे था। उनके पिता का नाम नरहरि शम्भूराव, माता का नाम रुक्मिणी देवी था। उनके 3 भाई एक बहन थीं। उनकी माता धार्मिक स्वभाववाली महिला थीं।अध्यात्म के रास्ते में चलने की प्रेरणा उनको मां से ही मिली थी।उनका सफर बनारस जैसे पवित्र शहर में नया मोड़ लेता है।वहां गांधीजी का वह भाषण मिल जाता है जो उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दिया था। इसके बाद उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव आता है। 1916 में जब वह इंटर मीडिएट की परीक्षा मुंबई देने जा रहे थे तो रास्ते में अपने स्कूल-कॉलेज के सभी सर्टिफिकेट जला दिए। गांधीजी से पत्र के माध्यम से संपर्क किया।20 साल के युवक से गांधीजी काफी प्रभावित हुए तथा अहमदाबाद स्थित आश्रम में आमंत्रित किया।7 जून, 1916 को विनोबा भावे ने गांधी से भेंट की, आश्रम में रहने लगे। आश्रम की सभी गतिविधियों में भी हिस्सा लिया, साधारण जीवन भी जीने लगे। इस तरह अपना जीवन गांधी के विभिन्न कार्यक्रमों को समर्पित कर दिया। विनोबा नाम उनको आश्रम के अन्य सदस्य मामा फाड़के ने दिया था। दरअसल मराठी में विनोबा शब्द काफी सम्मान देने के लिए बोला जाता हैगांधीजी के प्रभाव में विनोबा भावे ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया। असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया। वह खुद भी चरखा कातते थे और दूसरों से ऐसा करने की अपील करते थे।विनोबा ने सामा जिक बुराइयों जैसे अस मानता, गरीबी को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया। गांधीजी ने जो मिसालें कायम की थीं, उससे प्रेरित होकर समाज के दबे-कुचले तबके लिए काम करना शुरू किया। सर्वोदय शब्द को उछाला, जिसका मतलब सबका विकास था। सन 1950 के दौरान उनके सर्वोदय आंदो लन के तहत कई कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें से एक भूदान आंदोलन था। साल 1951 में वह आंध्रप्रदेश (अब तेलंगाना ) के हिंसाग्रस्त क्षेत्र की यात्रा पर थे।18 अप्रैल,1951 को पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने उनसे भेंट की। उन लोगों ने विनोबा भावे से करीब 80 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने का आग्रह किया ताकि वे लोग अपना जीवन-यापन कर सकें। विनोबा भावे ने गांव के जमीनदारों से आगे बढ़कर जमीन दान करने, हरिजनों को बचाने की अपील की। अपील पर एक जमीँदार ने सबको हैरत में डालते हुए अपनी जमीन दान देने का प्रस्ताव रखा। इस घटना से भारत के त्याग,अहिंसा के इतिहास में नया अध्याय जुड़ गया। यहीं से आचार्य विनोबा भावे का “भूदान आंदोलन” शुरू हो गया। यह आंदोलन 13 सालों तक चलता रहा। इस दौरान विनोबा ने देश के कोने- कोने का भ्रमण कियाकरीब 58,741 किलोमीटर सफर तय किया। इस आंदोलन के माध्यम से वह गरीबों के लिए 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में हासिलकरने में सफल रहे।जमीनों में से 13 लाख एकड़ जमीन को भूमिहीन किसानों के बीच बांट दिया गया। विनोबा भावे के इस आंदोलन की न सिर्फ भारत बल्कि विश्व में भी काफी प्रशंसा हुई।
छत्तीसगढ़ प्रवास…
वैसे 1960 के दशक में आचार्य विनोबा भावे के भू-दान यज्ञ आंदोलन के समय छत्तीसगढ़ रायपुर, दुर्ग सहित कई शहरों, गाँवोँ की पदयात्रा कर दान में प्राप्त जमीन की आचार्य विनोबा भावे ने 1950- 1960 के दशक में लगभग तेरह वर्ष कश्मीर से कन्या कुमारी तक सम्पूर्ण भारत में अखण्ड भू-दान पदयात्रा की थी। उन्होंने पूरे देश में भूमिहीनों को जमीन देने जन-जागरण अभियान चला कर लोगों से 44 लाख एकड़ जमीन दान में प्राप्त की थी। इसमें से देश के विभिन्न राज्यों में लगभग 24 लाख 49 हजार एकड़ जमीन वितरित की गई। तब मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ शामिल) में 4 लाख 10 हजार एकड़ जमीन भू- दान में मिली थी, इसमें से लगभग 2 लाख 37 हजार 629 एकड़ का वितरण हो चुका है। वितरित भूमि में दुर्ग जिले की लगभग 12 हजार एकड़ जमीन भी शामिल है। मध्यप्रदेश में भू-दान बोर्ड भंग होने के बाद से संबंधित सम्पूर्ण रिकार्ड वहां के राजस्व विभाग को सौंपा जा चुका है, जो छत्तीसगढ़ को अब तक नहीं मिला है। इस बीच कुछ लोग भू-दान में प्राप्त जमीन बेचने भी लगे हैं,जो अनुचित है। कुछ सर्वोदय कार्यकर्ता ने भू-दान का छत्तीसगढ़ से संबंधित रिकार्ड मध्यप्रदेश सरकार से प्राप्त करने, छत्तीसगढ़ में भी भू-दान बोर्ड गठित करने का आग्रह पहले भी किया था। पर अभी तक न मप्र से भूदान से सम्बंधित रिकार्ड आया है, न ही भू- दान बोर्ड गठन के सुझाव पर भी गंभीरता से विचार हुआ है। खैर इस विनोबा भावे नामक इस महामानव का निधन 15 नवंबर, 1982 को हो गया।(ठाकुर प्यारेलाल सिंह की प्रतिमा का अनावरण,आमापारा बुनकर संघ स्थित रायपुर कार्यालय विनोबाजी ने ही किया था, बाद में उनके बेटे हरि ठाकुर की भी बगल में प्रतिमा स्थापित की गई )