आचार्य रजनीश,ओशो का संस्कृत कॉलेज और छत्तीसगढ़ से नाता…

{किश्त69}

आचार्य रजनीश या ओशो का छत्तीसगढ़ से बस यही नाता रहा है कि वे संस्कृत महाविद्यालय रायपुर में व्याख्याता थे तो वहाँ के कालिदास छात्रावास में रहते थे वहां उन्हें कमरा नंबर 12 भी अबँटित हुआ। कुछ दिन पुरानी बस्ती अमीन पारा के पास भी उनके रहने की खबर है।छ्ग के प्रसिद्ध अधिवक्ता विचारक,लेखक कनक तिवारी ने उनसे मुलाक़ात का जिक्र किया है।उनका कहना है कि 1957में ज़ब साइंस कालेज के छात्र बतौर उन्हें 1857 की क्रांति विषय पर एक भाषण स्पर्धा में पहला पुरस्कार मिला था,तब उस स्पर्धा के एक निर्णायक चंद्रमोहन जैन(बाद में आचार्य रजनीश) भी थे। बाद में संस्कृत कॉलेज में बुलाकर कुछ किताबें तथा अच्छा वक्ता बनने के टिप्स भी दिये थे।ओशो का जन्म 11दिसंबर 1931को मप्र के रायसेन के कुचवाड़ा गांव में हुआ था।ओशो का मूल नाम चंद्रमोहन जैन है। पिता का नाम बाबूलाल, माता का नाम सरस्वती जैन है।उनकी कुल 11 संताने थे जिनमें ओशो सबसे बड़े थे,आचार्य रजनीश,ओशो रजनीश उनके अन्य नाम हैं।पूरी दुनिया में प्रसिद्ध ‘ओशो’ने अपनी शिक्षा जबलपुर में पूरी कर जबलपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रहे।वर्ष 1957 में संस्कृत के लेक्चरर के तौर पर रजनीश ने रायपुर स्थित संस्कृत महाविद्यालय में सेवाएं दी थीं।जब ओशो संस्कृत महाविद्यालय में प्रोफेसर थे।तब उन्होंने संन्यास नहीं लिया था।बाद में उनका तबादला जबलपुर कर दिया गया या उन्होंने करवा लिया?समय के साथ उनके भी जीवन में भारी बदलाव आया,वे आचार्य रजनीश,ओशो के नाम से पहचाने जाने लगे।बचपन से ही उन्हें दर्शन में रुचि पैदा हो गई,ऐसा उन्होंने अपनी किताब ‘ग्लिप्सेंस ऑफ माई गोल्डन चाइल्ड हुड’ में लिखा है।उन्होंने अलग अलग धर्म और विचारधारा पर प्रवचन देना शुरू किया, बाद में ध्यान शिविर भी करना शुरू कर दिया। इस दौर में उन्हें आचार्य रजनीश के तौर पर जाना जाता था, नौकरी छोड़कर नवसन्यास आंदोलन की शुरुआत की।इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू किया।आध्यात्मिक दार्शनिक ओशो (आचार्य रजनीश) का पुणे आश्रम भी चर्चा में रहा।यह वही जगह है,जहां ओशो ने पहला आश्रम बनाया था और जिसे बाद में उन्होंने ओशो इंटर नेशनल मेडि टेशन रिज़ॉर्ट का नाम दिया।यह जगह भी विवादों में रही।साल1981से1985 के बीच वोअमरीका चले गये,अमरीकी ओरेगॉन में आश्रम की स्थापना की।ये आश्रम 65हजार एकड़ में फैला था।ओशो का अमरीका प्रवास बेहद विवादास्पद रहा।महंगी घड़ियां,रोल्सरॉयल कारें, डिजाइनर कपड़ों की वजह से वे हमेशा चर्चा में रहे।ओरेगॉन में ओशो के शिष्यों ने आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा लेकिन लोगों ने इसका विरोध किया।उनकी एक पुस्तक ‘संभोग से समाधि तक’ भी काफ़ी चर्चा में रही इसके बाद 1985 वे भारत वापस लौट आए।ओशो पर ट्रेडमार्क ओशो इंटरनेशनल ने यूरोप में ओशो नाम का ट्रेडमार्क ले रखा हैउसको लेकर भी वे चर्चा में रहे।पुणे स्थित उनकी समाधि पर लिखी इस बात से ओशो कीअहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है…
“न कभी जन्मे…,न कभी मरे…वे धरती पर 11 दिसंबर,1931से19 जनवरी 1990 के बीच आये थे.”

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