शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
जैसे किसी संकट के समय एक इंसान की पहचान होती है ठीक उसी तरह सामने खड़ी चुनौती को देखकर किसी मुल्क का किरदार सामने आता है। इततने बड़े पैमाने पर संकट सामने खड़ा हो तो तुरंत पता चल जाता है किस देश-प्रदेश का मुखिया इस चुनौती का सामना करने की क्षमता रखता भी है या नहीं, उसके किरदार में संकट से निपटने भर की मजबूती है भी या नहीं…
छत्तीसगढ़ में अभी तक कोरोना पॉजीटिव्ह 18 मरीज मिले हैं इनमें 8 पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं पर हाल ही में कटघोरा क्षेत्र में एक साथ 7 पाजिटिव्ह लोगों का मिलना राज्य सरकार के सामने पुन: चुनौती के रूप में सामने आ गया है। सभी एक ही समुदाय के हैं 7 में से 3 मरीज एक ही परिवार के हैं। पूरी मानव जाति (अब तो जानवरों में भी विस्तार की चर्चा) कोरोना के असमय आये इस संकट से जूझ रही है छत्तीसगढ़ भी प्रभावित है पर यह चर्चा जरूरी है कि छग में अभी तक इस कोरोना के कारण कोई कालकलवित नहीं हुआ है। असल में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के पत्र के बाद ही छग सरकार सक्रिय हो गई थी बाद में केंद्र सरकार के मुखिया नरेन्द्र मोदी ने लॉकडाऊन की घोषणा की।
छत्तीसगढ़ में अभी भूपेश बघेल के नेतृत्व में सरकार काबिज है। इसके पहले डॉ. रमन सिंह तथा अजीत जोगी की सरकार छग में रही है। अजीत जोगी तो प्रोफेशनल कालेज से इंजीनियर बनकर आईपीएस, आईएएस होकर राजनीति में उतरे थे 14 साल तक कलेक्टरी का अनुभव था तो रमन सिंह पेशे से आयुर्वेदिक डाक्टर थे। वार्ड पार्षद, विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री होकर प्रदेश की बागडोर सम्हाली थी उस लिहाज से भूपेश बघेल ने किसी तरह की प्रोफेशनल डिग्री नहीं ली है, दिग्विजय सिंह तथा जोगी मंत्रिमंडल में कुछ समय मंत्री रहने का ही उनका सरकारी अनुभव है पर वो आम आदमी की पीड़ा अच्छे से समझते हैँ , खेत, किसान, खलिहान से उनका प्रत्यक्ष नाता रहा है। सरकार बनने के बाद उन्होंने किसानों का कर्ज माफ करके नरूवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी की योजना पर जोर दिया तो लोग उनकी प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठाने लगे पर सरकार बनते ही जिस तरह उन्होंने मुख्य सचिव, डीजीपी की नियुक्ति की, कुछ अफसरों पर कड़ी कार्यवाही की तो भी सवाल उठे पर कोरोना जैसे विश्वव्यापी संकट के समय भूपेश बघेल और उनकी टीम द्वारा उठाये गये कदम से उनके परिपक्व राजनेता, संकट में भी विचलित हुए बिना निर्णय लेने की एक नई विधा सामने आई है। त्वरित निर्णय तथा कुशल प्रबंधन के चलते कोरोना का छग में विस्तार नहीं हो सका यह तो उल्लेखनीय है। कोरोना की तो छग से विदाई होने ही वाली थी पर दिल्ली में एक धार्मिक आयोजन में शामिल लोगों के कारण कुछ नये कोरना प्रभावित सामने आ गये। छग में कोई भी भूखा नहीं सोएगा, आमजन को जरूरी सामग्री सुलभ हो, बाहरी प्रदेशों से आये लोगों को भोजन, छग के बाहरी प्रदेशों में फंसे मजदूरों को मदद, बाड़ी की सब्जी -भाजी की शहरों में उपलब्धता, राहत सामग्री का वितरण जन जागरण, स्कूली बच्चों को जनरल प्रमोशन, कोरोना से बचाव के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने, जनता लाकडाऊन में कुछ सख्ती आदि के पीछे भूपेश बघेल और उनकी टीम में शामिल मुख्य सचिव आर.पी. मंडल, मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ एसीएस सुब्रत साहू, उपसचिव तथा डीपीआर तारण प्रकाश सिन्हा, उप सचिव सौम्या चौरसिया के अलावा राजभवन तथा श्रम विभाग के सचिव सोनमणी वोरा, समाज कल्याण विभाग के सचिव आर.प्रसन्ना सहित रायपुर के कलेक्टर तथा पुलिस कप्तान की सराहनीय भूमिका रही है। तो छग सरकार के वरिष्ठ मंत्री स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सम्हाल रहे टीएस सिंहदेव, स्वास्थ्य विभाग की मुखिया निहारिका बारिक, संचालक स्वास्थ्य, एम्स के संचालक सहित स्वास्थ्य विभाग की टीम की सक्रियता भी प्रशंसनीय है। डीजीपी डीएम अवस्थी के नेतृत्व में प्रदेश में सड़कों पर तैनात पुलिस कर्मी भी बेवजह घूमने वालों पर कभी कड़ाई, कभी नरमी दिखाकर कोरोना फैलने से रोकने सामाजिक दूरी बनाए रखने का संकेत दे रहे हैं। इधर वन विभाग के मुखिया राकेश चतुर्वेदी अब कोरोना संक्रमण से जानवरों को बचाने अपनी टीम के साथ कार्यरत है। कुल मिलाकर राजनेता, अफसर, सामाजिक संगठन, आम नागरिकों के अलावा वे भी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने छग में कोरोना से संघर्ष करने मुख्यमंत्री राहत कोष में खुलकर दान दे रहे हैं वे आम-खास लोग भी बधाई के पात्र हैं जो भूखों को भोजन कराने में मदद कर रहे हैं।
बीमारियों में कमी…..
सोशल मीडिया में लोग सड़कों पर विचरण करते जंगली जानवर शेर-हिरणों के विचरण की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं। प्रदूषण में कमी की बात भी सामने आ रही है। लेकिन एक दूसरे पक्ष पर भी विचार जरूरी है। कोरोना के चलते कई सरकारी-निजी अस्पतालों में ओपीडी बंद है इसके बावजूद, इमरजेंसी में भीड़ कम है, आखिर बीमारियों में इतनी कमी कैसे आ गई? सड़कों पर गाडिय़ां नहीं चल रही है रेल संचालन बंद है तो दुर्घटनाएं नहीं हो रही है पर हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज या हाइपर टेंशन जैसी समस्या लेकर मरीज अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं आखिर ऐसा हो कैसे गया है…।
बनारस के हरिशचंद्र घाट में औसतन रोजाना 80 से 10 शव आते थे पर कोरोना के बाद 20-25 शव आ रहे हैं। मणिकर्णिका घाट पर भी यही हालात हैं। डोमराज परिवार भी आश्चर्य चकित हैं कि इस मौसम में शवों की संख्या में वृद्धि होती थी पर इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। अस्पतालों में नये मरीज नहीं आ रहे हैं केवल पुराने ही भर्ती हैं। दरअसल कारपोरेट अस्पतालों के उद्भव के बाद मरीजों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। मामूली सर्दी-खांसी में भी अस्पतालों में भर्ती का चलन जारी हो गया है। शराब दुकाने, बार, रेस्टारेंट बंद होने से लोग घर में ही खाना खा रहे हैं, परिवार के साथ समय बिता रहे हैं। मैं डाक्टरों की सेवा की अहमियत कम करने की कोशिश नहीं कर रहा हूं, कोविद 19 में जो सेवा दे रहे हैं उन डाक्टरों को नमन भी करता हूं पर मुझे लगता है कि साफ पानी, घर का खाना अच्छा पारिवारिक वातावरण मिले तो आधी बीमारियां तो वैसे भी ठीक हो सकती है। बहरहाल लॉकडाऊन से परेशानियां है, जो अपरिहार्य है लेकिन इसमें कुछ ज्ञानवर्धक तथा दिलचस्प अनुभव भी दिये हैं इस पर भी विचार करना ही होगा।
बीस साल लम्बा, आईसोलेशन…
कोरोना वायरस के कारण कई लोगों को आइसोलेशन में भेजे जाने की चर्चा आम है पर इतिहास गवाह है कि प्रेमजन्य लोगों की वजह से भी पहले आइसोलेशन में भेजा जाता था। प्रेम के कारण सबसे लंबे (20 साल) आइसोलेशन झेलने वाली थी मुगल सम्राट औरंगजेब की बड़ी बेटी जेबुन्निसा… lअपने चाचा दारा शिकोह से प्रभावित होकर जेबुन्निसा बचपन से ही फारसी और सूफी साहित्य अध्ययन में ध्यान लगाया था। किशोरावस्था में वह अपनी भावनाओं को गजलों और रुबाइयों में ढालने लगी थी। वह मख़्फ़ी नाम से अपना परिचय छिपाकर मुशायरों में शिरकत करने लगी और युवा शायर अकील खान से अपना दिल हार बैठी। जब औरंगजेब तक यह खबर पहुंची तो उन्होंने जेबुन्निसा को दिल्ली के सलीमगढ़ किले में कैद कर दिया. अविवाहित जैबुन्निसा ने 20 साल वहां गुजारे और शायरी, गजल ही उसका सहारा बनी अपने जीवन के अंतिम दौर में उसने ‘दीवान-ए-मख्फी’ भी लिखी थी जो 5000 गजलों, शायरी का संग्रह था lजिसकी पांडुलिपी पेरिस और लंदन की नेशनल लायब्रेरी में सुरक्षित है।
आइसोलेशन में लंबा समय गुजारने वाली जेबुन्निसा की एक रचना…
अरे ओर मख्फी
बहुत लंबे है अभी
तेरे निर्वासन के दिन
और शायद उतनी ही लंबी है
तेरी अधूरी ख्वाहिशों की फेहरिस्त
अभी कुछ और लंबा होगा
तुम्हारा इंतजार
इस पर तुम रास्ता देख रही हो
कि उम्र के किसी मोड़ पर
किसी दिन
लौट सकोगी अपने घर
लेकिन बदनसीब
घर कहां बचा है तुम्हारे पास
गुजरे हुए इतने सालों में
ढह चुकी होगी उसकी दीवारें…
और अब बस …
0 कोरोना वायरस के चलते राज्यपाल सुश्री अनसुइया उइके की सक्रियता भी चर्चा में है।
0 कोरोना मसले के चलते नक्सली गतिविधियां भी अपेक्षाकृत शांत सी है…
0 लॉकडाऊन के चलते शहर के कुछ लोग दूसरे शहरों में है क्या उनके वापसी की कोई व्यवस्था होगी…।
O अजीत जोगी ने पी ऍम नरेंद्र मोदी को सलाह दी हैँ कि कोरोना से निपटने बैंक, बीमा के अनक्लेम्ड फंड का उपयोग किया जा सकता है.
0 घर में ही रहे अफवाहों से बचें… घर में लगातार हाथ धोएं, दूर-दूर ही रहें…।