मिस्त्री परिवार के पास टाटा संस की 18.73 फीसदी हिस्सेदारी है। मिस्त्री ने इस मामले में कोर्ट में क्रॉस याचिका दायर की है। आम तौर पर क्रॉस अपील किसी एक फैसले के कुछ बिंदुओं के खिलाफ की जाती है।
25 जनवरी को एनसीएलएटी के आदेश पर लगाई गई थी रोक
25 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के 18 दिसंबर के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद पर बहाल कर दिया गया था। टाटा समूह द्वारा दायर याचिका पर यह स्थगनादेश जारी किया गया था।
याचिका में मिस्त्री ने कही ये बात
याचिका में मिस्त्री ने कहा कि टाटा के साथ समूह के संबंध ‘60 साल से ज्यादा पुराने अर्ध साझेदारी संबंध है, जिसमें उनकी टाटा संस की इक्विटी शेयर कैपिटल में 18.37 फीसदी हिस्सेदारी है और इसका फिलहाल बाजार मूल्य 1.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है।’ याचिका के मुताबिक, मिस्त्री कैम्प ने एनसीएलएटी के आदेश में मौजूद कई विसंगतियों को दूर करने की मांग की है, जिसमें अल्पांश शेयरधारकों के कथित उत्पीड़न के साथ ही टाटा संस को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में तब्दील किया जाना शामिल है। यह बदलाव 24 अक्तूबर, 2016 को मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद किया गया था।
टाटा संस ने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर उठाए कदम
14 फरवरी को दायर याचिका के मुताबिक, न्यायाधिकरण के आदेश में स्पष्ट रूप से ल्लेख किया गया कि टाटा संस ने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर कदम उठाए, लेकिन बहुलांश शेयरधारकों के उत्पीड़न संबंधी व्यवहार पर कोई राहत नहीं दी गई
एनसीएलएटी ने मिस्त्री को चेयरमैन पद पर बहाल करते हुए टाटा संस को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में तब्दील करने के कंपनी पंजीयक के कदम को अवैध ठहराया था। न्यायाधिकरण के आदेश के बाद मिस्त्री ने कहा था कि वह टाटा समूह में किसी कार्यकारी पद के लिए इच्छुक नहीं हैं, लेकिन वह कंपनी प्रशासन के नियमों की बहाली और टाटा में उनके परिवार के निवेश के लिए सुरक्षा चाहते हैं।