चन्द्रशेखर पटेल,कांकेर : छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कोरोना महामारी के विपत्ति में बिना आमराय के एकतरफा निर्णय लिये गये है जिसके तहत शहरी क्षेत्र के बेजा कब्जाधारीयों को साढ़े सात हजार स्क्वेयर फीट तक सरकारी/नजूल के जमीन एलाट कर उद्योगपतियों को ग्रामीण/शहरी/औद्योगिक क्षेत्र में दस एकड़ जमीन फ्री होल्ड करने का आदेश का छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना द्वारा विरोध दर्ज कराते हुए इस आदेश को वापस लिये जाने के लिए मुख्यमंत्री व राज्यपाल के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया।
इस ज्ञापन में उल्लेख है कि अधिकतर बाहरी लोग छत्तीसगढ़ के सरकारी/नजूल/जंगल, जमीन में अवैध कब्जा जमाए है, उन सभी को सजा के साथ सरकारी जमीन खाली कराने के बजाय सरकार उनको ईनाम देने जैसा अन्याय पूर्ण काम कर रही है । उद्योगपतियों को लीज में आबंटित जमीन अधिकतर किसानो के आय का साधन है,जबकि बहुत से बाहरी उद्योगपति उस जमीन का दुरुपयोग कर रहे है। ऐसे में बिना किसानों के सहमति के उद्योगपतियों को जमीन के रजिस्ट्री करके मालिकाना हक दे देना गैरकानूनी है। महत्वपूर्ण बात ये है कि छत्तीसगढ़ के अनेक जिला के असंख्य ब्लॉक संविधान के पांचवीं अनूसूची के अंतर्गत आते हैं.. जिसमे बिना ग्राम सभा के सहमति के ऐसे निर्णय नहीं लिया जा सकता। छत्तीसगढ़ के रत्नगर्भा धरती का ऐसा बंदरबांट निरंतर होता रहा तो छत्तीसगढ़ियों के आने वाली पीढ़ी भूख मरने में मजबूर हो जाएगी।
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना ने आग्रह किया है कि छत्तीसगढ़ सरकार इस बात को तत्काल संज्ञान में लेके ये दोनों अनीति पूर्ण फरमान को वापस ले। अन्यथा छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना छत्तीसगढ़ के जल जंगल जमीन का ऐसे बरबादी को रोकने के लिए सड़क की लड़ाई लड़ने बाध्य होगा।