। {किश्त 232 }
#चाँद की चांदी जैसी चमक के नीचे ही बार- नवापारा अभ्यारण्य जंगल की शांति में,कुछेक भूतिया प्रहरी खड़े है,इंडियन घोस्ट, स्टर्कुलिया यूरेन्स,भूत के पेड़ के रूप में जाना जाने वाला,इसकी पीली छाल रात की पृष्ठभूमि के ही खिलाफ चमकती है,अँधेरे जंगल में प्राकृतिक प्रकाश स्तम्भ की तरह….
छत्तीसगढ़ में 245 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला वन्य जीव अभयारण्य अपने हरे-भरे जंगल,आम तेंदुए की आबादी के लिए जाना जाता है।राज्य का दूसरा सबसे लोकप्रिय वन्यजीव अभयारण्य है,1976 में वन्यजीव संरक्षण अधिनि यम1972 केतहत स्थापित किया गया था।वनस्पति में ज्यादातर सागौन,साल और बांस शामिल हैं, यहाँ बाघ, सुस्त भालू, सियार, तेंदुए, चार सींग वाले मृग, काले हिरन,धारीदार लकड़बग्घा, चिंकारा, हिरण, साही, गौर और बाइसन जैसे विविध वन्यजीव पाए जाते हैं या पाए जाते थे।यहां का भू- दृश्य समतल और पहाड़ी भूभाग का मिश्रण है,छोटी -छोटी नदियों, झरनों का मनोरम दृश्य देखने मिलता है,लुढ़कती पहाड़ियों सेनीचे समतल भूमि में बहते जल निकायों का निर्माण करते हैं,बड़ी संख्या में पक्षी प्रजा तियों को आकर्षित करते हैं।हवा के साथ झूमते बांस के पौधे साल के ऊंचे वृक्ष, जंगल की आवाजें, कंकडों पर टप कता पानी, पृष्ठभूमि में कीड़ों टोडों और मेंढकों की टर्र-टर्र तथा एक-दूसरे को पुकारते मधुर पक्षी,यह वह अनुभव है जो आपको दिन के किसी भी समय इस जंगल में भ्रमण करने पर प्राप्त होगा। हमारे साथ गये गाइड ने ‘इंडियन घोस्ट’ के वृक्ष कीओर ध्यानआकर्षित किया ,जो चाँदनी रात में अपनी चमक से अलग ही दिखाई देते हैं।एक पौरा णिक पीली-और- चिकनी- चमड़ीवाली नर्तकी की तरह कई भुजाओं को फैलाये हुए,एक मुद्रा में जमे कुछेक पेड़ हैजो जंगल में पपड़ी दार,मस्सेदार और दरारदार छालों के खिलाफ खड़ा है।इसे एक बार देखने के बाद यह कभी नहीं भूला जा सकता है,नौसिखिए पेड़- खोजकर्ता के लिये तो भूतिया पेड़ स्टर्कुलिया यूरेन्स की छवि तो वर्षों तक स्मृति में जड़ जमाये रहती है।भूतिया पेड़, यूरेन्स की छाल पतली कागज़ जैसी परतों में छूटती है,दूर से देखने पर यह विस्मय, आश्चर्य से परे है,लेकिन करीब से देखने पर अपने जीवन को प्रकट करता है, कागज़ी परत, छाल अपनी त्वचा को उतारती है, पार दर्शी चर्मपत्र के टुकड़ों की तरह,जिसका रंग हल्के आड़ू से लेकर चमकीले तांबे तक होता है, जीवंत कैनवास की तरह छाल मौसम के साथ और जैसे पेड़ की उम्र बढ़ती है, जैसे रंग और बनावट बदलती है। केवल कागज़ी बाहरी परत ही नहीं है जो छिल जाती है,छाल के मोटे गुच्छे अलग आकार में टूट जाते हैं,जिससे उथले निशान बन जाते हैं, प्रकाश और छाया के खेल को जीवंत कर देते हैं जब सूर्य चट्टानी ढलानों, खड़ी चट्टानों के बीचसे गुज रता है जहाँ पेड़ की उथली जड़ें मज़बूती से जम जाती हैं। पेड़ 6महीने से ज़्यादा समय तक बिना पत्तों वाला रहता है।अक्टूबर में पत्तियाँ गिरना शुरू होजाती हैं,दिसं बर तक ज़्यादातर पेड़ पूरी तरह से नंगे हो जाते हैं। नए पत्ते मई के अंत या जून की शुरुआत में दिखाई देते हैं।सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में घर जैसा,6 महीने से ज़्यादा समय तक बिना पत्तों के रहने के कारण आंशिक रूप से सूखे का सामना करने के लिए विकसित हुआ है। इसके बड़े,ताड़ के आकार के पत्ते,जो आधार पर गहरे दिल के आकार के होते हैं और कई लोबों के सिरे पर पतले होते हैं,अक्टू बर के आसपास पीले पड़ने और गिरने लगते हैं।नए पत्ते मई के अंत या जून की शुरु आत में दिखाई देते हैं। तब तक,नंगेवैभव का ही समय होता है। दिसंबर- मार्च तक छोटे कंटीले,घंटी के आकार के कैलीक्स के समूह पाँच पंखुड़ी जैसे लोबों में खुलते हैं जो सेब के हरे, तारे के आकार के फूल बनाते हैं। बीच में, एक लाल ‘बुल्स आई’ है जो मधुमक्खियों को अमृत तक ले जाती है। तुरंत बाद फल दिखाई देते हैं,5जोड़ी सिकुड़े हुये मख मली होंठ,जो चमकीले मैरून रंग के होते हैं,पकने पर लाल रंग के उदार रंग के साथ खाकी हरे रंग में बदल जाते हैं। मखमली सतह बहुत रसीली होती है और छूने पर हाथ को आकर्षित करती है,लेकिन डंक मारती है। डंक मारनेवाले,बालों से विचलित हुए बिना,बंदर भी पके फल के खुलते हीबीजों को खा जाते हैं। हॉर्नबिल भी फल खाते हैं, बीजों को मूल वृक्षों से दूर फैला देते हैं, पौधे सूर्य की रोशनी में अपने लिये चट्टानी स्थान ढूंढ लेते हैं।