


{किश्त 229}
सिंघनगढ़ का किला आज भी अनसुलझे रहस्य बन कर रह गया है,कई लोग इसे भूतिया जगह बताते हैं तो कई इसे राजा महाराजा का किला मानते हैं।बारनया पारा के मुख्य रास्ते से लग भग 4 किमी अंदर जंगल की ओर चढ़ाई पर सिंघन गढ़ का प्राचीन किला स्थित है।सिंघनगढ़ के इस प्राचीन किला तक पहुंचना आसान नहीं है कहा जाता है, यहां सिंधना धुर्वा नाम का एक गोड़ राजा था जिसका यह किला हुआ करता था जहां तक पहुंचाने के लिए पैदल कई किलोमीटर पहाड़ में चढ़ाई करनी पड़ती हैआज भी पुराने इतिहास का वजूद मौजूद है, सिंघनगढ़ किले के पास कई स्थानों पर नालियों में पत्थरों के बजाय ईंटों का इस्तेमाल किया गया है। किले की ही कुछ ईंटों की लंबाई लगभग पौन फीट की मिली है ,यह ईंट पूरी तरह से पकाई गई दिखाई देती है, इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि उस समय के लोग भी ईंटों का इस्तेमाल करते थे और ईंट को पकाने कीजान कारी भी उनके पास थी। किले की बड़ी विशेषता है कि इसका निर्माण अभ्या रण के ऐसे स्थान पर किया गया है जहां से अभ्यारण साफ-साफ दिखाई देता है।किले में पहुंचते ही लगभग 17-18 फीट ऊंचा प्रवेश द्वार किले की भव्यता को स्पष्ट दर्शाता है।ठोस पत्थरों को बिना जोड़ाई, एक के ऊपर दूसरे को जमा कर बनाए प्रवेश द्वार में बारीक नक्काशी दिखाई देती है, ऊपर पहुंचाने के बाद लग भग ढाई फीट की छोटे पत्थरों से नक्काशी की गई है,प्राकृतिक मूर्ति भी मौजूद है। कहा जाता है कि यहां के राजा इनकी पूजा किया करते थे,पुरातत्व विभाग आज तक मूर्ति का रहस्य सुलझा नहीं पाया है। वहीं यहां पर साल में एक बार मेला भी लगता है। आस पास के ग्रामीण पहुंचते है।सिंघन गढ़ किले के आस पास ही स्थित वनग्रामों के लोग किले की बात पुरखों से सुनी होने की बात करते हैं। वे बताते हैं- यह किला सिंधना धुर्वा राजा ने बनाया था।सिंधना धुर्वा एक गोड़ राजा था जो प्रजा के बीच बेहद लोकप्रिय था। सिंधना धुर्वा बेहद ही अनुशासित, न्यायिक राजा थे, प्रजा भी उनको बहुत सम्मान,प्यार देती थी, सिंधनगढ़ किले के बारे में हैरत की बात यह है कि सालों पुराने इस किले के बारे में पहले वन विभाग से लेकर पर्यटन विभाग को भी जानकारी नहीं थी….! सिंघनगढ़ के इस किले तक गिनेचुने लोग पहुंच पाए हैं।बलौदाबाजार जिले के घने जंगल,पहाड़ी में ही स्थित सिंघनगढ़ किला, बलौदा बाजार से महज 45/50 किमी की दूरी पर गहन घने जंगल और पहाड़ी में स्थित है,जहां कई रहस्य छुपे हैँ।घने जंगल के बीच किले में जाना अत्याधिक कठिन है यहां जाने मुख्य मार्ग में जंगल के भीतर 4 किमी की पैदल चढ़ाई चढ़नी पड़ती है, यहां जाने के लिए तीन जगहोँ से मार्ग है । बलोदा बाजार से पलारी रोहासी और राई बोरिद होते जिसकी दूरी 45 से 50 किमी पड़ेगी,दूसरा लवन-अमेठी होते जो 40 किमी दूर होगा, तीसरा मार्ग कसडोल से सिरपुर-बरबस पुर होते जाया जा सकता है जिसकी दूरी 35-40 किमी है।