{किश्त 218}
(4 नवम्बर जन्मदिन पर)
छत्तीसगढ़ के राज्यगीत ‘अरपा पैरी के धार’ के रच यिता डॉ नरेंद्रदेव वर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं…
अरपा पैरी के धार,
महानदी है अपार
इंदरावती हा पखारे तोर पइयां
जय जय हो, छत्तीसगढ़ मइयां
इस गीत के रचयिता डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने छत्तीसगढ़ की वंदना के कई गीत और भी लिखे थे।पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने इस गीत को ‘राज्यगीत’ घोषित करदिया है। डॉ.वर्मा 4 नवंबर 19 39 को जन्म ले केवल 40 साल की उम्र में 8 सितंबर 1979 को दुनिया छोड़चले गये। छत्तीसगढ़ी भाषा की अस्मिता की पहचान बनाने वाले गंभीर कवि, कुशल वक्ता,गंभीर प्राध्यापक, भाषाविद तथा संगीत मर्मज्ञ भी थे। अपने बड़े भाई स्वामी आत्मानंद का प्रभाव इनके जीवन में अधिकपड़ा था।स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यशस्वी शिक्षक धनीराम वर्मा के 5 पुत्र थे। इनमें डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा ही एक मात्र विवाहित,गृहस्थ थे। आत्मा नंद सहित 3 पुत्र तो राम कृष्ण मिशन में समर्पित सन्यासी बन गये,एक पुत्र भी अविवाहित रह कर पं. रविशंकर विश्व विद्यालय में अध्यापन करने लगे। डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा उपन्यासकार कवि,नाटककार,कथाकार, समीक्षक,भाषाविद की भूमिका का निर्वहन जीवन पर्यंत करते रहे। उनका उपन्यास ‘सुबह की तलाश’ धारावाहिक, साप्ताहिक हिन्दुस्तान में करीब 30 साल पहले प्रकाशित हुआ था इसके अलावा अपूर्वा काव्य संकलन प्रकाशित हुआ,कुछ पुस्तकों का भी हिन्दी में अनुवाद किया, जिसमें मोंगरा,श्री मां की वाणी,श्रीकृष्ण की वाणी, श्रीराम की वाणी, बुद्ध की वाणी,ईसामसीह की वाणी मोहम्मद पैगम्बर की वाणी प्रमुख हैं।छग की महिमा कविता में तो उन्होंने छत्ती सगढ़ का समूचा भौगोलिक परिदृश्य ही प्रस्तुत करदिया था।इन्होंने छत्तीसगढ़ीभाषा व साहित्य का उद्विकास में रविशंकर विश्वविद्यालय से पीएचडी भी की, छत्तीस गढ़ी भाषा, साहित्य मेंकाल क्रमानुसार विकास का भी कार्य किया। इनका छत्तीस गढ़ी गीत संग्रह ‘अपूर्वा’ है। इसके अलावा सुबह की तलाश(हिन्दी उपन्यास) छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्वि कास, हिन्दी स्वछंदवाद प्रयोगवादी,नयी कविता सिद्धांत एवं सृजन, हिन्दी नवस्वछंदवाद आदि प्रका शित ग्रंथ हैं। इनका ‘मोला गुरु बनई लेते’ छत्तीसगढ़ी प्रहसन अत्यन्त लोकप्रिय हुआ।डॉ. नरेन्द्र के जीवन का दूसरा पक्ष लोककला से इस तरह जुड़ा था…छत्ती सगढ़ी लोक संस्कृति के यशस्वी,अमर प्रस्तोता, स्व महासिंह चंद्राकर के रात भर चलने वाले लोक नाट्य ‘सोनहा बिहान’ के प्रभाव शाली उद्घोषक हुआ करते थे। उनका स्वर, श्रोताओं, दर्शकों को अपने सम्मोहन में बांध लेता था।जब वह स्वर अकस्मात् बंद हुआ तो,उनकी पंक्ति आकाश व धरती पर मानों गूँजने लगी….
‘ न जमो हर लेवना के उफान रे टलन जाही।
दुनिया अठवारी बजार रे, उसल जाही॥’
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा छत्ती सगढ़ी भाषा की अस्मिता के प्रतीक थे। उन्होंने छत्ती सगढ़ी भाषा एवं व्याकरण का ग्रंथ लिखा-छत्तीसगढ़ी का उद्विकास। अनेक छत्ती सगढ़ी कहानियाँ,कथा कथ न शैली में प्रकाशित हई।(सन्1962 से 65 के बीच) हिन्दी में सुबह की तलाश, उपन्यास ‘अपूर्वा’ काव्य संकलन प्रकाशित हुआ।डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने यद्यपि गृहस्थ जीवन भी व्यतीत किया, पर उनके अंतस में विवेकानंद भावधारा, राम कृष्ण मिशन का भी गहन प्रभाव था, यही कारण है कि दर्शन की गहराइयों में डूबकर काव्य -सृजन किया करते थे।छत्ती सगढ़ महिमा कविता में तो छत्तीसगढ़का समूचा भौगो लिक परिदृश्य आँखों में झूलने लगता है…
‘ सतपूड़ा सेंदूर लगावय।
दंडकारन,महउर रचावय॥
मेकर डोंगर करधन सोहय।
सुर मुनि जन सबके मन मोहय॥
रामगिरि के सुपार पहड़िया।
कालिदास के हावय कुटिया॥
लहुकत लगत असाढ़ बिजुरिया।
बादर छावय घंडरा करिया।
परदेशी ला सुधे देवावय।
घर कोती मन ला चुचुवावय॥
भेजय बादर करा संदेसा।
झन कर बपुरी अबड़ कलेसा॥
बारा महिना जमे पहाड़ी।
नवा असाढ़ लहुट के आही।
मेघदूत के धाम हे, इही रमाएन गांव।
अइसन पबरित भूम के, छत्तीसगढ़ हे नांव॥’
उक्त लंबी कविता में महा नदी, इन्द्रावती, पैरी, शिव नाथ, हसदो, अरपा , जोंक नदियों के साथ सिहावा पर्वत,बस्तर के मुड़िया- माड़िया इन सबका मोहक का विस्तृत वर्णन भी है। उनके ह्रदय में छत्तीसगढ़ के प्रति अपार प्रेम का सागर लहराता था । शब्दों की उताल तंरगे उठती थी। मातृभूमि के प्रति प्रेम की लहर फिर दर्शन की गुफा में लौटने लगती और वे अंदर से दार्शनिक की तरह गंभीर स्वर में फिर गाने लगते….
मानों फकीर बंजारा धरती पर, खुले आकाश में घूम रहा हो….।
{पूर्व सीएम भूपेश बघेल डॉ नरेंद्र देव वर्मा के दामाद हैं}