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200 किश्तेँ पूरी…..
*”अतीत से अब तक” किश्त ज़ब शुरू किया था तब उम्मीद नहीं थी कि अपने छत्तीसगढ़ के विषय में इतनी लम्बी श्रंखला हो जाएगी, आज 200 किश्तेँ पूरी हो गई है…अब आगे कुछ और लिखना है या नहीं, आप अपनी राय जरूर देंगे…?*
____________________ {किश्त 200}
परंपराओं के लिये चर्चित बस्तर के कोण्डागांव जिले के फरसगांव के आलोर पंचायत की पहाड़ी में एक ऐसी गुफा है जो साल में एक बार एक दिन केवल 12 घंटे ही खुलती है। यहीं है लिंगेश्वरी माता का मंदिर, मान्यता है कि यहां दर्शन करनेवालों की सूनी गोद भरती है….!दर्शन के लिये गुफा के छोटे से दरवाजे से झुककर जाना होता है।इस गुफा का द्वार दर्शन के बाद पत्थरों से ही बंद कर दिया जाता है।जिसे विधिविधान से फिर अगले साल खोला जाता है। निश्चित तिथि पर ही गुफा का द्वार खोलने से पहले 3 जगह पूजा होती है। लोगों का मानना है कि माता पहले पेड़ पर आई, उसके बाद गुफा के ठीक पीछे एक पत्थर पर, उसके बाद गुफा में प्रवेश किया। जब गुफा का द्वार खुलता है, तो पहले 5 पुजारी पूजा करते हैं। मान्यता है लिंगे श्वरी माता के आशीर्वाद से लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है। यहां प्रसाद के रूप में सिर्फ एक ककड़ी (खीरा),नारियल और घर से लाए मुट्ठी भर चावल से ही पूजा की जाती है। संतान की कामना लेकर दंपतियों को यहां खीरा (ककड़ी) चढ़ाना जरूरी होता है।इसी खीरे को पुजारी पूजा के बाद दंपति को वापस करते हैं।इसके बाद दंपति इसे नाखून से फाड़कर कड़ुए भाग के साथ खाते हैं। माँ लिंगेश्वरी की गुफा का द्वार खुलते ही क्षेत्र का भविष्य तय होता है। जानकारों के अनुसार गुफा खोलते ही दरवाजे पर जो पगचिन्ह मिलता है उससे बस्तर ही नहीं देश में भविष्य में होने वाली हलचल का अनुमान लगाया जाता है।गुफा के अंदर बीचों-बीच पत्थर की लिंग की आकृति है,ऊंचाई डेढ़ से 2 फीट है। लिंगई माँ के दर्शन के लिए भी कड़े नियम हैं। मन्नत लेकर आने वालों को नंगे पांच पथरीले कंकड़ भरे रास्ते से जाना होता है। वापसी के लिये सीढ़ी है।छत्तीसगढ़ केजिस जगह माँ लिंगेश्वरी स्थापित है,वो धूर नक्सली इलाका है। सुरक्षा के कारण इस मंदिर के आसपास कम लोग ही जाते हैँ,जाना भी मना है। यह क्षेत्र हरे-भरे जंगलों के बीच है, अलोर नाम का एक छोटा गांव भी बसा हुआ है। इस अनोखे मंदिर के बारे में लोगों का कहना है कि मंदिर साल यानि 365 दिनों में केवल 12 घंटे के लिये ही खुलता है।