विकास का नया प्रतिमान गढ़ेगा एक राष्ट्र एक चुनाव

विकास का नया प्रतिमान गढ़ेगा एक राष्ट्र एक चुनाव

चुनाव से होने वाले आर्थिक बोझ से मिलेगी मुक्ति

सरकारों के लिए चुनाव मोड की जगह विकास मोड पर मॉडल होगा सेट

-प्रियंका कौशल

( संपादक, भारत एक्सप्रेस cg ) 

केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने 18 सितंबर 2024 को एक राष्ट्र एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। पूर्व राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली समिति ने एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने की बात कही गई है। इसमें आगे यह सुझाव दिया गया है कि लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ पूरा होने के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव भी कराए जाएं। समिति ने कहा है कि पूरे देश में मतदाताओं के लिए एक ही मतदाता सूची होनी चाहिए। सभी के लिए एक जैसा वोटर कार्ड होना चाहिए। इससे अब देश की कुल 543 लोकसभा सीट और सभी राज्‍यों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव कराने की दिशा को गति मिल सकेगी।

भले ही विपक्ष ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को लेकर नकारात्मक वातावरण बनाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन इसके सकारात्मक पक्ष की सूची बहुत लंबी है। देश का संविधान भी इसकी अनुमति देता है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 14 और 15 को लागू करके केंद्र और राज्यों के चुनाव उनके कार्यकाल समाप्त होने से छह महीने पहले हो सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक राष्ट्र एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद मंत्रिपरिषद की बैठक में कहा कि यह लोगों की लंबे समय से लंबित मांग रही है और हम इसे लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए लाए हैं। इसका कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के लोगों को इसके बारे में शिक्षित करना होगा। हमने केवल उसी का सम्मान किया है जो देश के लोग बहुत लंबे समय से चाहते रहे हैं। लगातार चुनाव, शासन और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून व्यवस्था पीछे रह जाती है और यह किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं है।

इसके बाद एक बार फिर एक राष्ट्र एक चुनाव पर बहस तीव्र हो गयी है। लेकिन इस सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण है जनमानस। जनता सरल शब्दों में इस विषय को समझे, यह भी आवश्यक है। इसके क्या लाभ हैं, यह जानें। हालांकि देश की जनता पहले ही बता चुकी है कि वह इस विचार के साथ है।

इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि कानून मंत्रालय ने 22 जनवरी 2024 को एक बयान में कहा था कि “एक राष्ट्र एक चुनाव” पर पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की नेतृत्व वाली उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) को नागरिकों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं में 81% ने एक साथ चुनाव के विचार समर्थन दिया है।

कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल विरोध का माहौल ऐसे बना रहे हैं कि जैसे कोई ये रातों-रात हो जाने वाली बात है। वे जनता को दिग्भ्रमित करते समय ये तथ्य छुपा लेते हैं कि एक साथ चुनाव कराने संबंधी उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद ने प्रतिष्ठित न्यायविदों, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, फिक्की, एसोचैम और सीआईआई के प्रमुखों के साथ लगातार परामर्श किया है।

विपक्ष का तो काम ही है, सरकार के हर निर्णय का विरोध करना। चाहे उस निर्णय से देश का कितना बड़ा लाभ ही क्यों न हो रहा है, विपक्ष को केवल अपना हित साधना है, देश हित को ताक पर रखकर केवल राजनीतिक रोटियां सेंकनी हैं।

देश मे एक साथ चुनाव कराने का एक बड़ा कारण अलग-अलग चुनावों में होने वाले खर्च को कम करना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इस राशि में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों द्वारा किया गया खर्च और चुनाव कराने के लिए भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा किया गया खर्च शामिल है। एक अनुमान के अनुसार, लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों में अकेले भारत के चुनाव आयोग को 4,500 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आता है। यह उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा घोषित और अघोषित चुनाव खर्च के अलावा है।

इसके साथ ही एक साथ चुनाव कराने से पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता बढ़ेगी, क्योंकि इससे मतदान के दौरान काफी धीमी गति से काम होता है। प्रशासनिक अधिकारियों के मतदान संबंधी कामों में शामिल होने के कारण सामान्य प्रशासनिक कर्तव्य भी चुनावों से प्रभावित होते हैं। विकास की गति धीमी हो जाती है।

देश के विकास के लिए एक राष्ट्र एक चुनाव कानून व्यवस्था को सुचारू रखने के लिए भी आवश्यक है क्योंकि चुनाव के समय स्थानीय पुलिस और केंद्रीय व अर्ध सैनिक बलों का डिप्लॉयमेंट भी बढ़ जाता है। एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक और सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा, जिन्हें अन्यथा कई बार चुनाव ड्यूटी में लगाया जाता है।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का प्राथमिक लाभ यह है कि चुनाव कराने की लागत में कमी आएगी क्योंकि प्रत्येक अलग चुनाव के लिए भारी मात्रा में वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के क्रियान्वयन से सरकार को विकास कार्यों को करने का समय मिलेगा, सरकारें पूरे समय चुनावी मोड में रहने के बजाय शासन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगी, जिससे अक्सर नीति क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है।

विधि आयोग के अनुसार एक साथ चुनाव कराने से मतदान प्रतिशत बढ़ेगा, क्योंकि लोगों के लिए एक साथ कई मत डालना आसान हो जाएगा।

सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह कि स्वाधीनता के तुरंत बाद यह प्रथा थी। जब देश में 1951-52 से 1967 तक एक साथ चुनाव हुए थे। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकारों के तानाशाही व्यवहार के कारण बाद में राज्य विधानसभाओं और कई बार लोकसभा के समय से पहले भंग होने के कारण इसे बंद कर दिया गया।

विश्व के अन्य देशों में भी एक राष्ट्र एक चुनाव के कई उदाहरण हैं। दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन में भी इसी तरह की चुनावी व्यवस्था है और यूनाइटेड किंगडम में संसद का कार्यकाल निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 द्वारा निर्धारित किया जाता है। दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानमंडल चुनाव एक साथ पांच साल के लिए आयोजित किए जाते हैं। स्वीडन में राष्ट्रीय विधानमंडल ‘रिक्सडाग’, प्रांतीय विधानमंडल/काउंटी परिषद ‘लैंडस्टिंग’ और स्थानीय निकाय/नगरपालिका विधानसभाओं ‘कोमुनफुलमक्तिगे’ के लिए चुनाव कराने की एक निश्चित तिथि है। इनका एक सामान्य कार्यकाल चार साल का होता है।

भारत में कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा अपनी 79वीं रिपोर्ट में कुछ वैश्विक प्रथाओं की पहले भी जांच की जा चुकी है।

यह भी जानना जरूरी है कि पूर्व राष्ट्रपति की नेतृत्व वाली समिति ने एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर देश की 62 राजनीतिक पार्टियां से संपर्क किया था, जिसमें से उन्हें 32 पार्टियों का समर्थन मिला था। इसमें 15 पार्टियों ने समर्थन नहीं किया तो वहीं 15 पार्टियों ने कोई उत्तर नहीं दिया। इसका मतलब ये 15 दल प्रथम दृष्टया इस विचार का विरोध नहीं करते।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट के फैसलों की ब्रीफिंग करते हुए कहा है कि देश में 1951 से 1967 तक एक साथ चुनाव होते थे। उन्होंने कहा, समाज के सभी वर्गों से सलाह मांगी गई। अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने की कोशिश करेंगे। समिति ने 191 दिन इस विषय पर काम किया।

कुल मिलाकर एक राष्ट्र एक चुनाव से देश के विकास को गति तो मिलेगी ही, बार बार चुनाव से होने वाले आर्थिक बोझ से भी मुक्ति मिलेगी। सरकारें व राजनीतिक दल चुनाव मोड से बाहर निकलेंगे और उन्हें देश के वर्तमान व भविष्य पर चिंतन मनन करने का भी समय मिलेगा। साभार..

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