{किश्त 156}
छत्तीसगढ़ की नदियों की उत्पत्तियों के पीछे भी प्रेम कहानियां हैं। बड़ी-छोटी ऐसी कुछ नदियां हैं जिनके जन्म के पीछे प्यार, विरह, वेदना की कहानियां हैं। नदियों की प्रेम कहानियों पर दँत कथाओं पर एक नजर……देश की पवित्र नदियों में से एक नर्मदा का उदगम छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे अमरकंटक से है। इसका बहाव छग की ओर आते-आते एक दम मुड़ जाता है। प्राचीन समय से चली आ रही कहानी और जनश्रृति के मुताबिक यह नर्मदा का नाराज होकर मुंह फेर लेना है। नाराजगीवाली बात भी वास्तविकता से करीब लगती है क्योंकि नर्मदा देश की बिरली नदी है,जिसका बहाव पश्चिम की ओर है।अमूमन नदियों का बहाव पूर्व दिशा की ओर है। नर्मदा की इस नारा जगी के पीछे है,प्यार में मिला धोखा और छल माना जाता है …! अपनी दासी जोहिला और होने वालेपति सोन से……? जोहिला भी उसकी सहायक नदी है और सोन, छग के पेंड्रा के पास से ही निकलने वाला नद ( तीन नद माने गए हैं, ब्रह्मपुत्र, सोन और सिंधु )। प्रचलित कहानी के मुता बिक नर्मदा का विवाह सोन (इसे नर्मदा पुराण में शोण भद्र भी कहा गया है ) से होने वाला था,लेकिन उसके साथ छल हुआ और वह उल्टी दिशा में बहने लगी।
नर्मदा की अधूरी
प्रेम कहानी….!
नर्मदा पुराण के मुताबिक रेवा (नर्मदा), राजा मैकल की पुत्री थीं। मैकल ने घोषणा की थी कि जो भी बकावली के दुर्लभ फूल लाएगा वो उसका विवाह रेवा से कर देंगे। राजकुमार शोणभद्र (सोन) के रूप पर वह पहले ही मुग्ध थी।उसने उसे फूल लाने कहा। राजा मैकल ने रेवा के विवाह मंडप भी बनवा दिया था । आज भी मड़वा महल के नाम पर यहां दिखाई देता है। राजकुमार शोणभद्र फूल भी लेकर आ गया, लेकिन मैकल तक नहीं पहुंचा। इससे रेवा को चिंता हुई और उसने अपनी दासी और सहेली जोहिला को सोन के पास भेजा…..। जोहिला के रूप पर सोन मुग्ध हो गया। जोहिला भी राजकुमार से आकर्षित हो गई। जब काफी देर हो गई तो रेवा,राजकुमार के महल पहुंची वहां उसने जोहिला- सोन का प्रेमालाप देखा और बेहद नाराज होकर चिरकुंवारी रहने का व्रत ले लिया। मान्यता है कि इस घटना के बाद नर का मर्दन मतलब अपमान करने के कारण रेवा का नाम नर्मदा पड़ा। इसके बाद वह उल्टी दिशा में चल पड़ी। उसके गुस्से के कारण सोन वहां से लुप्त हो गया। आज भी सोन अपने उद्गम के बाद सीधे सोनमुड़ा में दिखता है..? और फिर नर्मदा की दिशा से ठीक उल्टा पूर्व की ओर बहने लगता हैजोहिला कुछ दूरी के बाद सोन में मिल जाती है।
शिव और पारू के आंसुओं
से बनी शिवनाथ….!
छत्तीसगढ़ की बड़ी नदियों में से एक है शिवनाथ….। इसका उद्गम महाराष्ट्र बार्डर के गढ़चिरौली से है, लेकिन इसका बहाव सिर्फ छग में है। इसकी भी दो लोक कथाएं हैं। दोनों का कथा नक एक है, लेकिन युवती का नाम अलग-अलग है। कथा के मुताबिक छग का आदिवासी युवक महादेव का अनन्य भक्त था। उसे सभी शिव ही बुलाते थे। इसी शिव से गांव के बड़े किसान की बेटी पारू प्यार करती थी।उस समय विवाह के लिए कन्या के परिवार को भरपूर राशन, कपड़े, उपहार देना होता था, शिव बेहद गरीब था। उसके लिए ऐसा संभव नहीं था। शिव को पारू का पिता भी पसंद करता था, उस समय के प्रचलित लमसेना रिवाज के अनुरूप शिव को अपने घर सेवा करने रख लिया। इस प्रथा के अनुसार ससुराल वाले युवक की सेवा- काम काज से खुश हो जाते तो उसे ‘घरजमाई’ बनाकर रख सकते थे।शिव,मन लगाकर काम कर रहा था,लेकिन पारू के भाइयों को एक गरीब आदिवासी से बहन की शादी स्वीकार नहीं थी। उन्होंने एक रात खेत की मेढ टूटने का बहाना बनाया और शिव से कहा कि वह जाकर मेढ बना दे। जैसे ही शिव खेत पर पहुंचा। पारू के भाइयों ने उसकी हत्या कर दी और शव दफना दिया। सुबह तक जब शिव नहीं लौटा तो पारू ढूंढते हुए खेत पहुंची। जमीन से शिव की एक ऊंगली निकली हुई थी। यह देख पारू ने पागलों की तरह मिट्टी हटाई। अंदर शिव की लाश थी और उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।यह देख पारू भी उस पर गिर पड़ी, रोते-रोते अपने प्राण त्याग दिए। वहीं,उसी गड्ढे से शिव नाथ का उद्गम हुआ। एक अन्य लोककथा में युवती का नाम फूलवाशन बताया गया है, लेकिन कहानी यही है।
लीलावती-आगरसिंह के
बलिदान से बनी लीलागर!
कोरबा जिले के कटघोरा से निकली नदी लीलागर,जांज गीर-चांपा और बिलासपुर जिले को विभाजित करती है। आगे चल यह शिवनाथ नदी में मिल जाती है। इस नदी को लेकर लोककथा है,वह शिवनाथ से ही मिलती-जुलती है। इसके मुताबिक कटघोरा क्षेत्र में एक गांव है बांधाखार। 200 साल पहले यहां एक जमींदार रहता था। मौहार सिंह, उसके 7 बेटे और 1 बेटी थी लीलावती।एक दिन गांव में एक जवान आगर सिंह आया। वह काम की तलाश में था। वह जमींदार के पास भी पहुंचा। मौहार सिंह ने उसे काम पर रख लिया।आगरसिंह की लगन, मेहनत और रूप देखकर लीलावती को उससे प्यार हो गया।उसने अपने पिता से आगरसिंह से शादी करने की इच्छा जताई। मौहार सिंह बेटी की खुशी के लिए राजी हो गया, लेकिन बेटे नहीं मानें…। बेटों ने आगर सिंह की हत्या की योजना बनाई। गांव के बाहर तालाब पर एक कच्चा बांध था।बारिश की रात लीला वती के भाई ने कहा कि बांध फूट गया है,आगर देख आओ। आगरसिंह बांध के पास गया वहां पहले से दूसरे भाई छिपे हुए थे। उसे वहीं गड्ढे में फेंक दिया।दूसरे दिन जब देर तक आगर नहीं लौटा तो लीलावती, अपने पिता के साथ बांध की ओर आई। वहां आगर की लाश देख वह उस पर गिर पड़ी उसने जलदेवता का आव्हान किया और कहा कि यदि उसका प्रेम सच्चा है तो उसे आगर के साथ प्रवाहित कर दे।इसके बाद उस गड्ढे से बड़ी धार निकली और दोनों सबके सामने बहते हुए दूर चले गए। तब से लीलावती और आगर सिंह के इस अटूट प्रेम से बनी नदी का नाम ‘लीलागर’ पड़ गया।