उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में पढ़ाने के बजाए नमाज और इस्लाम के फायदे गिना रहा था फार्मेसी का प्रोफेसर
ये सब जानते हैं कि भारत के ह्दय स्थल मध्यप्रदेश में बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन सनातन धर्म की आस्था व श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र है। ये महाराजा विक्रमादित्य का भी नगर है। उन्ही के नाम से यहां विक्रम विश्वविद्यालय भी स्थापित है। भले ही उज्जैन बहुसंख्यक हिंदुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन यहां निवास करने वाले मुसलमानों पर सनातन धर्म का पालन करने वालों ने कभी उंगली तक नहीं उठाई। आज वही उज्जैन अनीस शेख के कारण चर्चा में है। शिक्षा के स्थान को धर्मांतरण के दुरुपयोग के लिए चर्चा में है। विक्रम विश्वविद्यालय में चल रहे कैम्पस जिहाद के लिए चर्चा में है।
उज्जैन की घटना ने ये बता दिया है कि इस लोकतांत्रिक देश में शैक्षणिक संस्थान भी जेहादियों से सुरक्षित नहीं हैं। पहले लव जिहाद, फिर वोट जिहाद और अब कैम्पस जिहाद ने विद्यार्थियों के अभिभावकों की नींद उड़ा दी है।
मामला विक्रम विश्वविद्यालय में फार्मेसी विभाग का है, जहां फार्मेसी का प्रोफेसर अनीस शेख छात्रों को न केवल इस्लाम और नमाज के फायदे गिना रहा था, बल्कि उनपर इस्लाम ग्रहण करने का दवाब भी बना रहा था। विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने शिकायत की है प्रो अनीस शेख उसकी बात न मानने वाले हिन्दू विद्यार्थियों को कम नम्बर देकर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित भी कर रहा था। वह छात्रों को एटीकेटी देकर अब पास होकर दिखाओ जैसी चुनौती दे रहा था।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो अनीस शेख ने एक वाट्सएप ग्रुप बनाया हुआ था। जिसमें वह छात्रों को इस्लाम कबूल करने के लिए दबाव बना रहा था। कुलपति अखिलेश कुमार पांडेय ने मीडिया को बताया है कि अनीस शेख की तीन साल से शिकायत हो रही थी, कई बार उसे समझाया गया है। जब छात्र आंदोलन पर उतर आए, तब जाकर विश्वविद्यालय प्रशासन ने मामले में संज्ञान लिया और गेस्ट फेकल्टी अनीस शेख को 15 दिन के लिए हटाकर मामले की जांच करने का निर्णय लिया।
अब इस मामले को बारीकी से समझने की जरूरत है। जिस देश में धर्म निरपेक्षता के नाम पर वन्देमातरम गाने का भी विरोध होता रहा है। गीता और रामायण जैसे महाग्रन्थों में मिलने वाली जीवन शिक्षा को स्कूल/कॉलेजों के सिलेबस में शामिल होने से रोका जाता रहा हो। उसी देश में अनीस शेख जैसे तथाकथित पढ़े लिखे मुसलमान धर्म के नाम पर विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को परेशान करते हैं।
जो यह कहते हैं कि पढ़े लिखे मुसलमान जाहिल नहीं होते, ये उनके लिए एक उदाहरण है कि गजवा ए हिन्द का सपना हर मुसलमान देखता है। जिसे/जब/जहां मौका मिलता है, वो अपने मिशन में लगकर जन्नत की हूरों के इंतजाम में लग जाता है।
ये इस देश की विडंबना ही है एक तरफ तो हम धर्म निरपेक्ष हैं, दूसरी तरफ मुसलमानों को कई सहूलियतें थाली में सजा कर दी गईं हैं। मुस्लिम पर्सलन लॉ से शुरू होकर हज सब्सिडी तक, वक़्फ़ बोर्ड से लेकर शहर की सड़कों पर/सार्वजनिक स्थलों को छेंककर नमाज पढ़ने तक, कई सारे विशेषाधिकार इन्हें घोषित/अघोषित रूप से दिए गए हैं।
भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश है। इस देश के संविधान में शिक्षण संस्थान, अस्पताल, न्यायालय, खेल, सेना, सरकारी-गैरसरकारी नौकरियों को किसी के भी धर्म और किसी के भी मज़हब से परे रखा गया है। लेकिन अनीस शेख जैसे किरदारों के मदरसों से मन नहीं भरते। ये पढ़ लिखकर योजनाबद्ध तरीके से विक्रम विश्वविद्यालय जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों में पहुंचकर कैम्पस जिहाद चलाते हैं। अनीस शेख ने पिछले वर्षों में कई हिन्दू छात्रों का करियर केवल इसलिए बर्बाद कर दिया होगा क्योंकि वह उनकी मर्जी के मुताबिक इस्लाम स्वीकार नहीं कर रहे थे।
अनीस शेख तो हांडी का एक चावल भर है। पूरी की पूरी हांडी ही ऐसी है। इसका एक-एक दाना अनीस शेख ही है, बस किसी का नाम हामिद है तो कोई सुलेमान। मदरसों का जिक्र इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसी मध्यप्रदेश से एक बड़ी खबर पिछले दिनों निकलकर आयी है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष ने मदरसों में हिंदू बच्चों को इस्लामी तालीम के पीछे मतांतरण की आशंका जताई है। आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने मुख्य सचिव से पूछा था कि मध्य प्रदेश के 1505 मदरसों में 9427 हिंदू बच्चे कैसे पहुंचे? इस बारे में मुख्य सचिव को सरकार की ओर से जवाब दाखिल करना है।
अनीस शेख के मामले के ठीक पहले भी उज्जैन का माहौल कई बार खराब करने की कोशिश होती रही है। इसी साल की 11 अप्रैल को उज्जैन में ईद की नमाज के बाद कुछ लोगों ने इजराइल तू बर्बाद होगा के साथ ही कई आपत्तिजनक नारे लगाए। इसका वीडियो भी सामने आया।
इसके पहले महाकाल की सवारी निकालकर दिखाने की चुनौती भी दी गयी। ये सब देखकर स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि जो नगरी सदा सर्वदा से महाकाल की है, वहीं महाकाल की सवारी को चुनौती देने का हौसला कहाँ से आ रहा है?
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न ये उठता है कि भारत जैसे विविधता में एकता के आदर्श वाले लोकतांत्रिक देश में इस्लामिक कट्टरता के लाभ बताता शिक्षक क्या SIMI, PFI और ISIS के लिये माहौल बना रहा है? उच्च शिक्षा समाज में सेवा के लिये है या इन्हें कट्टर मुस्लिम बनाने की फैक्टरियां बनाने का षडयंत्र रचा जा रहा है? क्या देश के शैक्षणिक संस्थानों को इस्लाम कुबूल करवाने का नया अड्डा बनाया जा रहा है? क्या केरल की तर्ज पर अब मध्यप्रदेश के शैक्षणिक संस्थान इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए अगला निशाना हैं? या कोई इस प्रश्न का ही उत्तर दे दे कि विक्रम विश्वविद्यालय में फार्मेसी का गेस्ट फेकल्टी अपना विषय पढ़ाने से ज्यादा रुचि इस्लाम पढ़ाने में क्यों ले रहा था?
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प्रियंका कौशल
लेखक